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Lovish Sharma

Children Stories Inspirational Thriller

4  

Lovish Sharma

Children Stories Inspirational Thriller

वीर

वीर

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यह बात तब की है जब पुराण राज्य पर राजा जमान का कब्जा था। राजा जमान एक बहुत ही अच्छा राजा था। वह हमेशा अपना धन गरीबों में बांटता रहता था। उसके दो बेटे थे चारूं और समाध । चारूं समाध से चार साल बड़ा था | राजा की पत्नी बच्चो के पैदा होने के एक साल बाद किसी बिमारी के चलते मर गयी। राजा के दोनो बेटे अब अपनी नानी बाला के साथ रहते थे। राजा सामराज़्य के कामों मे व्यस्त रहता था इसलिए उसने अपने दोनों  बेटों को उनकी नानी के पास छोड़ दिया। चारूं को किताबें पढ़ना बहुत अच्छा लगता था  किन्तु समाध को तलवार बाजी का शौक था। उनकी नानी ने उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार शिक्षा दिलाई। दोनों अपने - अपने क्षेत्र मै सफल हो रहे थे। अभी चारूं की उम्र 12 साल और समाध की 8 साल थी। 

पुराण राज्य के छोटे से गांव आरा में वीर नाम का  लड़का अपने कुम्हार बाप के साथ  एक छोटे से घर में रहते था। वीर के बाप का नाम उमार था। वह गांव के बाज़ार में मटका, थालियां और कई मिट्टी का सामान बैचता था। 

उमार का काम बहुत कठिन था और कमाई बहुत कम होती थी। 

जब कभी भी वर्षा होती या तूफ़ान आता तो उमार का काम बंद हो जाता। जिसके कारण उसे और उसके बेटे वीर को कई दिनों तक भूखा रहना पड़ता था। इसलिए वीर ने सोचा कि वह भी अपने बाप की मदद करेगा।  उसने जंगल में जा कर लकड़ी काटने का काम शुरु कर दिया। वह रोज़ सुबह जंगल जाता और लकड़ियां काट कर लाता। फिर वह उन्हे बाज़ार में बेचता। 

इस तरह काम करने से उनका घर अच्छी तरह से चलने लगा , किन्तु वीर का पिता उसके इस काम से खुश नहीं था क्योंकि उन्हें पता था कि यह काम आसान नहीं था और वीर अपनी पूरी जिंदगी इस काम को नहीं कर पायेगा।  

उमार चाहता था कि वीर राजा की सभा का आदमी बन जाए जिसमें काम भी कम करना पड़े और कमाई भी अच्छी हो। उमार वीर को राज्य के एक स्कूल में ले गया  किंतु उस समय शिक्षा ग्रहण का हक सिर्फ़ ऊंची जाती के लोगों को था। इसलिए वीर को उस स्कूल में पढ़ने नहीं दिया गया। 

वीर को यह देख कर समझ आने लगा था कि उसका जीवन सरल नहीं होगा। उमार ने हर जगह जाकर पूछा कि क्या वीर को शिक्षा देंगे पर सब ने मना कर दिया। 

 वीर को भी पढ़ाई करने में कुछ खास दिलचसपी नहीं थी उसका मन तो तलवारबाजी में और तीरंबाजी में था। 

 एक दिन जंगल से वापिस आते

 समय वीर ने देखा कि कुछ लोग ज़ोर - ज़ोर से चिला - चिला कर कुछ संदेश दे रहे है ? वह लोग तिरण बाजी की प्रतियोगिता की सूचना दे रहे थे। जो दो दिन बाद होने वाली थी। वीर यह बात सुनकर बहुत खुश हो गया । उसने प्रतियोगिता में भाग लेने का फैसला कर लिया। 

 वीर जल्दी से गाव की नदी की तरफ दौड़ा और अपना अभ्यास करने लगा।

 दो दिन के बाद प्रतियोगिता का समय आया वीर प्रतियोगिता जीतने के लिए बहुत उत्सुक था पर उसे पता नहीं था कि प्रतियोगिता इतनी सरल नहीं होती।

 वीर पहली बार मै सिर्फ ,६ में से २ ही निशाने लगा पाया और खेल के पहले ही भाग में बाहर हो गया। वीर अपनी इस हार से बहुत दुखी हो गया। वह घर लौटा जब उसके पिता ने उसका उतरा हुआ मुंह देखा तो उसने पूछा " क्या हुआ कुछ परेशान लग रहा है। वीर ने कोई उतर नहीं दिया। पिता ने फिर पूछा क्या बात है मेरे बेटा पर वीर के मुंह से एक शब्द नहीं निकला। पिता के बहुत समझाने के बाद वीर ने पूरी बात बताई।

 उमार ने जल्दी से वीर के लिए खाना डाल दिया। वीर ने जैसे ही खाना ख़तम किया तो ऊमार ने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि तुम ने तो सिर्फ दो दिन तीरंबाज़ी की तायारी की पर बाकी जो लोग वहां थे वह कई सालो से उसकी तयारी कर रहे थे। वीर के पिता ने उसे बताया कि जों जितनी मेहनत करता है उसे उतना अच्छा फल मिलता है।

 वीर ने अब और संघर्ष करने का मन बना लिया था। वह अब तीरंबाजी और तलवारबाजी में विशेष महारथ हासिल करना चाहता था।

  वह चुप के से विद्यालय में हो रही सभी घटनाओं को देखने के लिए हर सुबह विद्यालय जाता। वह विद्यालय की पीछे वाली पहाड़ी पर से रोज जाता और वहां से विद्यालय में चल रहे अभ्यास को देखता। लगभग एक साल तक उसने ऐसे ही चुप चुप के देख देख के हत्यार चालाना सीख लिया था। लेकिन एक दिन उस कुछ लोगो ने ऐसा करता देख लिया और वह उस पकड़ कर राजा के पास ले गए। राजा बहुत ही दयालु था उसने वीर से कहा " कि तुम ने जो कुछ भी आज तक सीखा है उसका मुझे कुछ नमुना दिखओ "' 

  वीर ने अपना धनुष उठाया और सामने खड़ी मूर्ति पर पांच तीर मारे और पांचों तीर एक ही जगह आकर मिले यानी एक के पीछे एक तीर लगे हुए थे। 

  राजा यह देख कर बहुत खुश हुआ और उसे अपनी सेना में शामिल कर लिया।

  वीर दौड़ता हुआ अपने पिता के पास पहुंचा और उसे सारी बात बताई पिता का सपना आज पूरा हो गया था।

  एक तरफ खुशी थी पर दूसरी और पिता से दूर होने का ग़म था।

एक हफ्ते के बाद वीर अपने काम पर निकल पड़ा। राजा का महल वीर के गांव से 40 km दूर था।

2-3 महीनो तक सब कुछ ठीक चल रहा था उधर वीर अपना काम अच्छा से कर रहा था और दूसरी तरफ उसके पिता अपना कारोबार अच्छे से संभाल रहे थे। 

लेकिन अचानक एक दिन वीर के पिता की सेहत खराब हो गई। उन्हों ने वीर को खत लिखा कि वह जल्दी से घर लौट आए पर वीर तक वह खत वकत पर नहीं पहुंच पाया और उसके पिताजी की ओर मर्त्यु हो गई। मृत्यु के दो दिन बाद वीर को वह खत मिला। खत को पड़ते ही वीर जल्दी से अपनी गांव कि और निकल पड़ा पर जब वह अपने घर पहुंचा तो उसने देखा कि उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है। उस दिन वह बहुत रोया क्यूंकि उसके जीवन मै उसके पिता के सिवा और कोई नहीं था  ।

अब वह अकेला हो गया था। रोते रोते उसकी नजर एक कागज पर पड़ी। उस कागज पर उसके पिता ने कुछ लिखा रखा था। उसके पिता ने लिखा था कि अगर उसकी मृत्यु हो गई तो उसे निराश नहीं होना है और अब उसे अपनी पूरी शक्ति से अपने राजा की सुरक्षा करनी है।

 उसे राजा को अपने पिता सामान मानना होगा और हमेशा उसकी सेवा करनी होगी। वीर ने अपनी पिता कि आखरी इच्छा को माना और पिता का देह संस्कार करने के बाद वो महल की और चल पड़ा।

राजा के दोनों पुत्र अब बड़े हो चुके थे और राज्य संभाल ने के काबिल थे। कुछ समय के बाद चारूंको राजा बनाने का निर्णय लिया गया पर समाध उस फैसले से खुश नहीं था वह खुद राजा बनना चाहता था उसकी ऐसी सोच का कारण उसकी नानी थी जिसने उसे बचपन से राजा की शक्ति और उसकी महानता के बारे में बताया था। समाध का मानना था कि अगर चारूं राजा बन गया तो उसे अपनी पूरी जिंदगी एक नोकर कि तरह बितानी पड़ी गी। 

इस लिया वो अपने दुश्मन राज्य के राजा के पास मदद मांगने चला गया। 

राजा ने उसे कहा कि वो यहां क्या करने आया है 

समाध ने उसे कहा कि वह उसके साथ मित्रता करना चहता है और अपने राज्य को उसके राज्य के साथ मिलना चाहता है। 

समाध चाहता था कि वह उसे राजा बनने में मदद करे। राजा ने उसकी बात मान ली और उससे मित्रता कर ली।

दोनों ने मिल कर एक खतरनाक प्लान बनाया जिसके अनुसार वो लोग होली के दिन पुराण राज्य पर हमला करेंगे क्योंकि तब कोई भी हमले के लिए तीयार नहीं होगा। एक हफ्ता बाद होली के दिन था सभी लोग होली खेल रहे थे कि अचानक से हमला हो गया सभी लोगो को बंदी बना लिया गया। समाध ने सबसे पहले जा महल पर हमला किया और चारूं को मार डाला और खुद जा के राजा की गदी पर बैठ गया। वीर हमलावरों का डट कर सामना कर रहा था और राजा ज़मान को उनसे बच रहा था। वीर ने जैसे तैसे राजा ज़मान को महल से सुरक्षित बाहर निकाला और जंगल में ले गया। 

अब पुराण राज्य पर समाध का कब्ज़ा था।

वीर के दिमाग मै बस एक ही चीज चल रही थी कि वो अब कैसे राज्य को समाध के हाथो। से मुक्त करे गा। 

जंगल मै बहुत से खूंखार जंगली जानवर रहते थे जिस कारण उनका जंगल मै रहना असुरक्षित था। 

राजा ज़मानऔर वीर दोनों ज़मानके बहुत ही अच्छे मित्र राणा के राज्य मै चले गए। उन्हों ने राणा से उनकी मदद करने को कहा राणा जेपी ज़मान का बहुत अच्छा मित्र था इसलिए उसने उसकी मदद करने के लिए हा के दिया।

समाध को शिकार करना बहुत अच्छा लगता था। वह हर हफ्ता शिकार करने के लिए जंगल आता था। 

वीर ने योजना बनाई कि जब समाध शिकार करने के लिए जंगल आए गा तब वो उसे मार देंगे।

वीर कुछ सैनिकों के साथ जंगल की तरफ चल पड़ा। लगभग दो दिन के बाद समाध अपने सैनिकों के साथ जंगल शिकार करने के लिए आया । आज वो समय आ चुका था जब वीर ने जो कुछ भी बचपन मै सीखा था उसके उसे प्रदर्शन करने था।

वीर के सैनिकों ने समाध के सैनिकों को पीछा से हमला कर के मार दिया पर समाध वहां से भाग गया लेकिन वीर ने भी उसके पीछा नहीं छोड़ा और अंत में वीर ने अपना तीर निकला और भाग रहे समाध के सिर पर मार डाला। तीर सिर पर लगने की वजह से समाध की मूत उसी वक़्त हो गई।

समाध की मृत्यु होने कि वजह से अब पुराण राज्य पर किसी का भी कबजा नहीं रह गया था। 

लेकिन किसी को तो राजा बनना था तो सब ने फैसला लिया कि वीर को राजा बनाया जाए क्योंकि ज़मान अब बूड़ा हो चुका था और राज्य का कारो बार नहीं संभाल सकता था इसलिए वीर को राजा बना दिया गया।

वीर के पिता का सपना आज सच हो गया था वीर अब राजा बन गया था। 

वीर एक बहुत ही नेक राजा साबित हुआ। उसने राणा कि बेटी से शादी भी कर ली और अब उस के जीवन बहुत ही अच्छा गुजर रहा था।

रात बहुत हो गई होती है तो वीर कि पत्नी केहति है कि वह अब सो जाएं वीर अपनी डायरी को बंद कर देता है और सो जाता है।  


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