ख़ामोशियाँ
ख़ामोशियाँ
आज सुधा को घर के कामों से थोड़ी सी फुर्सत मिली थी तो उसने सोचा कि चलो शाम को थोड़ी सी ताजी हवा का आनंद ले लिया जाए। यही बात सोच कर वो बालकनी में एक कुर्सी लेकर बैठ गई। उसके घर की बालकनी से पार्क दिखाई देता था जहाँ पर आज काफी दिनों बाद कुछ बच्चों की चहल पहल हो रही थी।
वहाँ पर एक बैंच पर एक लड़का बैठा हुआ था। सुधा ने उसे पहली बार उस पार्क में देखा था। शायद वो लड़का सोसायटी के किसी घर पर बतौर मेहमान आया हुआ था। वो लड़का ना तो किसी से बात कर रहा था और ना ही किसी बच्चे के साथ खेल रहा था। बस चुपचाप जमीन को एकटक देखता रहा।
अब ये उसका रोज का नियम हो गया था और सुधा की दिलचस्पी भी उस बच्चे में बढ़ने लगी। एक दिन जब सुधा ने देखा कि उसकी सोसायटी की एक महिला उस बच्चे के साथ आई थी तब सुधा ने आगे बढ़ कर उस लड़के के बारे मे जानने की कोशिश की और जो कुछ उसे मालूम हुआ वो बहुत ही दुखदायी था।
यह लड़का अपने माता पिता के साथ रहता था जब कोरोना का कहर बरपा और उन दोनों की मौत हो गई। उन दोनों की मौत के बाद अब इस लड़के को अनाथालय भेजने के लिए इसकी देखभाल करने का जिम्मा मुझे मिला है।
अब सुधा उसके दिल का दर्द, उसके दिल की ख़ामोशियाँ समझ पा रही थी। जिसे तोड़ना आसान नहीं होगा।