ख़ुदग़र्ज़
ख़ुदग़र्ज़
मोनिका ने बचपन में ही अपने माता पिता को खो दिया था। ऐसे में उसके चाचा -चाची ने ही उसका पालन पोषण किया था।अब वह बी.टेक. करके एक कंपनी में नौकरी करने लगी थी। उसका अपनी कंपनी में कार्यरत अजय से प्रेम प्रसंग चल पड़ा जो चर्चा का विषय बन गया था। जब इसकी भनक मोनिका के चाचा के कानों में पड़ी तो उन्होंने मोनिका को उससे दूर ही रहने का आग्रह किया।
वह अजय के परिवार की आपराधिक पृष्ठभूमि से अवगत थे।वो मोनिका के भविष्य को अंधकारमय नहीं बनाना चाहते थे। पर कहते हैं ना कि "प्यार अंधा होता है "तो मोनिका ने अपने चाचा की एक ना सुनी और उससे प्रेम की पींगे बढ़ाती रही। अब आए दिन घर में इसी बात को लेकर क्लेश हो जाया करता था। मोनिका, अजय को भी सारी बातें बता देती थी।
अब अजय ने अपने दोस्त के साथ मिलकर मोनिका के चाचा को रास्ते से हटाने का प्लान बना लिया।बस मौके की तलाश थी। जल्दी ही उन्हें ये अवसर प्राप्त भी हो गया। मोनिका के चाचा एक दिन सुबह अकेले ही दूसरे शहर मे अपनी मां से मिलने जा रहे थे। तभी रास्ते में ही अजय ने बहाने से गाड़ी रुकवा कर उन्हें गोली मार दी थी। उन्होंने वहीं पर दम तोड़ दिया और अजय अपने साथी के साथ फरार हो गया पर पुलिस की मुस्तैदी ने इस घटना को तीन-चार दिन में ही खोल दिया। दरअसल कैमरे में सारी घटना कैद हो गई थी।
अजय ने पुलिस की पूछताछ में बताया कि मोनिका ने ही अपने चाचा के प्रोग्राम के बारे में बताया था और घर से निकलने की सटीक सूचना भी दी थी तभी हम काम को अंजाम दे पाए थे। जब यह बात मोनिका के परिवार को पता चली तो वो स्तब्ध थे।
कुछ उसे एहसान फरामोश की उपाधि दे रहे थे तो कुछ अजय और उसके दोस्त को हत्यारे बताने की जगह उसे ही हत्यारिन बता रहे थे क्योंकि भले ही उसने गोली नहीं चलाई पर विश्वास का खून तो किया ही था।
जब पुलिस मोनिका को गिरफ्तार करके ले जाने लगी तो उसकी चाची रोते-रोते कह रही थी पता नहीं मेरी परवरिश में कौन सी कमी रह गई थी जो आज यह दिन देखना पड़ रहा है। अब मोनिका की आंखों से भी आंसू बह रहे थे पता नहीं वह पश्चाताप के आंसू थे या जेल जाने के गम के।