खजाना
खजाना
रामू आज फिर काम पर देरी से पहुंचा तो सेठ ने कहा " तुम्हारा यह रोज - रोज का नाटक कब ख़तम होगा, मैं तुम्हें देर से आने के पैसे नहीं देता हूं। चलो अब जल्दी से खेतों पर जाओ और हल चलाओ। रामू जल्दी से खेतों की तरफ दौड़ा और हल चलाने लगा। रामू के घर में वो और उसकी मां रहते थे। रामू की मां अब बूढ़ी हो गई थी और अक्सर बीमार रहती थी।
रामू की मां कपड़े सिलने का काम करती थी। पर अब वह बूढ़ी हो चुकी थी और उसे दिखाई भी कम देता था इसलिए वो अब कपड़े नहीं सिल पाती।
रामू के पिता एक फौजी थे वह पहले विश्व युद्ध में लड़ने के लिए अंग्रेजी सेना में भर्ती हुए थे।
बस जिस दिन के बाद वो लड़ने के लिए जर्मनी गए उस दिन के बाद वो कभी वापिस नहीं आए।
रामू के गांव में अंग्रेजों का ज्यादा आना जाना नहीं था बस हर हफ्ते एक पुलिस वाला गांव में आता और किसानों से कर (tax) लेकर वापिस चला जाता वो अपने साथ दो बैल गाड़ीयां भी लाता था जिसमें वो सामान भर सके।
रामू के पास तो खाना खरीदने के भी पैसा नहीं होते थे वो कर कहां से दे पाता। इस कि वजह से उसे कई बार पुलिस वालों के डंडे भी खाने पड़ते थे। रामू के मन में बस एक ही बात होती थी कि कहीं से ढेर सारे पैसे मिल जाएं तो मेरी ज़िन्दगी बन जाएगी।
रामू का सारा पैसा उसकी मां की दवाई पर खर्च हो जाता था। हर सुबह रामू को बस एक ही चिंता लगी रहती थी कि कहीं आज कोई पैसे मांगे न आ जाए। रामू को उसके जीवन में हँसने के मौके बहुत कम मिले थे वह अक्सर थका हुआ और सोच में डूबा हुआ रहता था।
रामू सेठ के पास पिछले पांच सालों से काम कर रहा था।
रामू के हाथों में मानो जादू था, उसकी उगाई फसलें कभी खराब नहीं होती थी और न ही उन पर कभी कीड़ा लगता था। सेठ उसके काम से बहुत खुश होता था, वह उसे कई बार अपने घर में खाना भी खिलाता था लेकिन सेठ कि पत्नी को यह सब बिल्कुल पसंद नहीं था। वो सेठ से गुस्से में कहती कि तुम्हें कोई शरम है कि नहीं तुम एक गरीब किसान को अपने घर में बुला कर खाना खिलाते हो। हमारे रिश्तेदार देखेंगे तो क्या कहेंगे, सेठ कि पत्नी के सिर पर तो पैसो का बुखार चढ़ा हुआ था। उसे क्या पता था की उस किसान की उगाई हुई फसलों को बेच कर ही वो इतने पैसे कमाते हैं।
रात के दस बज रहे थे सेठ और उसके दोस्त सब रोज की तरह शराब की दुकान पर शराब पी रहे थे। इससे वह अपने दिन भर की थकान को मिटा देते थे।
सेठ के घर में उस वक़्त उसकी बीवी - बच्चे और कुछ नौकर थे, वह नौकर रात के बर्तन धो कर और थोड़ी सफाई कर अपने घर चले जाते थे।
सेठ की बीवी अपने कमरे में खिड़की के पास बैठी अपने पति का घर लौटने का इंतजार कर रही थी कि उसने अचानक देखा की रामू उनके घर के नीचे से भागता हुआ जा रहा है। सेठानी की आंख लग गई और वो सो गई।
अगले दिन जब वो उठी तो उसने देखा कि उसकी तिजोरी का ताला टूटा हुआ पड़ा है वो अपने दिल पर हाथ रखते हुए तिजोरी कि तरफ बढ़ती है, वह देखती है कि उसके सारे गहने चोरी हो गए है। यह दृश्य ऐसा लग रहा था मानो कई दिनों से भूखे बिखरी के हाथों से रोटी छीन ली हो।
सेठानी रूपा गहने अपने जगह न पाकर वहीं पर बेहोश हो जाती है। सेठ सभी लोगों को अपने घर में चोर का पता लगाने के लिए इकट्ठा करता है। वह अपने सभी नौकरों के साथ - साथ रामू को भी घर में बुलाता है, पुलिस भी बुलाई जाती है, सब से पूछ - ताछ चल ही रही होती है कि रूपा सीढ़ियों से भागती हुई आती है और रामू को गले से पकड़ लेती है और कहती है - कहां है मेरे गहने जल्दी बोल वरना तुझे यही मार दूंगी, सेठ उसे पकड़ता है और रामू से दूर ले जाता है और पूछता है कि तुम्हें कैसे पता कि रामू ही चोर हैं।
रूपा बोलती है कि उसने रात को रामू को उनके घर के नीचे से भाग कर जाते हुए देखा था। पुलिस रामू से पूछती है कि क्या रूपा सच बोल रही हैं तुम सच में रात को उनके घर के नीचे से भाग कर गए थे। रामू कुछ देर चुप रहा और फिर बोला, " हां" वो सच बोल रही है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मैंने चोरी की है।
पुलिस ऑफिसर ने कहा तो फिर तुम इतनी रात को वहां क्या कर रहे थे, रामू ने घबराते हुए कहा मैं अपने बीमार मां के लिए दवाई लाने गया था और जल्दी से दवाई लेकर घर भाग रहा था। सेठ ने और पुलिस वालों ने उसकी बात पर यकीन कर लिया। पुलिस वालों ने जब सभी लोगों के घर की तलाशी ली तो पता चला कि
गहने सेठ के एक नौकर ने ही चुराए थे। पुलिस ऑफिसर उसे पकड़ कर थाने ले गया। सेठ के मन में अब रामू के लिए और भी अटूट विश्वास हो गया था।
रामू एक दिन जंगल में नदी के पास पानी भरने के लिए जा रहा था उसने देखा कि एक ऋषि ज़मीन पर बेहोश पड़े हैं, उसने जल्दी से ऋषि को उठाया और उन्हें पानी पिलाया।
ऋषि की जान में जान आयी उसने रामू को धन्यवाद कहा और बोला तुम बहुत उदास दिखाई पड़ रहे हो क्या बात है। रामू ने उसे अपने जीवन के कष्टों के बारे में बताया।
ऋषि ने उस से कहा कि जल्दी ही तुम्हारे सारे दुख ख़तम होने वाले है बस तुम जैसे अपना काम कर रहे हो वैसे करते जाओ। यह बोल कर ऋषि वह से चले गए।
रामू भी अपने घर की ओर लौट गया।
रामू के गांव में कई बार डाकू घुस आते थे सभी लोग उन डाकुओं से बहुत परेशान थे। लोगों ने इस बात की खबर राजा को दी पर राजा भी उन डाकुओं का कुछ नहीं कर पाया क्यूंकि किसी को भी नहीं पता था कि वो डाकू कहां से आते थे और सामान लौट कर कहां चले जाते थे। जब रामू जंगल से घर वापस जा रहा था तब वो ऋषि की कहीं हुई बात सोच रहा था।
वो सोचते सोचते इतना गुम हो गया कि वो रास्ता ही भटक गया।
कुछ समय बाद उसे खयाल आया कि वो शायद रास्ता भटक गया है। वो घूमता घूम एक गुफा के पास पहुंचाता है, रामू काफी थक गया होती है इसलिए वो आराम करने के लिए गुफा मैं चला जाता है। जैसा ही वो गुफा मैं घुसता है तो देखता है कि पूरी गुफा में सोना ही सोना भरा पड़ा।
पूरी गुफा में कई कीमती चीजें पड़ी हुई हैं और एक आदमी उस सामान की रक्षा कर रहा है। रामू वहां से घबराता हुआ बाहर निकलता है और जल्दी से घर की और भागता है। वह घर पहुंचते ही यह बात राजा को बताने के बारे में सोचता है। वो जल्दी से राजा के महल की और भागता है।
महल के द्वार पर उसे राजा के पहरेदार रोक लेते है और पूछते है " भाई कहा जा रहे हो, राजा अभी व्यस्त हैं वो अभी तुमसे नहीं मिल सकते।" रामू हाथ जोड़ते हुए पहरेदारों से कहता है "कृपया करके मुझे अन्दर जाने दीजिए मुझे राजा को डाकुओं के बारे में कुछ बताना है।"
डाकुओं का नाम सुनते ही पहरेदारों ने रामू को अन्दर जाने की आज्ञा दे दी। रामू ने राजा को जाकर सारी बात बता दी और गुफा का रास्ता भी बता दिया, राजा ने अपनी सेना को जंगल में डाकुओं को पकड़ने के लिए भेज दिया। जल्दी ही सैनिक डाकुओं को पकड़ कर महल ले आए और उन्हें जेल में बंद कर दिया। राजा रामू के काम से बहुत खुश हुआ और उसे सोने के मोहरे इनाम में दिया। साथ ही साथ उसे अपने जासूसों कि सेना में भी शामिल कर लिया।
राजा ने उसकी माता की देख भाल के लिए एक डॉक्टर को भी उनके घर भेज दिया।
अब रामू राजा का खास आदमी बन गया था।
।। कहानी समाप्त। ।
