जादुई पेंसिल
जादुई पेंसिल
रघु जल्दी उठ नहीं तो आज फिर स्कूल के लिया देर हो जायेगी : - रघु की मां उस से कहती है।
रघु बिस्तर पर लेटे लेटे ही अपनी एक आंख खोलता है और बोलता है मम्मी अभी क्या टाइम हुआ है
रघु की मां :- जल्दी उठ 7:30 हो गए हैं 8:20 पर स्कूल लग जायेगा।
रघु ने जैसे ही यह सुना, वो अपने बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और जल्दी से स्कूल के लिया तैयार होने लगा। रघु बिना खाना खाए ही स्कूल के लिया दौड़ पड़ा। रघु रास्ते में दौड़ता हुआ सोचता है, आज फिर मैं लेट हो गया, मैं चाहे जितना मर्जी तेज दौड़ लूं स्कूल तो कभी भी समय पर नहीं पहुंच पाऊंगा। पता नहीं आज द्वारपाल भैया मुझे स्कूल के अंदर आने देंगे यह नहीं। वह यह सब सोच ही रहा होता है की पीछे से उसकी कक्षा का एक साथी उसे आवाज लगाता है रूक जा रघु, रघु पीछे देखता है की श्याम साइकिल पर सवार हो कर आ रहा है। श्याम रघु की सामने ब्रेक लगाता है और कहता है और भाई आज फिर लेट हो गया, अगर आज तू समय पर नहीं पहुंचा तो कक्षा अध्यापक तुझे बहुत मरेंगे।
रघु श्याम से कहता है: मुझे सब पता है, तू मुझे मत बता क्या होगा।
श्याम : चल फिर ठीक है फिर मैं चलता हूं, तू भी जल्दी स्कूल पहुंच।
रघु देखता है की श्याम के पास तो साइकिल है, क्यों न मैं इस का पीछे बैठ जाऊं तो मैं भी स्कूल जल्दी पहुंच जाऊंगा।
रघु श्याम से कहता है मेरा भाई मुझे अपनी साइकिल पर पीछे बैठा ले मैं दौड़ते दौड़ते बहुत थक गया हूं।
श्याम रघु की बात मान लेता है और उसे अपनी साइकिल पर बिठा लेता है।
दोनों स्कूल पहुंच ने ही वाले होते है की द्वारपाल उनके सामने स्कूल का द्वार बंद कर देता है।
रघु द्वारपाल से विनती करता हुआ कहता है भैया जी द्वार खोल दो हमें अंदर आना है
द्वारपाल : अब यह द्वार नहीं खुलेगा मुख्याध्यपक जी का ऑर्डर है की जो विद्यार्थी स्कूल लेट पहुंचेंगे उन्हें स्कूल के अंदर घुसने ना दिया जाए।
श्याम: द्वारपाल महोदय मैं आज पहली बार स्कूल देर से पहुंचा हूं कृपया करके मुझे अंदर आने दो।
द्वारपाल सोचता है की इस बालक को मैंने कभी लेट होते हुए नहीं देखा है, वह श्याम को स्कूल के अंदर जाने की इजाजत दे देता है।
रघु भी जैसा तैसा द्वारपाल को मना कर स्कूल के अंदर चला जाता है।
जैसे ही कक्षा आरंभ होती है, कक्षा अध्यापक सभी बच्चों को कल दिया हुआ होमवर्क दिखाने के लिया कहते है।
यह सुनते ही रघु के दिमाग में आता है "अबे यार मैं तो होमवर्क करना ही भूल गया अब तो मास्टरजी से बहुत मार पड़ेगी।
२-३ बच्चों का होमवर्क चेक करने के बाद मास्टरजी रघु को आवाज लगाते हैं और कहते है "रघु आओ अब तुम्हारी बारी, जल्दी से अपना काम चेक करवाओ।
रघु अपने डेस्क से खड़ा होता है और कहता है "मास्टरजी मैंने अपने होमवर्क नही किया है "।
यह सुनते ही मास्टरजी गुस्से से आग बबूला हो जाते हैं और कहते हैं " मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है कि अपना काम कर के ही स्कूल आया करो, तुम पर तो मार का भी असर नहीं होता। आज तो मैं तुम्हारे पिता जी को तुम्हारी शिकायत लगाऊंगा।
रघु अपने पिता जी से बहुत डरता था इसलिए यह सुनते ही वो रोने लगा और मास्टरजी से कहने लगा, मेरे को एक मौका दीजिए सर जी में कल अपना काम जरूर खत्म कर के लाऊंगा।
मास्टरजी रघु की बात मान जाते है और कहते है कि याद रखना यह तुम्हारा आखरी मौका होगा अगर इस के बाद कोई गलती हुई तो तुम्हें बचने का कोई मौका नहीं मिलेगा।
रघु अपना सिर हिलाता हुआ ठीक है कहता है और अपने डेस्क पर बैठ जाता है।
रघु के दिमाग मै हर वक्त बस एक ही खयाल चल रहा था कि आज तो मैं घर जाते ही सबसे पहले अपना होमवर्क खत्म करूंगा।
जैसे ही स्कूल खत्म हुआ रघु ने अपना बैग उठाया और अपने घर की तरफ दौड़ पड़ा।
घर पहुंच कर रघु ने खाना खाया और सौ गया। सौ कर उठते ही उसे याद आया की उसने अपना स्कूल का काम भी खतम करना है लेकिन तभी उसे याद आया की आज तो पार्क मै क्रिकेट मैच है और मेरी टीम उसमें शामिल है। और मैं तो अपनी टीम का कप्तान हूं अगर मैं नहीं गया तो सब नाराज हो गाएंगे और क्या पता मुझे फिर कभी अपने साथ न खिलाएं।
रघु:- मैं एक काम करता हूं अभी खेलने चला जाता हूं, वापिस आ कर अपना काम खतम कर लूंगा।
रघु अपना बल्ला उठाता है और पार्क की ओर निकल पड़ता है। रघु शाम के समय घर लौटता है, अंधेरा काफी हो चुका होता है, स्ट्रीट लाइट्स भी जल गई होती है। रघु थका हारा घर पहुंचता है और रात का खाना खा कर सो जाता है। उसे यह याद ही नहीं रहता की उसे अपना स्कूल का काम खतम करना था।
थकावट होने के कारण रघु ने जैसे ही अपनी आंख बंद की उसे नींद पड़ गई और वो सपनों की दुनिया में खो गया।
सपने में रघु देखता है की वो एक घने जंगल में पहुंच गया है। हर तरफ बड़े बड़े पेड़ - पौधे और पहाड़ हैं चारों तरफ से जंगली जानवरों की आवाज़ें आ रही है। रघु जंगल में इधर उधर घूम ने लगता है, कुछ दूर तक चलने का बाद वो देखता है की कुछ जंगली कुत्ते एक साधु पर भौंक रहे है और साधु काफी डरा हुआ प्रतीत हो रहा है। रघु जमीन पर पड़ी हुए लकड़ी उठाता है और एक एक कुत्ते को वहां से मार भगाता है।
साधु की मदद करने के लिए साधु उसे धन्यवाद कहता है और बोलता है तुम एक बहादुर बालक हो, मैं तुम से बहुत खुश हूं, मांगो क्या मांगना चाहते हो हम तुम्हारी सारी इच्छा पूरी करेंगे।
रघु यह सुन कर बहुत खुश हो जाता है और कहता है " मुझे कुछ ऐसी चीज दीजिए जिस से मेरे सारे काम आसान हो जाएं।
साधु रघु को अपने झोले में से एक पेंसिल निकल कर देता है और इस से पहले रघु साधु से कुछ पूछे साधु वहाँ से गायब हो जाता है। और रघु का सपना टूट जाता है और वो अपनी आंखे खोल कर देखता है की वो अपने बिस्तर पर सोया हुआ है। रघु की नजर फिर दीवार पर टंगी घड़ी पर जाती है जिस पर सुबह के 7 बज रहे होते है। रघु अपने बिस्तर से उठ जाता है और अपने कमरे का दरवाजा खोलने ही वाला होता है की उसे याद आता है की उसने तो अपने स्कूल का काम खतम ही नहीं किया है। वो जल्दी से अपने स्टडी टेबल की तरफ जाता है और अपनी नोटबुक को हाथ में उठाता है और वह देखता है की सभी काम पहले से ही खतम हो गया होता है। रघु को कुछ समझ में नहीं आता है की ऐसा कैसे हो सकता है की होमवर्क अपने आप ही पूरा हो जाए। उसका ध्यान अचानक से टेबल पर पड़ी पेंसिल पर जाता है, यह पेंसिल बिलकुल वैसी ही दिख रही थी जैसी सपने में उसे साधु जी ने दी थी। रघु को सब समझ में आ जाता है की यह सब काम उस पेंसिल ने किया है।
रघु अपना बैग पैक करता है और स्कूल जाने की तैयारी करता है। आज जब मास्टरजी ने बच्चों से होमवर्क चेक करवाने को कहा तो रघु ने सबसे पहले अपना हाथ उठाया और बोल मास्टरजी सबसे पहले मेरा होमवर्क चेक कीजिए।
मास्टरजी:- वाह आज रघु अपना काम पूरा कर के आया है, शाबाश, ऐसे ही रोज अपना काम पूरा कर के आया करो।
जादुई पेंसिल आने के बाद रघु का जीवन पूरी तरह से बदल गया, अब वह रोज सारा होमवर्क खत्म कर के स्कूल जाता था। कक्षा परीक्षा में सबसे जादा अंक लाता था। अब रघु सभी अध्यापकों का सबसे प्यारा विद्यार्थी बन गया था।
लेकिन रघु के साथ बैठने वाले लड़के को यह सब अच्छा नहीं लगता था क्योंकि पहले वो दोनों एक साथ मास्टरजी से मार खाते थे, क्लास के बाहर एक साथ खड़े होते थे पर अब वह अकेला हो गया था क्योंकि रघु अब एक होनहार विद्यार्थी बन गया था। अब पूरी क्लास मै सबसे कमजोर विद्यार्थी वह ही रह गया था।
सुरीन ने पूरी कोशिश की कि वो जान सके की रघु अचानक कैसे इतना बुद्धिमान बन गया। सुरीन रघु की पीछे वाली सीट पर बैठा करता था।
एक दिन उसने देख की रघु के टेबल पर एक पेंसिल पड़ी है यह पेंसिल बहुत ही सुंदर थी, इसका रंग हल्का नीला था
और पेंसिल के सिर पर दो पंख बने हुए थे जो पेंसिल की सुंदरता और भी बढ़ा रहे थे।
सुरीन को वो पेंसिल बहुत पसंद आई, उसने आस पास देखा और चुप के से पेंसिल को उठा लिया। पेंसिल को उठाने के बाद वो कक्षा से बाहर चला गया। रघु उस वक्त अध्यापक के साथ स्टाफ रूम मैं था।
जब रघु वापिस आया तो उसने देखा कि उसकी पेंसिल टेबल पर नहीं है। उसने आस पास खोजा पर उसको पेंसिल कही नहीं मिली, रघु के तो जैसे प्राण ही निकल गए हों। रघु ने अपनी कक्षा के बाकी साथियों से भी पूछा की किसी ने उसकी पेंसिल देखी पर किसी को नहीं पता था की उसकी पेंसिल कहा गई। कई बच्चों ने रघु से कहा " यार तो इतना परेशान क्यों हो रहा है एक पेंसिल की ही तो बात है तो मेरी पेंसिल ले ले। लेकिन सिर्फ रघु को पता था की वो पेंसिल इस के लिए कितने मायने रखती थी। रघु की चिंता अब और बढ़ गई जब उसे याद आया की कल से तो उसकी वार्षिक परीक्षा प्रारंभ हो रही है।
अब वह गहरी चिंता में पड़ गया था, क्योंकि बिना पेंसिल के वो कुछ भी नहीं है।
स्कूल का पूरा दिन रघु के यह सोचने में ही निकल जाता है की अब क्या होगा।
सुरीन जैसे ही घर पहुंचता है वह खाना खाता है और परीक्षा की तैयारी करने के लिए अपने स्टडी टेबल पर जा कर बैठ जाता है। वह आपने बैग में से रघु की पेंसिल निकलता है और जैसे ही अपनी कॉपी पर सवाल हल करने के लिया रखता है तो पेंसिल अपने आप ही चलने लगती है सुरीन यह देख कर चौंक जाता है और अपनी टेबल से उठ खड़ा होता है। जैसे ही पेंसिल रुक जाती है तो सुरीन अपनी टेबल के पास जाता है और क्या देखता है की उसकी नोटबुक पर लिखे सारे सवाल हल हो चुके हैं। सुरीन को अब पता चल जाता है की रघु अचानक से इतना बुद्धिमान कैसे हो गया था। वो खुश हो जाता है की अब उसे पूरी कक्षामें अव्वल नंबर लेकर पास होने से कोई नहीं रोक सकता।
वहीं दूसरी और रघु का रो रो कर बुरा हाल हो रहा होता है वह सोच रहा होते है की अब वह कल की परीक्षा में कैसे पास होगा की तभी उसके मन से उसे आवाज आती है की रघु तुम ऐसे ही हार नहीं मान सकते। तुम्हारे मां - बाप तुमसे कितनी उम्मीदें लगाए बैठे हैं। सभी अध्यापकों को तुमसे कितनी उम्मीदें हैं, तुम्हें अब अपने बल पर अच्छे अंक लाकर पास होना होगा। रघु पढ़ाई करने का मन बना लेता है और पूरे उत्साह के साथ स्टडी टेबल पर जा के बैठ जाता है।
सुरीन को अब परीक्षा की कोई चिंता नहीं रह गई थी वो आराम से पूरा दिन खेलता और इधर उधर फिरता रहा।
अगले दिन दोनों स्कूल जाते हैं दोनों परीक्षा देने के लिए टेबल पर बैठ जाते हैं।
रघु अपना पेपर हल करने में लग जाता है। सुरीन अपने बैग से जादुई पेंसिल निकालता है और अपने पेपर पर रख देता है। जैसे ही सुरीन पेंसिल से लिखने की कोशिश करता है पेंसिल के टुकड़े टुकड़े हो जाते हैं। सुरीन चौंक जाता है और अपना सिर पकड़ लेता है और सोचता है " यह क्या हो गया अब मैं पेपर कैसे दूंगा, मैंने तो कुछ नहीं पढ़ा है, अब क्या होगा।
इस प्रकार दो घंटे बीत जाते हैं और पेपर समाप्त हो जाता है। रघु बहुत खुश होता है की आज उसने अपने बल बूते पर पेपर दिया और अपने बल बूते पर पास होगा। लेकिन सुरीन पेपर खतम होते ही सीधा अपने घर की और भाग गया।
आज रात को रघु को फिर से सपने में वो साधु दिखाई देते हैं जिन्होंने उसे पेंसिल दी थी। रघु उनके पास जाता है और उन्हें प्रणाम करता है और कहता है बाबा आपको मैं याद हूं आप ने मुझे एक जादुई पेंसिल दी थी। बाबा " हां मुझे सब याद है और मुझे यह भी पता है की तुम से वो पेंसिल खो गईं।
रघु " जी बाबा, मुझे माफ कर दीजिए मैं आपके दिए गए उपहार को सही से नहीं रख पाया।
बाबा " कोई बात नहीं, यह तो अच्छा हुआ की तुम्हारी पेंसिल खो गईं तभी तो तुम आज अपने बल बूते पर पेपर दे कर आए।
रघु " पर बाबा वो पेंसिल अब कहां है
बाबा " चिंता मत करो, जादुई पेंसिल को सिर्फ तुम ही इस्तेमाल कर सकते थे,
जिसने भी वो पेंसिल चुराई होगी, जैसे ही वो उसका इस्तेमाल करेगा उस पेंसिल के टुकड़े टुकड़े हो जायेंगे।
यह कहकर बाबा गायब हो जाते हैं और रघु की नींद खुल जाती है।
कहानी समाप्त
