Kavita Verma

Inspirational

4.8  

Kavita Verma

Inspirational

खिल गई कुमुदिनी

खिल गई कुमुदिनी

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सारा दिन भागदौड़ टेस्ट एक्स-रे एम आर आई और इस काउंटर से उस काउंटर इस मंजिल से उस मंजिल तक भागते दौड़ते नेहा पस्त हो गई थी तन से भी और मन से भी। उसके पति परेश को अभी वार्ड में शिफ्ट किया। सेमी प्राइवेट रूम का कोने वाला बेड उसके बगल में दो फीट की एक गद्देदार बेंच है और दीवार पर एक खिड़की जिस पर हरा पर्दा डला है। परेश हाथ में पट्टियों के सहारे स्थिर की सुई में बोतल की सीरीज लगाए अध बेहोशी अधनींद की हालत में है। नर्स कुछ दवाइयां इंजेक्शन कॉटन ट्रे में रखकर पलंग के पैताने लगे चार्ट पर कुछ नोट करके जा चुकी है। उस कमरे के बीच का एक बेड खाली है और दूसरे कोने में दरवाजे की तरफ एक बुजुर्ग पेशेंट है। 

परेश पर एक नजर डालकर नेहा बगल में पड़ी उस बैंच पर बैठ गई। उसके पैरों में गहरी टीस सी उठी जो उसकी कमर से होते हुए रीढ़ तक फैल गई। उसके मुँह से एक सिसकारी निकली सूखे होंठों पर जीभ फेरते उसे याद आया कि उसने बहुत देर से पानी नहीं पिया है। उसके पास पानी था भी नहीं और न पानी पीने जाने की हिम्मत ही उसमें बची थी। 

उसने खिड़की का पर्दा हटा कर बाहर झांका बाहर एक छोटे सूखे मैदान के पार एक छोटा सा पोखर था। डूबते सूरज की सिंदूरी किरणें हवा से बनी पानी की छोटी-छोटी लहरों को सिंदूरी आभा दे रही थी तो आसमान का स्लेटी सियाह रंग पानी को अपने रंग में रंगने के लिए उसमें समाता जा रहा था। पोखर में कुछ कुमुदिनी दिनभर अपनी खुशबू और छटा बिखेर कर अपनी पंखुड़ियों को समेटकर गहन उदासी में डूबी हुई थी। इस दृश्य ने नेहा को और अधिक हताश कर दिया उसने पर्दा छोड़ दिया और सोच में डूब गई। 

परिवार की छोटी बेटी माता-पिता की लाडली नेहा जिसे माता-पिता पलकों पर बैठा कर रखते थे तो उसका बड़ा भाई राहुल सिर पर। उसके मुँह से निकली बात निकलने से पहले पूरी हो जाती। नेहा को रसगुल्ला खाना है पापा रात नौ बजे स्कूटर लेकर निकल जाते। नेहा को सहेली के यहाँ जाना है राहुल बाइक से छोड़ने लेने चला जाता। नेहा के कॉलेज की फीस भरना है पापा ऑफिस जाते भर देंगे मूवी जाना है भाई टिकट लाकर दे देगा। नेहा सहेलियों के बीच अपने परी जैसे स्टेटस की तारीफ करते नहीं थकती। घर के कामों में मम्मी का हाथ जरूर बंटाती लड़की को सब कुछ आना चाहिए लेकिन ऊपर टांड पर से कनस्तर उतारने के लिए भाई को बुलाया जाता तो गैस की टंकी लगाने पापा को। नेहा को न कभी किसी ने ऐसे काम करने को कहा और न उसने कभी ऐसी कोई इच्छा जताई। सुंदर पढ़ने-लिखने में होशियार खाना बनाने में दक्ष बोल चाल में निपुण नेहा को परेश और उसके माता-पिता ने देखते ही पसंद कर लिया था।

बी ए फाइनल किया ही था उसने कि चट मंगनी पट ब्याह कर वह खूबसूरत लाल जोड़े में लिपटी परेश की जिंदगी में आ गई। 

परेश के शरीर में हुई हरकत ने नेहा को चैतन्य कर दिया। प्यास के मारे उसका गला ही नहीं आंतें भी सूखने लगी थीं। वह उठ खड़ी हुई बाजू वाले पेशेंट के अटेंडेंट से ध्यान रखने और वाटर कूलर का पता पूछ कर वह पानी पीने चली गई। अस्पताल के गलियारे लोगों और उनके कोलाहल से भरे हुए थे इनके बीच नेहा का अकेलापन और मुखर हो उठा। मम्मी पापा का फोन भी नहीं आया फोन की याद आते ही वह तेजी से वार्ड की तरफ भागी। फोन दिनभर से पर्स में पड़ा था। दोपहर में जब परेश को एम आर आई के लिए ले गए थे तब उसने घबराते हुए मम्मी-पापा और सास-ससुर को फोन किया था। उसके बाद न उसे समय मिला न मोबाइल का होश ही रहा। नेहा ने देखा छह-सात मिस कॉल थे। वह मोबाइल उठा कर फिर बाहर आ गई। पहले सासू जी को फोन लगाया वह बहुत परेशान थी। परेश के हाल चाल बता कर वह पूछने ही वाली थी कि आप कब आओगे तभी सासु माँ ने राहत की साँस लेते हुए कहा बेटा अब तुम वहाँ सब संभाल ले रही हो और परेश भी अब ठीक है तो बेटा हम अब जरा निरात से आएंगे। तुम्हारे पापा जी के ऑफिस में ऑडिट चल रहा है। मम्मी पापा ने भी आने में असमर्थता जताई। भाई राहुल विदेश गया था पापा को टाइफाइड हुआ है मम्मी भी उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकतीं। नेहा थके कदमों से वापस आकर बैठ गई। 

आज सुबह भी रोज की तरह परेश खाने का डब्बा टाँग हेलमेट सिर में फँसा कर आफिस जाने के लिए निकला था। उसे विदा कर वह अंदर आकर बैठी ही थी कि उसका मोबाइल बजा परेश का फोन था। एक शरारती हंसी उसके होठों पर तैर गई। उसने फोन उठाकर लो को लंबा खींचते हुए हेलो कहा लेकिन दूसरी तरफ से अजनबी आवाज ने उसे चौंका दिया। किसी राह चलते व्यक्ति ने उसे बताया कि परेश की बाइक चौराहे से पहले ही स्लिप हो गई है और डिवाइडर से टकराने से वह बेहोश हो गया है। बदहवास नेहा ने पर्स मोबाइल लिया किसी तरह ताला लगाया और दौड़ती हुई वहाँ तक पहुंची। परेश बेसुध पड़ा था किसी ने उसकी बाइक खड़ी कर दी थी और मोबाइल से स्वीटहार्ट के नंबर पर उसे फोन कर दिया। शुक्र था भीड़ में उसे कॉलोनी के एक अंकल दिख गये और उसने उनसे बाइक का ध्यान रखने और घर पहुंचाने का अनुरोध किया। वह परेश को हॉस्पिटल लेकर आई। 

नर्स ने आकर ड्रिप बदल दी सिस्टर कब तक होश आयेगा उसने पूछा। 

जल्दी ही आ जाएगा थोड़ा बीपी बढ़ा था इसलिए दवा में नींद का डोज है। आप नीचे कैंटीन में जाकर कुछ खा लीजिए हम यहाँ ध्यान रखेंगे नर्स उसके भूखे प्यासे क्लांत चेहरे को देखकर स्नेह भरे स्वर में बोली। 

इन्होंने भी तो कुछ नहीं खाया। 

उनको बॉटल से सब मिल रहा है तुम खा कर आओ तुम्हें भागदौड़ करना है सिस्टर ने समझाया। 

कभी-कभी परेश कितना चिढ़ जाता था जब नेहा उसे गैस का सिलेंडर बदलने बिल भरने सब्जी लाने का कहती। वह उसे समझाता था कि छोटे-मोटे काम करना आना चाहिए। कभी जरूरत पड़ी तो यहाँ इस अजनबी शहर में हम दोनों अकेले हैं कैसे संभालोगी तुम ? 

वह अपनी हथेली उसके होंठों पर रख देती मुझे कभी कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। 

परेश झुंझलाता ऐसा भी क्या लाड प्यार कि एक अच्छी भली लड़की को परजीवी बना दें और नेहा नाराज हो जाती। आज दिनभर हर बार किसी काउंटर पर खड़े उसकी टांगें कांपती रहीं कुछ पूछने में जबान लड़खड़ाते रही। आज उसे परेश की कही हर बात की गंभीरता समझ आई। क्या सच में लाड प्यार में उसे पूरी तरह विकसित नहीं होने दिया गया ? उसका मन आक्रोश से भरने लगा। 

परेश गहरी नींद में था वह पास की बेंच पर लेट गई। मम्मी पापा भाई के लाड प्यार और उसके व्यक्तित्व के एक हिस्से के कमजोर रह जाने के बारे में सोचते सोचते उसकी आँख लग गई। सुबह कमरे में फैली रोशनी से उसकी आँख खुली उसने देखा परेश भी जाग गया है। उसने राहत की सांस ली। परेश के चेहरे पर चिंता झलकी जिसे उसने पलक झपका कर आश्वस्त किया। फिर पर्दा हटाकर देखा पोखर में गुलाबी कुमुदिनी खिली थी। उसके चेहरे पर अपने व्यक्तित्व को निखारने के प्रण की खुशबू बिखर गई।


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