Ranjeet Yadav

Romance Inspirational Thriller

4.5  

Ranjeet Yadav

Romance Inspirational Thriller

कहानी- "पहली मुलाकात"

कहानी- "पहली मुलाकात"

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मेरी और उसकी पहली मुलाकात तब हुई, जब मैं कमरें में अकेले बैठकर पढ़ाई कर रहा था। मैं उपन्यास पढ़ने में व्यस्त था। तभी बाहर किसी के आने की आहट सुनाई पड़ी। दरवाजा खोलकर देखा तो देखता ही रह गया कितनी सुन्दर कितनी भोली कितनी प्यारी थी वह । इतनी सारी सुन्दरता जैसे सावन बन कर अभी बरस पड़ेगी। फिर मेरी नजर उसके शरीर पर लगे घाव पर पड़ी जिससे अब भी खून की बूँदें लगातार टपक रही थीं। मैंने देखा की वह कष्ट से परेशान है और उसे मेरी सहायता की सख्त आवश्यकता है। मैं बिना कुछ पूछें ही उसे अपने कमरे में ले गया। उसके घाव को धोकर मरहम पट्टी की। मुझे लगा कि इससे वह काफी राहत महसूस कर रही थी। वह मुझे प्यार से ऐसे देख रही थी मानों मैं उसका बरसों बिछड़ा यार आज फिर से मिल रहा हूँ। मैं भी अपनी किस्मत पर फूले न समा रहा था। मैंने उसे आराम करने के लिए दूसरे कमरे में छोड़ दिया और उसके खाने पीने का सामान उसके कमरे में ही रख दिया।पूरी रात मुझे चैन से नींद नहीं आयीं। मैं उसी के बारे में सपना देखता वही सुन्दरता ..... वही कोमलता ... और साथ में उसका दर्द भी। सपनों के संसार में पंक्षियों के साथ आसमान की सैर कर रहा था। सुबह मैं जल्दी ही उठ गया। सबसे पहले मैं उसके कमरे में गया जहाँ वह सोयी थी, मैंने देखा कि उसने कुछ खाया-पिया नहीं था और उसकी आंखों की बेचैनी से पता चल रहा था कि वह रात भर सोई नहीं थी। सुबह फिर से मैं उसके लिए भोजन पानी रखकर और खुद खाना खाकर कॉलेज चला गया। लेकिन कालेज में मेरा मन उतना नहीं लग रहा था जितना लगना चाहिए। अनमन्यसक्ता ने अपनी सारी हदें तोड़ डाली।

मुझे बार-बार पहली मुलाकात का वही दृश्य याद आ रहा था। मेरी आँखों के सामने चलचित्र की तरह उसकी ही तस्वीर बार-बार उलट पुलट रही थी। किसी ने कहा था कि "प्रेम टेबिल लैम्प नहीं है कि प्लग जोड़ा, स्विच दबाया और रोशनी जल गयी। अपनी दोनों हथेलियों से रगड़कर आग पैदा करनी पड़ती है। तब जाकर प्रेम की खीर पकती है।" लेकिन मेरी खीर बिना आग और पानी के बनते नजर आ रही थी। कॉलेज से लौटकर मैं सीधे उसके कमरे की तरफ गया उसकी एक झलक पाने के लिए मैंने देखा कि वह बिना खाये पीये कमरे में बेचैन होकर टहल रही थी। उसके इशारों से पता चल रहा था कि "उसे मेरा दिखावटी प्यार नहीं बल्कि उसे उसकी स्वतंत्रता चाहिए। वह किसी के अधीन रहकर जीवन जीना नहीं चाहती थी।"    मेरा मन अन्दर ही अन्दर बोल पड़ा.... आखिर क्यूँ? मैं उसकी परेशानी का कारण नहीं समझ पा रहा था। बहुत देर तक सोच विचार करने के बाद मैंने उसे स्वतंत्र कर देने का निर्णय किया। मैं अपने ही फैसले पर दंग था कि किस प्रकार उसकी याद आने पर अपने दिल को समझाऊंगा।

"प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह तो हमेशा देता है, कष्ट सहता है और कभी झुंझलाता नहीं, यही सोचकर मैं अपने आपको समझाया तथा उसे छोड़ देने में ही अपने प्यार को सच्चा समझा।     मैंने उसे गोमती की नाव पर बैठाकर विदा कर दिया। वह अपनी सुरीली आवाज में गा रही थी.. 'नदिया किनारे मोरा गांव हो घर पहुंचा दा देवि मइया' । वह चहचहाती और मुस्कुराती रहे यही मेरी भगवान से प्रार्थना है। मेरा प्यार सच्चा है तो मेरी प्रार्थना भी जरूर सच्ची होगी। फिर कब कब मिलेगी वह विदेशी?   क्या यह मेरी पहली मुलाकात आखिरी मुलाकात होगी? लव-स्टोरी मेरी और एक प्रवासी पक्षी की है, जो गरमी से बचने के लिए कुछ दिनों के लिए भारत आयी थी और पतंग के मंझों से घायल होकर मेरे कमरे के सामने गिरकर छटपटा रही थी। मैंने उसे मरहम पट्टी कर उसके घाव को ठीक किया। मैंने देखा कि वह तैराक सी दिखती थी सो मैंने उसे गोमती नदी में छोड़ दिया। वह चली जा रही थी एक अनजान शहर की तरफ उसकी मासूम आँखें कह रही थीं- "धन्य है भारत देश ! ... धन्य है भारत की संस्कृति ! और धन्य है भारत माँ की सन्तान .... जो आज भी स्वतंत्रता के महत्व को समझते हैं।" 


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