कहानी एक पत्ते की
कहानी एक पत्ते की
कहानी एक पत्ते की और पतझड़ में अपनी अस्तित्व को खोने की डर।
मौसम था वो बारिश का जब एक बड़ा सा वृक्ष फिर से हरियाली बन चला था। पेड़ के शाखाओं में नए छोटे छोटे पत्ते इस दुनिया की खूबसूरती को महसूस करने लगे थे। वृक्ष के आगोश में खुद को सुरक्षित मानते थे ये पत्ते। हवाओं के संग झूमना और बारिश के बूंदों के साथ खेलना और कभी कभी पंछियों की बातें सुनना , उन पत्तों के लिए मानो जैसे दुनिया जहान की खुशियां उनके कदमों में आ गिरा है। इन लम्हों के साथ वक्त बीतता गया और पत्ते बड़े होने लगे और देखते देखते मौसम भी बदलने लगा। ये मौसम था पतझड़ का जहां सर्द हवाओं के असर से पत्ते सूखने लगे थे।
मगर जब तक वृक्ष से जुड़े थे, तब तक खुद को खुश नसीब मानते थे। सर्द दो पहर की बात है ये और अचानक से हवाएं बड़ी तेज बहने लगे थे। तब एक पत्ता हवा को झोंका बर्दाश्त न कर पाया और पेड़ के आगोश से छूट के नीचे गिरने लगा जैसे की मां का साया छूट गया हो । आसमान से गिरते गिरते रोते बिलकते हुए आश भरी निगाहों से माँ मा करँके पुकार रहा था। मां....
मां........ मां....... मुझे तुझसे दूर नही जाना है मां...मानो पलकें आँसुओं से नम हो और पुकारता हो अपनी माता वृक्ष को फिर से अपनी आगोश में भरने के लिए। जितना ही जमीन की करीब आता पत्ते की तड़प और बढ़ जाता । दूसरे तरफ वृक्ष भी पत्ते के गिरने से जितना तड़प रही थी उससे ज्यादा अपनी बेबसी और लाचारी के वजह से खुद को गुनहगार मान रही थी। चाहते हुए भी वो अपने बच्चे को बचा ना पाई। आखरी पल तक भी पत्ते की ये उम्मीद थी कि माता वृक्ष उसको जमीन में गिरने नहीं देगी मगर लाखों उम्मीदों को दफना के, आँसुओं को बहाते-बहाते और वृक्ष को ताकते ताकते जमीन में गिर पड़ा। जमीन पे गिरनेके बाद भी वो माँ को देख रहा था के काश में माँ के पास वापस चला जाऊँ।पर कुदरत के कानून से बंधा ये संसार को कुछ और ही मंजूर था। कूची पलों में धीरे धीरे उस पत्ते की आंखें बंद हो गई।
पेड़ में हजारों पत्ते जन्म लेते है और कुछ वक्त के बाद गिर जाते हैं। मगर वृक्ष अपने स्थान में डटकर सालों से गवाह बनकर अपने बच्चों को झड़ते हुए देखते हैं और उस तड़प के साथ उम्र भर जीते हैं।