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Kratika Agnihotri

Abstract

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Kratika Agnihotri

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खोटा सिक्का

खोटा सिक्का

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घर की बड़ी बेटी हो हमने तो नाजों से पाला था ....

तुम्हारी किस्मत ख़राब रही जो भी मिला तुम्हें सब मिट्टी हो गया।

मम्मी अनु को ताने पर ताने दिए जा रहीं थीं आखिर दें भी क्यों ना जिस दिन से अनु ब्याह कर इस घर से गई उसके भाग्य ही फूट गये।

पहला विवाह हुआ तो पति के अपनी ही भाभी से अनैतिक संबंध रहें जैसे तैसे झेल रही थी कि उसका स्वर्गवास हो गया..... दूसरा विवाह प्रदीप से हुआ तो शुरुआत में तो सब सही रहा फिर दो तीन वर्ष बाद वह भी बेरोजगार बैठे रहें, अब तो निठल्लेपन और शराब की लत लग गई जो भी कमाते सब शराब पर उड़ाते।

डग्गामारी करके गृहस्थी चल रही है मायके से ही मां बेटी की जरूरतें पूरी होतीं.... बिटिया भी सयानी हो रही बीएससी प्रथम वर्ष में पढ़ रही।

प्रदीप के शंकालु स्वभाव के कारण वह कहीं नौकरी भी नहीं कर पाती.....

व्यथित होकर ईश्वर के आगे रोती रहती कभी तो दिन बहुरेंगे।

एक दिन अचानक अनु के भाई जो कि

स्क्रैप का काम करता है उसे पुलिस ले जाती है सरकारी माल खरीदने के जुर्म में......

अनु के घरवालों का कभी थाना पुलिस वकील से साबका ही नहीं पड़ा था।

अचानक आई इस मुसीबत से सब बेहाल परेशान आखिर में प्रदीप से ही कहा गया क्योंकि उनका शहर की विभिन्न थाने चौकी में अच्छी जान पहचान थी वह ऐसे कामों में माहिर भी हैं क्योंकि उन पर खुद शहर भर में दो तीन मुकदमे दर्ज हैं।

एनबीडब्ल्यू में वारंट जारी हो चुका था लेकिन वकील साहब की मदद से जेल जाने से बच गए.....

प्रदीप ने दौड़ भाग करके बीस दिनों में अनु के भाई की जमानत करा लिया।

परिवार में अब यही चर्चा है कि आज खोटा सिक्का भी काम आ गया है।


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