एक आने की गेंद
एक आने की गेंद
इस बार की गर्मियों ने ‘ नीरगढ़ ‘ के सारे कुओं का पानी लगभग समाप्त ही कर दिया था |
नीरगढ़ काफी बड़ा गांव तो नहीं था लेकिन इस गांव का नाम बहुत प्रसिद्ध था जिसका कारण थे यहां के ठाकुर साहब , उनका पास ही के शहर में कपास का उद्योग था | ठाकुर साहब तो ज्यादा समय गांव में बने अपने आलीशान मकान में ही बिताते थे , उनके दो बेटे रोशन और कपाल ही उद्योग का काम संभालते थे | जिस प्रकार सूर्य के होते अंधकार की चिंता नही होती वैसे ही ठाकुर साहब के होते गांव में खान–पान , फसल और व्यापार किसी की चिंता नही होती | गांव में ठाकुर साहब से मिलने कई बड़े बड़े लोग आते थे और उनके साथ उनके नौकर भी आते थे , वह तो आराम से बड़े से मकान में रहते थे मगर नौकरों को रात काटने के लिए , अपनी नशे की तलब को शांत करने के लिए गांव वालों का ही सहारा लेना पड़ता था , तो छोटी मोटी कमाई का साधन ये भी बन जाते थे|
सभी गांव वालों का जीवन तभतक ही सामान्य गति से चल रहा था जबतक इस पानी की समस्या ने सबको जीवन और मृत्यु के बीच में लाकर खड़ा नही कर दिया था | सभी गांव वालों ने यह फैसला लिया के वह ठाकुर के पास इस समस्या का समाधान के लिए जाएंगे |
बिंदु , अरे — ओ बिंदु कहां हो भाई जरा भरा तो आओ
बिंदु घर के अंदर से ही चिलाते हुए —आ रहा हूं भाई पूरे गांव को बताओगे क्या की मेरे घर आए हो |
तुम एक बार में सुनते कहां हो , दस बार आवाज लगाओ तो कहीं बाहर आते हो |
और यह बिंदु बिंदु क्या है मैने तुम्हे कितनी बार कहा है मुझे ब्रिजलाल कह कर पुकारा करो , मुझे यह नाम बिलकुल पसंद नहीं है |
यार बचपन से तुम्हे हमने यही कह कर पुकारा हैं | अब भी यही कह कर पुकारेंगे | हम क्या सारा गांव तुम्हे बिंदु कहकर बुलाता है | हमने थोड़ी कहा था अपना सिर पत्थर पर मारने को |
ब्रिजलाल बिंदु तब बना जब बचपन में बकरी पकड़ने के चकर में अपना सिर एक नुकीले पत्थर पर दे मारा था पत्थर माथे के बीच में जा कर लगा , कई मरहम और जड़ी बूटी लगाने के बाद घाव भरा था लेकिन घाव का निशान वहीं रह गया माथे के बीच एक लाल बिंदु|
उस सब को जाने दो तुम मुझे बताओ क्या तुम ठाकुर साहब के पास चल रहे हो आज | हम 6—7 आदमी जा रहे हैं पानी की समस्या पर चर्चा करने |
(बिंदु चिड़ते हुए ) तुम्हे क्यों ऐसा लगता है की ठाकुर साहब तुम्हारी सुनेंगे , उनके घर का कुंआ तो भरा हुआ है , और अगर खाली हो भी गया तो क्या , वह शहर चले जाएंगे | हमारी तरह यहां पानी की एक एक बूंद के लिए तरस तरस कर मर थोड़ी जाएंगे |
तभी निर्वाण ( बिंदु का लड़का ) घर से बाहर आता है
मनन उसे देखते ही अपने चेहरे पर एक बनावटी मुस्कान लता है , जो अक्सर छोटे बच्चों को देखते ही अक्सर हम सब के चेहरे पर आ जाती है|
निर्वाण , मनोहर मुख , गोल गोल गाल , बड़ी बड़ी आंखे वाला दस साल का लड़का था | सभी उसे बिंदु के घर का तारा कहते थे , निर्वाण जब गांव में इधर उधर भागता तो सब उसे प्यार करते और पकड़ कर कुछ खाने के लिए देते |
उसके व्यक्तित्व पर यह नाम एकदम बराबर बैठता था , वह एक आजाद पंछी था जो कभी एक डाल तो कभी दूसरी डाल पर जा बैठता था|
मनन उसे पास बुलाता है और उसके गाल खींच कर उसे अपनी जेब मैं पड़े मखाने खाने के लिए देता है , निर्वाण मखाने लेने से पहले एक बार अपने पिता की तरफ देखता है , और मनन के हाथ से जोर से खांसते हुए मखाने ले कर भाग जाता है|
बिंदु उन दोनो के बीच चल रही बात को आगे बढ़ाता है,
और यह गांव का नाम न जाने नीरगढ किस महान आत्मा ने रख दिया , भला रेगिस्तान के किनारे बसे गांव का नाम कोई नीरगढ़ रखता है |
वो महान आत्मा ऋषि आत्माराम थे , कहा जाता था कि यहां पर कई नदी, नाले हुआ करते थे मगर समय के साथ सब सूख गए|
आज तुम्हारी मनोदशा कुछ ठीक नहीं लग रही , क्या हुआ भाभी जी ने खाना नही दिया क्या — यह कह कर ‘मनन‘ हसने लगता है |
बिंदु त्रस्त हो कर कहता हैं— तुम्हे तो हर बात मजाक ही लगती है , यह कह कर वह पीछे मुड़ता है और घर के अंदर चला जाता है|
मनन पीछे से आवाज लगते है , बिंदु बिंदु अरे भाई तुम तो नाराज हो गए|
घर में घुसते ही बिंदु देखता है की रोमा( उसकी पत्नी )उसकी तरफ चावल की थाली ले कर आ रही है |
रोमा — डिब्बे में से बस इतने से ही चावल निकल , आज का गुजारा तो हो जाएगा, मगर कल का क्या , गांव की ऐसी हालत है की किसी के घर अनाज मांगने भी नहीं जा सकते |
तुम अपने मालिक से कहते क्यों नहीं कि वो तुम्हें कुछ पैसे उधार देदे
ऐसा नहीं हो सकता
लेकिन क्यों नहीं , तुम तो कहते थे उनके पास बहुत पैसा है , कई नौकर चाकर हैं उनके |
क्योंकि मैं अब वहां काम नहीं करता , मालिक ने सभी मजदूरों को निकाल दिया , शहर मैं काम मिलना बहुत मुश्किल हो गया है , अलग अलग जगहों से कई मजदूर शहर मैं काम करने लग गए हैं , वहां काम मिलना मतलब शेर के मुँह से निवाला निकलने के बराबर हो गया है|
तो यह बात तुमने मुझे आज तक क्यूं नही बताई , अगर तुम मुझे पहले यह बता देते तो मैं कोई छोटा मोटा काम कर लेती , किसी के घर बर्तन धो देती , किसी के कपड़े , जिससे 2 वक्त की रोटी तो नसीब हो जाती|
अच्छा मतलब तुम चाहती हो कि तुम काम करो और मैं यहां बैठ कर मजे से खाओ , ताकि लोग मेरे मुंह पर थूके और कहें की यह देखो आज के मर्द अपनी बीवी की कमाई खाने मैं लगे हुए हैं , दो आदमी नही पाल सकता यह नकारा|
लोगों की चिंता है तुम्हे मगर खुद के बीवी , बच्चों की नहीं , निर्वाण की दवाई का क्या वो कहां से आएगी |
धीरे धीरे दोनो ने अपने शब्दों की धवनी बढ़ा ली, चिंगारी अब आग में बदलने लग गई थी , दोनो गड़े मुर्दे उखाड़ने लग जए|
बिंदु अपने क्रोध पर काबू न रख सका और पानी का ग्लास रोमा की तरफ दे मारा , ग्लास रोमा के माथे पर जा लगा | उस एक क्षण के क्रोध ने बिंदु से यह क्या करा दिया , बिंदु ग्लानि मैं दौड़ता हुआ रोमा के पास जाता है जिसने अपना माथा पकड़ रखा होता है, लेकिन वह जैसे ही उसे हाथ लगाता है वह उसे धक्का मार देती है और अपने से दूर कर देती है | बिंदु शर्मसार होकर घर से बाहर चला जाता है |
बिंदु की गांव मैं काफी इज्जत थी , सभी उसे काफी सुलझा हुआ समझते थे मगर आज उसकी सारी समझदारी पानी में फेंके हुए पत्थर की तरह जो कुछ देर तक तो पानी मैं उछलता है मगर अंततः डूब ही जाता है उसकी तरह डूब गई|
मर्द की जेब जब तक धन से भरी हो वह तब तक ही काबू में रहता , जिस धन से वो अपने परिवार को जोड़ के रखता है वोही उसे तोड़ने का कार्य भी कर देता है |
भाग कर निर्वाण अपने मित्र रवि के घर चला जाता है और उसे खेलने के लिए बाहर बुलाता है, रवि गाड़िया लोहार समुदाय का था ,राजस्थान की घुमंतू जनजाति गाड़िया लोहार को उनके अनोखे और कठोर प्रण के लिए जाना जाता है। इस समुदाय का संबंध कभी राजस्थान की शाही भूमि से था |
दोनो एक दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर अपने पैरों से धूल उड़ाते हुए गांव का चक्कर लगाने चल पढ़ते हैं|
चलते चलते वह ठाकुर साहब के घर से गुजर ही रहे होते है कि अचानक से एक गेंद उनके सामने उछलते हुए आती है और सामने लगे पेड़ पर टकराकर रुक जाती है | वह दोनों गेंद को देख ही रहे होते हैं की तभी ठाकुर साहब का पोता रोहन घर के दरवाजे से बाहर आके आवाज लगाता है
यह गेंद यहां फेंक दो
निर्वाण गेंद की तरफ देखता है और उसे उठाने के लिए आगे बढ़ता है , गेंद हाथ में ले कर वह रोहन से कहता है
क्या मैं भी तुम्हारे साथ खेलने आ सकता हूं
रोहन थोड़ा संकोच करते हुए हां बोल देता है
निर्वाण और रवि रोहन के घर की तरफ चल पढ़ते हैं , निर्वाण आगे आगे चल रहा होता है I
दरवाजे के समीप पाउंचते ही एक लंबा सा आदमी निर्वाण के सामने खड़ा हो जाता है , इस से पहले निर्वाण उसे एक तरफ होने को कहता , उसने बोला अंदर कहां चला आ रहा है हमारा धर्म भ्रष्ट करेगा यह गेंद यहां रख दे और चला जा यहां से I निर्वाण असमंजस में पढ़ गया उसे समाज नही आ रहा था की वह आदमी ऐसा क्यों बोल रहा है , गांव में आज तक किसी ने भी उस से ऐसे बात नही की थी , वह तो सब का प्यारा था तो आज फिर ऐसा व्यवहार क्यों I यह सब निर्वाण की समझ से परे था I
रवि ने पीछे से उसका हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ वहां से ले गया , कुछ दूर चलने के बाद रवि ने कहा तू चिंता मत कर यह लोग ऐसे ही होते हैं , रवि निर्वाण से एक साल ही बड़ा था लेकिन दुनिया दारी की समाज उस से कई गुना ज्यादा थी I
रवि निर्वाण का दिल रखने के लिए उससे कहता है चल हम भी गेंद ले कर आते हैं और खेलते हैं I
निर्वाण — लेकिन मेरे पास तो गेंद है ही नही , क्या तुम्हारे पास है
रवि — मेरे पास तो नही है , लेकिन कोई बात नहीं गांव का जो टूटा हुआ कुआं है उसके पास एक दुकान है मैने देखा है उसके पास बच्चों की खेलने की कई चीजें है|
दोनो बिना ज्यादा सोचे दुकान के तरफ दौड़ पड़े| दुकान में पहले से कुछ लोग खड़े थे , दोनों ने दूर खड़े होकर अपनी बारी आना का इंतजार | जैसे ही सभी लोग चले गए , दोनो दुकान के पास आ कर खड़े हो गए और अपनी नजरें दुकान की हर चीज पर दौड़ाने लगे , तभी दुकानदार ने दोनो की तरफ देखा और बोला |
बोलिए छोटे उस्ताद क्या चाहिए, जो बोलोगे वो मिलेगा |
रवि मुस्कान लिए आज तो हम केवल एक गेंद लेने आए हैं , क्या आपके पास मिलेगी |
बिलकुल क्यों नहीं , उसने नीचे पड़े डिब्बे में से एक गेंद निकाल कर उन दोनों के सामने रख दी|
रवि — कितने की है यह
दुकानदार — केवल एक आने की , 6 पैसे दो और गेंद ले जाओ
रवि निर्वाण की तरफ देखते हुए तुम्हारे पास कितने पैसे हैं
निर्वाण — मेरे पास तो एक पैसा भी नहीं है , दुकानदार यह सुन लेता है और कहता है अगर पैसे नही है तो गेंद नही मिलेगी , जब पैसे होंगे तब के जाना | दुकानदार गेंद वापिस डिब्बे में डाल देता है|
दोनो उदास हो कर वहां से चले जाते हैं
रवि — हम एक काम करते हैं घर से पैसे ले कर आते हैं और गेंद खरीद लेते हैं|
निर्वाण — यह ठीक रहेगा |
घर जाते समय निर्वाण देखता है की कुछ लोग परेशान भाव से ठाकुर साहब के घर के बाहर खड़े हैं और ठाकुर साहब अपने घर की दूसरी मंजिल से उनसे कुछ बात कर रहे हैं , नीचे पर्चा लिए एक आदमी भी खड़ा है जो एक नजर से ठाकुर साहब को देखता है और दूसरी नजर से लोगों को |
घर पहुंचते ही निर्वाण को कोई भी नहीं दिखाई नहीं दिया , वह ममी ममी पुकारने लगा और ममी के सामने आते ही बोला मुझे भूख लगी है कुछ खाने को दो |
रोमा थोड़ा विचार करती है और फिर मंदिर में भोग लगाए हुए केले को उठा लेती है और निर्वाण को दे देती है |
वह जल्दी से केला खा लेता है और अब सोचने लग जाता है की कैसे वो ममी से पैसे मांगे , क्योंकि आज तक कभी उसने ममी से पैसे नहीं मांगे थे , उसे जो चाहिए होता था वह पहले ही उसे खरीद कर दे देते थे |
निर्वाण ने जैसे तैसे हिम्मत जुटाई और ममी के पास जा कर बोला , मुझे थोड़े पैसे चाहिए
पैसे? किस चीज के लिए
मुझे गेंद खरीदनी है ,
पैसे तो नही मिलेंगे , जबतक निर्वाण इसके जवाब में कुछ कहता रोमा बोल पड़ी — तुम्हारे पास पहले से ही बहुत खिलोने हैं उन से खेल लो, और अभी तुम छोटे हो तुम्हे पैसे नहीं मिलेंगे |
रोमा उसे घर की हालत के बारे में नहीं बता सकती थी , निर्वाण अभी छोटा था घरेलू जीवन के दुखों को समझने की उसकी उमर अभी हुई नही थी |
निर्वाण उदास होकर कमरे में चला जाता है और बिस्तर पर बैठ जाता है , खांसते खांसते वो पीछे की तरफ बेड पर गिर जाता है और वहीं सौ जाता है |
रात्रि के समय एक डॉक्टर उनके घर आते हैं और दोनो को डांटते हुए कहते हैं , यहां कुछ नही होगा तुम्हे इसे शहर लेकर जाना ही पड़ेगा , बीमारी बहुत बढ़ चुकी है और जैसा तुम मुझे बता रहे हो की रात को पसीने से इसका चेहरा भरा हुआ होता है , इसे जल्द से जल्द अच्छे इलाज की जरूरत है | छोटे बच्चों में बीमारी का पता जल्दी नहीं लगता , शरीर अंदर से नष्ट होता रहता है मगर बाहर पता नही लगने देता |
डॉक्टर के जाने के बाद दोनों में फिर झगड़ा हुआ और एक दूसरे को खूब ताने सुनाए गए |
सुबह होते ही बिंदु घर से बाहर चला गया , रोमा ने जाते देखा मगर पूछा नही की कहां जा रहे हो |
रोमा ने पड़ोस से थोड़ा से दूध मांग कर लाया और निर्वाण को पिला दिया |
दूध पीकर निर्वाण को हिम्मत आई और वो बिना बताए खेलने के लिए बाहर चला गया |
रास्ते में उसे रवि उसकी तरफ आते हुए दिखाई दिया |
रवि — कल वापिस क्यों नही आया तू , और पैसे लाया है
निर्वाण अपना सिर झुका कर बोलता है , नहीं...
रवि — मुझे तो सिर्फ एक पैसा दिया पापा ने वो भी दस गलियां देने के बाद | अभी पांच पैसे और चाहिए वो कहां से आयेंगे |
अरे कीड़े पड़े तुम बच्चों को ,मेरी साइकिल की हवा निकाल दी , जिस दिन मेरे हाथ लग गए तो सिर पर एक बाल भी नही बचेगा | अब दूध कैसे पहुंचाउंगा सब के घर |
दोनो दूर खड़े यह सब देख रहे थे , रवि — चल आ मेरे साथ |
रामुकाका क्या हुआ बड़े परेशान लग रहे हो ,
पीछे मुड़ते हुए रामुकाका
कोन! अरे रवि बेटे तुम हो , क्या बोलूं इन बच्चों ने तंग करके रख दिया है ( साइकिल की तरफ इशारा करते हुए ) यह देखो क्या हालत कर दी है |
मेरे पास आपकी समस्या का समाधान है |
वो क्या !
हम दूध बांटने में आपकी मदद करेंगे
यह तो बहुत अच्छी बात है
लेकिन दाम देना होगा
दाम! कितना
पूरे पांच पैसे
यह तो बहुत ज्यादा है , कुछ कम करो
रहने दो फिर
अरे नाराज क्यों होते हो , ठीक है दिए तुम्हे पांच पैसे , लेकिन काम पूरा करना होगा , यह लड़का भी मदद करेगा |
हां बिलकुल हम दोनो काम करेंगे |
दोनों ने एक एक करके भाजन से सब के घर में दूध पहुंचाना शुरू किया | सबके घर जाते, आवाज लगाते , दूध के डिब्बे खोलते दूध डालते और अगले घर की तरफ चल पढ़ते |
आज पहली बार निर्वाण ने इतना काम किया था , एक एक पैसे का दाम उसे समझ आ गया था , आजाद पंछी अब पिंजरे में बंद हो चुका था , अपनी मर्जी से काम करने वाला लड़का आज किसी और के इशारे पर नाच रहा था | दूसरों से ख्वाइश करना जितना आसान होता है उसे खुद पूरा करना उतना ही मुश्किल |
दुपहर को जाकर कहीं काम खतम हुआ, दूध वाले ने पांच पैसे रवि के हाथ में दिए और वहां से चला गया |
दोनो ने पहले जाकर कुएं से पानी पीया और फिर गेंद खरीदने के लिए दुकान की तरफ चल पड़े |
दुकान पर जाकर उन्हें पता चला की सिर्फ एक गेंद बची थी वो ठाकुर साहब का पोता ले गया | दोनो के चेहरे मुरझाए हुए फूल की तरह हो गए , दोनो उदास हो कर वहां से चले गए |
रोमा – अरे ओ रोमा बाहर आना ,घर में सब ठीक हैं न!
क्यों क्या हुआ ऐसा क्यों बोल रही हो
निर्वाण कहां हैं
अंदर होगा
अंदर नहीं है वो , वो तो लोगों के घर दूध बेच रहा है
क्या!... तुम्हे किसने बोला
मैंने खुद देखा है वो और एक ओर लड़का , दूध के भागन लिए घर घर घूम रहे थे |
तुम एक क्षण मेरा घर संभालो में उसे ले कर आती हूं और दौड़ते हुए वहां से चली जाती है |
आज क्या वार है, मंगलवार , सच में हां , क्यूं क्या हुआ
कल ठेलेवाला आएगा और उसके ठेले पी भी मैंने कई बार गेंद देखी है |
कल पक्का हम गेंद ले ही लेंगे | यह सुनकर निर्वाण का चेहरा खिल उठता है |
यह पैसे तुम रखो , जब कल ठेलेवाला गांव में आएगा तब में तुम्हे लेने आऊंगा तयार रहना | फिर
दोनो वहां से चले जाते हैं |
निर्वाण पैसे हाथ में मुठ्ठी में बंद करके घर की तरफ जा ही रहा होता है कि अचानक से खांसते खांसते उसके मुंह से खून की छींटे उसके हाथ पर गिरती हैं घभरते हुए वो पेड़ की तरफ दोड़ता है छाया में बैठने के लिए की उसका पैर पत्थर से टकराता है और वो नीचे गिर जाता है |
रोमा पूरे गांव में उसे आवाज लगती हुई ढूंढ रही होती है , दूर से उसे एक बच्चा पेड़ के नीचे गिर हुआ दिखाई देता है , वह दौड़ कर पास जाती है तो देखती है की निर्वाण बेहोशी की हालत में वहां पड़ा हुआ होता है |
रोमा यह देख कर चीख उठी , रास्ते में चल रहे लोगों ने जब यह दृश्य देखा तो ,दौड़े उसके पास आकर खड़े हो गए , एक आदमी ने निर्वाण को ऊपर उठाया और रोमा के साथ चल पड़ा |
अगले दिन रवि निर्वाण के घर आता है , घर के बाहर ताला लगा हुआ होता है और एक आदमी घर की दहलीज पर घुटनों में सिर दिबाये सिसक सिसक कर रो रहा होता है | कई लोग वहां से गुजरे मगर किसी ने उससे उसका हाल नहीं पूछा |
रवि पीछे मुड़ा और वहां से चला गया
