Mukesh Singh

Abstract

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Mukesh Singh

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खाकीवाले

खाकीवाले

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आमतौर पर पुलिसवालों को देखते ही लोगों के मुंह से स्वयं ही अपशब्द निकलने लगते हैं। कुछ पुलिसवालों को देखकर तो लोग इस कदर आगबबूला हो जाते हैं कि जैसे मानो भारत के सबसे बड़े शत्रु आईएसआई का कोई गुर्गा उनके सामने आ खड़ा हुआ हो। और इसके जिम्मेदार हैं पुलिस विभाग में कार्यरत कुछ भ्रष्ट और दोगले किस्म के पुलिसवाले। जिन्होंने अपने कर्मों से या यूं कहें तो अपनी करनी से पूरे डिपार्टमेंट का बंटाधार किया हुआ है। पर यहां हमें इस बात को भी स्वीकारना होगा कि बाकी के डिपार्टमेंट्स की तरह यहां भी अच्छे लोगों की कोई कमी नहीं है। और ऐसे निष्ठावान और ईमानदार लोगों के दम पर ही पुलिस डिपार्टमेंट टिकी हुई है। और ऐसे ही एक ईमानदार और निष्ठावान अफसर का नाम है ए.सी.पी सूर्या। ए.सी.पी सूर्या अपने डिपार्टमेंट में एक बहुत ही कड़क और अनुशासित अफसर के तौर पर जाना जाता है। सरकारी स्कूल के एक रिटायर्ड प्रिंसिपल का बेटा जो एक मीडिल क्लास फैमिली से belong करता है, वह अपनी मेहनत, इच्छाशक्ति और काबिलियत के बल पर यहां तक पहुंचा था और शायद यह एक स्कूल मास्टर की परवरिश का ही नतीजा है जो आज तक वह सच्चाई और ईमानदारी के पथ पर अडिग खड़ा है। यह एक स्कूल मास्टर का अनुशासन ही है कि एक लंबे अवधि की नौकरी में वह कभी भी देर से दफ्तर नहीं पहुंचा था। और आज भी वह जल्दी-जल्दी ऑफिस के लिए तैयार हो रहा था।


"अरे जल्दी चाय लाओ यार, मैं देर हो रहा हूं ड्यूटी के लिए।" - अपनी वर्दी पहनते हुए उसने अपनी बीवी को आवाज लगाई ।


"बस लाई, दो मिनट रुक जाईए ।" किचन से उसकी बीवी ने जवाब दिया ।


"ओके यार, पर जरा जल्दी करो ।" सूर्या बरामदे में रखे हुए सोफे पे बैठते हुए बोला ।


उसने पास की टेबल पर रखे अखबार को हाथ में लेकर फ्रंट पेज पर नजर दौड़ाते हुए अपनी दाढ़ियों को खुजलाया ।


इतने में उसकी पत्नी हाथ में चाय का ट्रे लेकर उसके पास आकर बोली - "लो जी , ए आपकी चाय और ये आपका नास्ता ।"


"वो!! तो मैडम चाय के साथ नास्ता भी बना रही थीं ।" उसने नास्ता स्टार्ट करते हुए कहा ।


"जी, इसीलिए थोड़ी देर हो गई ।" मुस्कुराते हुए बोली प्रिया ।


"कोई बात नहीं. और इस लजीज नाश्ते के लिए शुक्रिया"


"मेंशन नॉट,ये मेरी ड्यूटी है "- प्रिया ने सहजता से सूर्या के धन्यवाद का जवाब दिया ।


सूर्या ने फटाफट नास्ता किया और अपनी खूबसूरत सी पत्नी के गालों पे एक मीठी सी चुम्मी दी और ड्यूटी के लिए निकल गया ।


उसके जाने के बाद उसकी बीवी ने सारे बर्तन समेटे और किचन की ओर चल दी ।


इधर सूर्या थाने में अपनी मेज पे पड़ी फाइलों में कुछ ढूंढने की कोशिश कर रहा था । इतने में बाहर से शोरगुल की आवाज आकर उसके कानों में समाई । उसने बाहर से आती आवाज को ठीक से सुनने का प्रयत्न किया । किसी लड़की के रोने की आवाज थी ।


वो बाहर निकला और पास खड़े कोंस्टेबल की ओर देखकर बोला- "क्या हुआ है राम? रो क्यों रही है ए लड़की ?"


कोंस्टेबल के कुछ बोलने से पहले लड़की खुद ही उसके तरफ लपकी और हाथ जोड़कर रोते हुए बोली - "साहब , मैं गवर्मेंट स्कूल की छात्रा हूं । आज सुबह जब मैं अपनी सहेली के साथ स्कूल के लिए निकली तब कुछ लड़कों ने मेरी सहेली को अपनी गाड़ी में खींच लिया और उसको लेकर गाड़ी दौराते हुए भाग गए। सर, मैं काफी समय से इन पुलिस वालों से रिक्वेस्ट कर रही हूं कि मेरी सहेली को बचा लो,पर ये हैं कि सुनते ही नहीं।"


"रामसिंह?”- सूर्या गुस्से में अपने नथूनों को फुलाते हुए थाने में बैठे हुए पुलिस वालों की ओर देखकर चौंका ।

सबने सिर झुका लिया। उनकी आँखों में

"प्लीज सर जल्दी कुछ किजीए ।" हड़बड़ाते हुए लड़की ने हाथ जोड़े ।


सूर्या ने कोंस्टेबल से गाड़ी निकालने को कहा और दो पुलिस वालों को साथ लेकर लड़की को ढूंढने निकल पड़ा ।


उसने मोबाईल पर पेट्रलिंग यूनिट को सचेत किया और जल्द से जल्द उस 'इनोवा कार को ढूंढ निकालने का निर्देश दिया और पास बैठी लड़की से उन लड़कों को बारे में पूछताछ करने लगा ।


इतने में ड्राविंग सीट पर बैठे कोंस्टेबल ने सूर्या को पुकारते हुए कहा -" सर, वहां सड़क किनारे कुछ भीड़ लगी हुई है । मेरे ख्याल से हमें देखना चाहिए कि वहां क्या हुआ है ।"


सूर्या ने हां में सिर हिलाया ।


इतने में सूर्या के बगल में बैठी हुई बबली ने घबराते हुए कहा - "पर सुनीता?"


"हम उसे भी ढूंढेगे । पर पहले यहां क्या हुआ है ए तो देखने दो ।" सूर्या ने उसे ढांडस बंधाते हुए अपनी ड्यूटी याद दिलाई और उसे गाड़ी में ही बैठने को बोलकर नीचे उतरा और भीड़ को चिरते हुए आगे बढ़ा । भीड़ के बीच एक सोलह साल की लड़की खून से लथपथ मृत अवस्था में पड़ी हुई थी । उसके सारे कपड़े फठे हुए थे । उसे देखकर लगता था की उसके ऊपर गाड़ी चढ़ाई गई है ।


सूर्या ने कोंस्टेबल को इशारा से कुछ कहा।


कोंस्टेबल गाड़ी की ओर बढ़ा और बबली से जाकर बोला - "चलो, साहब तुम्हे बुला रहे हैं ।"


उसकी बात सुनकर बबली घबराते हुए गाड़ी से उतरी और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी ।भीड़ को हटाते हुए वो अन्दर पहुंची और नीचे पड़ी लाश को देखकर जोर से चिल्लाई - "सुनीता...."


और सुनीता की लाश को अपनी बाहों में भरने के लिए जैसे ही वो आगे बढ़ी कि अचानक से सूर्या ने उसे बीच में ही लपक लिया । उसे वहां से दूर हटाते हुए उसने पास खड़े कोंस्टेबल को तुरंत एंबुलेंस बुलाने का निर्देश दिया ।


इधर बबली की हालत खराब हो रही थी। वह डर के मारे थरथर काँप रही थी। उसकी सिसकियाँ रूकने का नाम नहीं ले रही थी। उसकी आँखों में एक अजब सा डर एक अजब सा आतंक दिख रहा था, जैसे अब शायद अगला नंबर उसका हो।


उसकी ऐसी हालत देखकर सूर्या का दिल भी बैठा जा रहा था। पर उसने खुद पर काबू पाते हुए बबली को संभालने की कोशिश की । वह उसे ढांढस बंधाते हुए खुद ही उसे उसके घर तक छोड़ने गया। घर पहुंचकर उसने बबली की मां से उसे संभालने की गुजारिश की और तुफान की गति से वह वहां से निकला। गाड़ी की तेज गति सूर्या के मन में उठ रहे तुफान का सारा हाल बयां कर रही थी।


क्राइम सीन पर पहुंकर उसने फॉरेंसिक वालों से सभी डिटेल्स को बड़ी ही बारीकी से देखने और इकट्ठा करने का निर्देश दिया। उसके मन में एक अजीब साथ हलचल मची हुई थी। उसके चेहरे का हावभाव देखकर ऐसा लग रहा था कि अगर उसे अभी पता चल गया होता कि यह सब किसने किया है तो वह उनकी खाल खींच लेता। चेहरे पर गुस्सा और मायूसी दोनों साफ झलक रही थी।

*****

थाने पहुंचकर उसने सभी पुलिस वालों को अपनी केबिन में बुलवाया और पुलिस की तीन अलग-अलग टीम बनाकर उन्हें अपराधियों की तलाश तेज करने का निर्देश दिया। पुलिसवालों की ओर से किसी तरह की लापरवाही न हो इसलिए उसने उन्हें चेतावनी देते हुए सख्त लहजे में यह साफ कर दिया था कि अगले 24 घंन्टों में उसे सुनीता के हत्यारे और उसकी हत्या में इस्तेमाल की गई गाड़ी दोनों चाहिए । उसने यहां साफ कर दिया था कि अगर किसी ने इस केस में जानबूझकर या अनजाने में भी कोई लापरवाही बरती या गलती की तो उसे तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया जाएगा और उसपे डिपार्टमेंटल इंक्वायरी बैठायी जाएगी ।


उसके निर्देश से पुलिस तुरंत हरकत में आई और गुनहगारों को पकड़ने के लिए ठोस कदम उठाने लगी । पूरे शहर में नाकाबंदी कर दी गई। पुलिस की हर यूनिट को एलर्ट पर रख दिया गया। मुखबिरों को डबल टीप का ऑफर देकर तुरंत काम पर लगाया गया। पुलिस चप्पे-चप्पे पर उन आदमखोरों को ढूंढ रही थी। और मेहनत ने अब रंग दिखना शुरू कर दिया था। दो घंटे में ही एक इंस्पेक्टर ने वारदात में इस्तेमाल की गई गाड़ी बरामद कर ली थी। पर गुनाहगार अब भी उनकी पहुंच से दूर थे । लेकिन इतना तो तय था कि अब वे बहुत जल्द कानून के शिकंजों में आने वाले थे।


सूर्या इस केस को खुद ही मॉनिटर कर रहा था । रहरहकर बबली का डरा हुआ चेहरा उसकी आंखों के सामने झलक उठता था, जो उसे चैन से सांस तक नहीं लेने दे रहा था। ये केस उसके लिए अब एक चैलेंज बन गया था । एक काबिल पुलिसवाले के रुप में आज उसे इस शहर की लड़कियों से आंख मिलाने में घबराहट हो रही थी । क्योंकि शहर का ACP होने के नाते उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उसी के कंधों पे थी और आज की इस घटना ने यह साबित कर दिया था कि वह अपनी ड्यूटी निभाने में असफल रहा है । उसकी इस असफलता ने उसे आत्मग्लानि के भंवर मेंं ऐसा डूबोया था कि अब वह अपने आप से भी नजर नहीं मिला पा रहा था । मन मेंं जगी शर्मिंदगी उसे बस खाये जा रही थी । आँखों में दिख रहे लाल डोरे उसकी तड़प को साफ जाहिर कर रहे थे। उसके मन हजारों ख्याल एक साथ हिलोरे मार रहे थे ऐसे में एक कोंस्टेबल उसके कैबिन में आकर कुछ फाईलें उसे देते हुए बोला - "सर , गाड़ी का पता चल गया है । गाड़ी इलाके के एम.एल.ए. के बेटे के नाम पर रजिस्टर्ड है ।"


"क्या?" 440 वोल्ट का करंट लगने सा चौंका सूर्या ।


"जी सर । और एक बात सर, एम.एल.ए का बेटा एक नम्बर का शराबी और लुच्चा है । उसके नाम पर कई केस दर्ज हैंं । पर बाप की पावर की वजह से आजतक वह कानून की गिरफ्त में नहीं आया और अबतक आजाद घूम रहा है।"


"राम, ए केस अब बहुत हंगामा मचाने वाला है । तैयार रहो एक धर्म युद्ध के लिए। समय आ गया है अब हमें इन बाहुबलियों को इनकी असली औकात दिखानी होगी।" -चिंता की एक लकीर उसके माथे पर साफ दिख रही थी ।


तभी अचानक से एक इंस्पेक्टर अंदर आते हुए बोला - "सर, हमने बहुत कोशिश की पर लड़कों का कहीं कुछ पता नहीं चल पाया है ।"


"लड़को का पता चल गया है इंस्पेक्टर साहब। आप बस अपनी टीम को तैयार कीजिए, उन्हे लेने मैं खुद चलूंगा आपके साथ ।"


"ओके सर" इंस्पेक्टर बाहर जाता है।


*****

सूर्या पुलिस की टुकड़ी लेकर विधायक के घर पर पहुंचा। बाहर मेन गेट पर खड़े पहरेदार ने हाथ आगे बढ़ाकर उसे रोकने की कोशिश की- "आप बिना अनुमति के अंदर नहीं जा सकते।"


सूर्या ने उसके हाथ को झटका और आंखें लाल करते हुए उससे मुखातिब हुआ-" बेटा, पुलिसवालों को कहीं आनेजाने के लिए बस कानून की अनुमति चाहिए होती है, तेरे बाप दादाओं की नहीं। अब चल बाजू हट नहीं तो पुलिस के काम में अड़ंगा लगाने के जुर्म में अंदर करके तुझे इतना कूटेंगे कि तेरे घरवाले भी तुझे नहीं पहचान पाएंगे।"

सूर्या ने पुलिसवालों से घर के अंदर जाकर तलाशी लेने का आदेश दिया । और खुद हॉल में खड़े होकर नौकरों से पूछताछ करने लगा।


पुलिस के अचानक पड़े इस रेड से एम.एल.ए. का भाई सकपका गया था । उसने सूर्या से रेड मारने का कारण जानना चाहा। सूर्या ने बिना किसी संकोच के उसके भतीजे की करतूत बताई और सर्च वारंट उसके हाथ में थमा दी ।


सर्च वारंट देखने के बाद एम.एल.ए. का भाई ना तो कुछ बोल पा रहा था और नाही उन्हें रोक पा रहा था । ऐसे में अब उसके लायक बस एक ही काम बचा था और उसने वही किया ।


बिना समय गवाए उसने अपने भाई और जनता के प्रतिनिधि विधायकजी को फोन लगाया और उन्हें सारी बात बिस्तार से बताई।


उसकी बात सुनकर विधायक जी झल्ला उठे और ए सी पी से बात करने की इच्छा जाहिर की। उनकी इस इच्छा का सम्मान करते हुए सूर्या ने फोन अपने कानों से लगाकर "जय हिंद" से उनका अभिवादन किया । पर बिच्छू के डंक मारे मरीज की तरह झटपटाते हुए उन्होने सूर्या को अपनी धौंस दिखाई -"किस सबूत के आधार पर तुम मेरे बेटे को अरेस्ट करने आए हो ए सी पी ?"


"फिलहाल तो शक के आधार पर ही गिरफ्तार कर रहा हूं,सर । बाकी के सबूत अरेस्ट करने के बाद अपने आप सामने आ जाएंगे ।"


इतने में पुलिसवाले एम.एल.ए. के बेटे और उसके दो दोस्तों को पकड़ कर खींचते हुए बाहर ले आएं ।


उन्हे देखते ही भूखे शेर की तरह गुर्राया सूर्या -" मेरा काम हो गया सर। अब आप भी जल्दी आ जाइए । आप की भी जरुरत पड़ेगी हमें ।"


और मोबाइल एम.एल.ए. के भाई के हाथ में थमा कर सूर्या घसीटते हुए उन्हें वहां से लेकर बाहर निकला।

सूर्या के हावभाव देखकर उनके हाथपांव ठंडे पड़ गए थे। अपने बाप के रसूख पर शहरभर में तांडव मचानेवाला गिदड़ आज मेमने की तरह मिमियाते हुए अपने बाप को याद कर रहा था।


*****

लॉकप में तीनों आरोपियों से पुलिसवाले अपने तरीके से पूछताछ कर रहे थे । अपने अफसर की ओर से उन्हे सख्त हिदायत थी की उनकी पूरी खातिरदारी की जाए । इतनी खातिरदारी कि अगर वे अपने बाप के रसूख की वजह से छूट भी जाए तो भी उन्हे कैद की ए रात हमेशा याद रहे । अगर कानून उनके साथ इंसाफ ना कर पाए तो भी उस अबला के साथ नाइंसाफी ना हो । पर उन्हेंं इस बात का भी ख्याल रखने के ओर्डर थे कि चोट ऐसी जगह लगनी चाहिए कि वे ना किसी को बता सके और नाही दिखा सके ।


बबली द्वारा उन्हेंं पहचाने जाने के बाद सूर्या इस केस की ऐसी चार्जसीट बनाने में लगा हुआ था कि इस बार पूरा जोर लगाने के बाद भी ए गुनहगार बच न पाए ।


पर सारी कोशिशों के बाद भी उसके दिल में एक अंजाना सा डर अब भी बना हुआ था ।


उधर गुनहगारों के परिवार वाले थाने पहुंच गए थे और वे लगातार सूर्या पर उन लड़कों को छोड़ने का दबाव बना रहे थे । पर आज तो सूर्या जैसे पहले से ही तैयार बैठा था । उसने थाने की लैंडलाईन कनेक्शन को पहले ही डिसकनेक्ट कर दिया था । उसके रिक्वेस्ट पे सभी पुलिस वालों का मोबाईल भी स्वीट्च ओफ था । अतः आज साहबों का दबाव भी उस तक पहुंच पाने में असमर्थ था । और रही बात उन गुनाहगारों के दौलतमंद बापों की तो वे आज ऐड़ी-चोटी का जोर लगाकर भी सूर्या को भरमा नहीं पा रहे थे ।


उसने बड़े ही विनम्रता से सभी को यह साफ संदेश दे दिया था कि वो चाहें तो कोर्ट जाकर अपने बेटों की बेल ले आएं और आराम से उन्हें घर ले जाएं ।


उसकी बात सुनकर शहर का सबसे अमीर व्यक्ति होने का दंभ भरने वाला व्सवसायी सुधीर चन्द्रा झल्लाया - "तुम जानते हो कि आज कोर्ट बंद है , फिर बार बार एक ही बात बोलकर तुम आग में घी डाल रहे हो ,ए सी पी"


"चन्द्रा साहब, धीरे , धीरे आवाज निकालिए । क्योंकि ए आपका ओफिस नही है और नाही पुलिस वाले आपके बाप नौकर । अगर एक का भी दिमाग खराब हो गया ना तो फिर आपको बचाने कोई नहीं आएगा ।"


"तुम मुझे धमकी दे रहे हो?"


"नही, चेतावनी दे रहा हूंं , वो भी आखिरी ।"


इतने में वहां पहुंचते हुए एम.एल.ए ने सूर्या को खा जाने वाली नजरों से देखा - "ये तुम ठीक नही कर रहे हो ए सी पी ."


"नहीं विधायक जी , आप उल्टा बोल गए। दरासल पहली बार हम कोई अच्छा काम कर रहे हैं और देखिए ना आज दिल से डर खुद ही छूमंतर हो गया है । आज पहली बार हम सबको अपने पुलिस होने पर गर्व हो रहा है । सो आप सब अब यहां से विदा लीजिए और कोर्ट खुलने के बाद बेल लेकर आइएगा ।अब चलिए यहां से । हमें बहुत काम है । जय राम जी की ।"


आज सूर्या के पीछे खड़े पुलिसवालों का सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया था । शायद आज पहली बार उन्हेंं अपनी वर्दी की असली पावर का एहसास हो रहा था । अब तक जिस वर्दी का रौब उन्होंंने गरीब और सीधे-सादे मजलूमों पे झाड़ा था उसके रौब के आगे आज शहर के नामी गिरामी और पावरफुल लोग भी नतमस्तक नजर आ रहे थे ।

आजतक जिस विधायक की जी हजूरी करते हुए उनका समय बीता था आज वह उनके सामने लाचार और बेबस नजर आ रहा था।


यह सब देखकर आज बूढ़े कॉंस्टेबल की आंखें भर आई थी और दिमाग में पुरानी यादें उमड़ घुमड़ करने लगी थी। उसे उसकी बेटी की यादें परेशान करने लगी थी।

कोयल, यही नाम था उसकी बेटी का। जैसा नाम वैसी आवाज। उसकी आवाज सुनों तो मानों कानों में मिश्री घुलती हो। पढ़ाई में अव्वल थी। उसे जज बनना था और अपराधियों को सख्त से सख्त देनी थी। कॉलेज की शान थी। पढ़ाई में टॉप। गीत-संगीत की महारथी। मॉडर्न लता मंगेशकर कहते थे सब उसे। घर पर भी मां की लाडली और पापा दुलारी थी। दादा की तो जान थी कोयल।


घर के काम में मां का पूरा हाथ बंटाती थी। सुबह उठकर पूरे घर की साफ सफाई। नहाधोकर रोज सुबह पूजा। उसकी आरती की ध्वनि पूरे मोहल्ले के अलर्म का काम करता था। मोहल्ले के बुढ़े-बुजुर्गों का तो दिन ही शुरू होता था उसकी आरती से। रहीम काका अक्सर कहा करते थे- "जितनी शांति नमाज से मिलती है उससे कहीं ज्यादा बिटिया की आरती से। भगवान इसे सलामत रखे।

कोयल अपने ग्रुप की लीडर थी। मतलब जिस दिन वो कॉलेज नहीं गई उस दिन कॉलेज का रंग थोड़ा फीका रहता।

घर पर भी उसकी धमाचौकड़ी मची रहती। उसके बाबा अक्सर कहते - "तू शांतिलाल की हंगामा कुमारी है। पता नहीं जिस दिन तू बिदा होकर जाएगी उस दिन क्या होगा?"


और वह अपने बाबा के होंठों पर हाथ रखकर कहती -"मैं कहीं नहीं जाऊँगी। मैं तो यहीं रहुंगी जीवन भर। क्योंकि मेरे हाथों में विवाह की कोई रेखा ही नहीं है।"


उसकी यह बातें सुनकर उसकी मां उसे तेज डांट लगाते हुए कहती है- "चुपकर, फालतू की बातें मत किया कर तू। कैसे नहीं होगी तेरी शादी। मैं तुझे बिदा करूंगी और वो भी राजकुमारियों सा बड़े ही धूमधाम से।"

******


सूर्या शांतिलाल की आंखों में उभर आए उस दर्द को महसूस कर उसे आवाज लगाता है- "शांतिलाल जी, क्या हुआ? सब ठीक तो है?"

"जी सर, सब ठीक है। हमें क्या होगा?" वो अतीत की उन यादों से वापस वर्तमान में लौट आते हैं।

"नहीं, आप कहीं खो गए थे।"-सूर्या उनके कंधे पर हाथ रखकर ढांढस बंधाता है।

"वो कुछ नहीं सर। डस यूं ही।" शांतिलाल सूर्या को टालते हुए नर्मल दिखने की असफल कोशिश करता है।

"ओके। ठीक है तब।" - सूर्या चेहरे पर बनावटी मुस्कान ले आता है और आगे कहता है "आपको एक बहुत ही जरूरी और मुश्किल भरा काम सौंपना चाहता हूँ। उम्मीद है आप मुझे निराश नहीं करेंगे।"

"बिल्कुल नहीं करेंगे साहब। आप काम तो बताइये।"

"आपको और जतन सिंह को बबली और उसके परिवार वालों की सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेनी होगी। चाहे कुछ भी हो जाए, पर आपको उनकी जान बचानी होगी।" उम्मीद भरी निगाहों से देखते हुए सूर्या ने उन्हें बबली की सुरक्षा में तैनात होने का फरमान सुनाया।


"बिल्कुल सर। आप निश्चिंत रहिए, उन्हें कुछ नहीं होगा। हम उनके जिस्म पर खरोंच तक नहीं आने देंगे।" -दोनों हवलदार अटेंशन की मुद्रा में उसे सैल्यूट करतें हैं।

*********


अपने दो भरोसेमंद पुलिस वालों को बबली की सुरक्षा में लगाकर सूर्या अपनी आगे की रणनीति तय करने में जुट गया था । उसने अपना अगला कदम बढ़ाने से पहले इसलिए बबली की सुरक्षा का इंतजाम किया क्योंकि वह यह भलीभांति जानता था कि जेल में बंद उन बहशी भेड़ियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में सबसे अहम कड़ी बबली ही है। जिसकी गवाही इस केस को निर्णायक मोड़ तक ले जाने में सबसे अहम कड़ी साबित होनेवाली थी। और वह यह जानता था कि बाहुबली विधायक अपने बेटे को.बचाने के लिए कुछ भी कर सकता था और किसी भी हद तक गिर सकता था । इसीलिए वह उसकी सुरक्षा को लेकर खासा चिंतित था ।


बबली के घर वालें भी इस घटना के बाद से सदमे में थे । उन्होने बबली का घर से निकलना बंद कर दिया था । उसका स्कूल जाना, ट्यूशन जाना सब बंद था । घर की खिड़कियां और दरवाजें अब बंद ही रहा करते थे । एक तरह से उन्होंंने अपने आपको एक अघोषित कैदखाने में बंद कर रखा था । ना वे खुद घर से कदम बाहर निकालते थे और ना बबली को आजादी से सांस लेने दे रहे थे । उन्हेंं देखकर ऐसा लग रहा था जैसे असली कसूरवार वे तीनों भेड़िए नही बल्कि बबली का परिवार ही है ।


और शायद आम आदमी की यही कमजोरी आज बाहुबलियों की ताकत बन गई है। आज गरीब आदमी जो अपने को हर जगह उपेक्षित सा महसूस करता है उसके लिए कहीं ना कहीं वह खुद ही जिम्मेदार है। चूंकि उसने बिना लड़े हथियार डालकर सदैव अपने अधिकारों का गला घोंटा है। और यही वजह है कि विधायक जैसे बाहुबली चंद भाड़े के टट्टूओं के दम पर भीड़ के शक्लवाले बहुसंख्यक आबादी पर अपना रौब चलाते हैं। और समाज में कुकरमुत्तों की तरह फैल रहे ऐसे नीले सियारों के सामने जनता जनार्दन खुद को लाचार और बेबस समझती है। जबकि सच्चाई यह है कि जब भी जनता ने अत्याचार का विरोध किया है तब तब आततायीयों को मुंह की खानी पड़ी है। फिर चाहे वह किसी सुल्तान की सलतनत हो या फिर साम्राज्यवादी ताकतों का बोलवाला। जनता की एकजुटता के आगे सभी ने हार मानी है। और वैसे भी कहते हैं ना कि जब तक पहला कदम हम खुद नहीं बढ़ाते तब तक भगवान भी हमारी मदद को आगे नहीं आता। तभी किसी शायर ने बड़ा ही खूब लिखा है "कि आस्मां में भी सुराख हो सकता है, बस एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों ।"


पर हमारा यह दुर्भाग्य है कि इन जोशीलीं बातों को भी हम बस वाह!वाह! कर के भूला देते हैं ।


सूर्या की सख्ती के बाद पुलिस वालें अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा के साथ निभाने की कोशिश कर रहे थे । थाने में एक के बाद एक लगातार लड़कों का कचूमर बनाया जा रहा था । तो वहीं दूसरी ओर सूर्या की निगरानी में कुछ ओहदेदार पुलिसवाले कोर्ट में मुजरिमों की पेशी से पहले अपना पक्ष और अधिक वजनदार बनाने में जुटे हुए थे ताकि कसूरवारों को जमानत न मिल सके।


उधर दोनों पुलिसवाले भी बबली के घर वालों को हर मुमकिन पूरी सुरक्षा मुहैया कराने में जुटे हुए थे ।

तो दूसरी ओर पुलिस हिरासत में कैद अपने सपोंलों को बचाने के लिए विधायक और बाकी के धनाढ्य व्यापारियों ने भी अपनी जोर आजमाइश शुरू कर दी थी । वे अपना सबकुछ दांव पर लगाने को तैयार थे । तभी हर हाल मेंं अपने बच्चों को बचाने के लिए उन्होंने शहर के सबसे बड़े और महंगे वकीलों की फौज खड़ी कर दी थी । पैसों के दम पर वे हर मुमकिन कोशिश कर रहे थे कि कैसे भी करके अपने बच्चों को बचा सकें।


दोनों पक्षों की पूरी तैयारियों के बाद अब इस केस का सारा दारोमदार दोनों पक्षों के वकीलों पर निर्भर था। अब वही अपने दलीलों से न्याय और अन्याय का निर्णय करवा सकते थे। वैसे अगर देश के चंद भलेमानस वकील जो वास्तव में अपने देश और समाज से निस्वार्थत प्रेम करते हैं ने बस पैसों के लिए मर मिटनेवाले काले कोर्टधारियों को जरा सा भी सबक सिखाने का जिम्मा ले लिया होता तो शायद आज हमारे समाज मेंं क्राईम का ग्राफ काफी नीचे होता । क्योंकि समाज में घट रही हर क्राइम के पीछे पैसों के लिए अपना ईमान तक बेचने को तैयार बैठे ऐसे चंद वकीलों का ही मौन प्रोत्साहन होता है । अगर वकील राष्ट्र और सामाजिक सुरक्षा की खातिर ऐसा केस लेने से मना कर दें तो क्रिमिनल सजा के डर से खुद ही क्राइम करना छोड़ देंगे। पर ऐसा होता नहीं है और इसका जीवंत उदाहरण था एम.एल.ए के घर पर डेरा जमाए वकीलों की फौज, जिन्होंने एक निरपराध मासूम को नोंच-खसोटकर मौत के घाट उतारने वाले उन हरामजादे भेड़ियों को बचाने के लिए अपना सारा गंदा दिमाग लगाना शुरु कर दिया था। अगले दो दिनों में वे पूरी तैयारी के साथ कोर्ट में हाजिर होना चाहते थे जिससे अपने क्लाइंट्स को पहली ही सुनवाई में बाइज्जत बरी करा सकें । पर ये इनकी भेड़चाल थी और विधाता को तो आज कुछ और ही मंजूर था । उन भेड़ियों के बाइज्जत बढ़ी होने से पहले ही मीडिया ने इस खबर को प्रमुखता से दिखाना आरम्भ कर दिया था और इसके साथ ही सोशल मीडिया में भी #जस्टिस_फोर_सुनीता ट्रेंड करने लगा था । चारों ओर लोग भड़क गए थे । दोषियों के लिए फांसी की मांग से पूरा सोशल मीडिया थर्रा उठा था ।

*****

बबली के घर पर भी सभी वही न्यूज देख रहे थे। सभी की नजरें टीवी स्क्रीन पर टिकी हुई थी कि तभी अचानक बबली के पिता का मोबाइल बजने लगता है और एक अंजान नम्बर से उन्हे धमकाते हुए इस केस के पचड़े से दूर रहने की हिदायत दी जाती है। वो कुछ बोल पाते इससे पहले ही दूसरी ओर से फोन डिसकनेक्ट कर दिया जाता है।


उनके चेहरे पर खौफ साफ दिखने लगता है। माथे पे उभरी चिंता की लकीरों में उनके मन में पनप रहा डर का भाव साफ नजर आने लगता है।

"क्या हुआ पापा ?"- उनकी ऐसी हालत देखकर बबली उनके कंधे पर हाथ रखकर सांत्वना देते हुए उनके भय का कारण जानने की कोशिश करती है।


"कुछ नहीं ।" बेरुखे स्वर में उसके पिता ने जवाब दिया ।


"क्या हुआ है जी, आप कुछ बताते क्यों नही हैं ?" बबली की मां उनकी ऐसी हालत देखकर आतंकित हो उठती है।


"जिसका डर था वही हुआ,सुमन । विधायक के गुंडों का फोन था। उन्होने धमकी दी है कि अगर हमारी बबली इस केस में गवाह बनी तो उसका भी अंजाम सुनीता जैसा ही होगा ।"


उनकी बात सुनकर सभी के चेहरे फीके पड़ जाते हैं ।


तभी अचानक वहां पहुंचा सूर्या उनकी बातें सुनकर ठिठक जाता है। और बिना कुछ बोले चुपचाप उनके चेहरे निहारता हुआ अपने लबों को चुम्बिस देता है -


"गलत टाइम पे आने के लिए आप सबसे माफी चाहता हूं। क्या करुं बच्ची की चिंता मुझे यहां खींच लाई । वैसे आप सबको एक इंपोर्टेंट बात बतानी थी। पर अब सोच रहा हूँ कि बताऊँ या नहीं।"


सब सवालिया निगाहों से उसकी ओर देखते हैं । बबली उसकी आंखों में झांकते हुए कंपकंपाते स्वर में पुछती है-" क्या हुआ सर? क्या बताने चाहते थे आप?"


सूर्या उसकी आँखों में झांकता है और फिर उसके पिता के कंधे पर हाथ रखकर कहता है- "शर्माजी, आप अभी क्या सोच रहें हैं मुझे नहीं पता या आपके मन में अभी क्या चल रहा है मैं यह भी नहीं जानता। और जो बात मैं आपको अभी बताने वाला हूँ वह अभी बताना चाहिए या नहीं यह भी मुझे मालूम नहीं, पर फिर भी मैं आपको अंधेरे में रखना नहीं चाहता और इसीलिए बता रहा हूँ कि सुनिता गलती से मारी गई है जबकि उन गिद्धों की असली शिकार आपकी बेटी थी। और वो आपकी बेटी के साथ यह सबकुछ करना चाहते थे। पर उनसे गलती हो गई और सुनिता........."


उसकी बात सुनकर कमरे में सन्नाटा छा गया। बिना कुछ बोले सब एक दूसरे को निहारने लगे। उनके चेहरे की हवाइयां उड़ गई थी। चेहरे सफेद पड़ गए थे। मानों काटो तो खून नहीं। डर और आतंक का अजब मंजर था उनके चेहरे पर। मिनटों तक कमरे में शांति छाई रही ।

फिर अचानक सूर्या की खनखनाती आवाज ने उस शांति को भंग किया और एक एक शब्द पे जोर देते हुए सूर्या बोलता गया--


"शर्माजी, अब कुछ भी निर्णय लेने से पहले एक बार अपनी जमीर की आवाज सुनने की कोशिश जरुर कीजिएगा । और याद रखिएगा कि अगर वो बच गए और बाहर आ गए तो शायद इसबार पहला हमला आपकी बेटी पर ही करें। क्योंकि जाने-अनजाने में आपकी बेटी उनके हाथों से बच निकली है। और आप तो जानते ही हैं कि गिद्ध अपना शिकार इतनी सहजता से नहीं छोड़ते।

"और हां, साथ ही एक और बात याद रखिएगा कि आपकी बेटी के आंसुओं ने ही आज खाकीवालों के मरे हुए जमीर को जिंदा कर उन हरामियों के जीवन पर एक प्रश्न चिह्न लगा दिया है और इसी वजह से आज उनके हरामी बाप फन कुचले सांप की तरह छटपटा रहे हैं । मैं आपसे वादा करता हूं कि हम खाकी वाले आपके और आपकी बेटी जीवन पर कोई संकट नही आने देंगे । एक खरोंच तक नहीं आने देंगे इस बहादुर बेटी पर । बस इतना सा ध्यान रखिएगा कि इस बच्ची के भरोसे ही हम पुलिसवाले उन कमीनों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं ।अगर आज आपने हमारा साथ छोड़ दिया तो फिर कभी कोई पुलिसवाला किसी पैसेवाले रसूखदार पे हाथ नहीं डालेगा बल्कि उनके हां में हां मिलाकर बस अपने घरवालों की खुशियां खरीदने की कोशिश करेगा । और तब कहां जाएंगे आप ? किससे मदद मांगेंगे ? तब कोई पुलिसवाला आपकी मदद को नही आएगा । एक बात समझ लीजिए शर्माजी कि किसी भी बलात्कारी दरिंदे का शिकार हुई लड़की सिर्फ किसी बदले की भावना से उनका शिकार नही बनती बल्कि शिकार बनती है ऐसे लोगों के दिल में कानून का डर ना होने की वजह से। और आज सही समय है जब हम ऐसे लोगों को कड़ा संदेश दे सकते हैं कि हम चुप नहीं बैठेंगे और नाहि हार मानेंगे। हमें अपनी बहू बेटियों की लाज बचाने की कोशिश खुद करनी होगी,शर्माजी। बाकी आपकी मर्जी ।"


अब तक सूर्या की बातें चुपचाप सुन रहे बबली और उसके घरवाले एक दूसरे की आंखों में झांकते हैं । जैसे इस धर्मयुद्ध प्रति एक दूसरे का अंतिम निर्णय जानना चाहते हों । फिर मिनटों से छाई खामोशी को चिड़ते हुए बबली के पिता प्रश्नभरी निगाह से सूर्या की नजरों से नजरें मिलाते हुए पूछते हैं - "और इस दौरान अगर आपका ट्रांसफर यहां से हो गया तो ? तो फिर कौन गारंटी लेगा हमारी सुरक्षा का ?"


सूर्या कुछ जवाब देता इससे पहले ही उसके पीछे खड़े इंस्पेट्कर के गले से क्रांति छलकती आवाज उभरती है - "ऐसा कुछ नहीं होगा , शर्माजी । क्योंकि इस केस से पहले अगर सर का ट्रांसफर ओर्डर निकला तो हम सब पुलिसवाले एक साथ इस्तीफा दे देंगे और फिर सरकार के नाम पर जनता को चुतिया बना रहे इन गद्दार नेताओं की ईंट से ईंट बजा देंगे ।"


इंसपेक्टर की बात सुनकर सब भौचके रह जाते हैं । सूर्या अचरज भरी निगाह से उसे देखता है ।


"अगर आप सब ने फैसला कर लिया है तो मैं और मेरा परिवार भी आपके साथ हैं ए.सी.पी. साहब । आप आगे बढ़िए हम पीछे नहीं हटेंगे ।" -अपने चेहरे से जोश छलकाते हुए शर्माजी ने इस युद्ध का संखनाद करते हुए उत्तर दिया।


"थैंक्स शर्माजी । आपसे यही उम्मीद थी ।"


बबली के माथे पर भरोसे का हाथ रखते हुए सूर्या उनके सुरक्षा में तैनात पुलिसवालों से उनका ख्याल रखने को कहकर वहां से विदा लेता है ।

गाड़ी में बैठते ही इंस्पेक्टर सूर्या की सवालिया निगाहों से देखते हुए प्रश्न करता है-"सर, आपने ऐसा क्यों कहा कि उन लड़कों का असली शिकार बबली थी? जबकि उन्होंने तो ऐसा कोई बयान नहीं दिया था।"


आंखों में काला चश्मा लगाते हुए कहता है सूर्या- "ताकि बबली के घरवाले भी सुनीता के माता पिता का दुःख महसूस कर सकें। और अपना डिसिजन ना बदलें। अनवर, मैं किसी भी हाल में इन हरामजादों को बचकर जाने का मौका देना नहीं चाहता।"

"समझ गया सर"

*****

कोर्ट में उनकी पेशी के दौरान पुलिस वारदात से जुड़े हुए कई साक्ष्य कोर्ट में पेश करती है । जिसमें वारदात में व्यवहार की गई गाड़ी से जुड़ी रिपोर्ट , मृत लड़की के पास से बरामद की गई मुख्य आरोपी के शर्ट की बटन और बबली के बयान की कॉपी शामिल थे ।


आरोपियों के वकील इन सबूतों को आधारहीन बताकर कोर्ट से आरोपियों के लिए बेल की मांग करते हुए सबूतों के सत्यापन लिए कुछ और समय की मांग करते हैं ।


पर सरकारी वकील द्वारा उनकी बेल का विरोद्ध किए जाने पर और केस को जल्द से जल्द सुलझाने के लिए आरोपियों की रिमांड बढ़ाए जाने कि मांग किए जाने पर कोर्ट लड़कों की बेल एप्लीकेशन खारीज करते हुए उन्हे पुलिस रिमांड में भेज देती है ।


कोर्ट के फैसले ने सूर्या को खुशी तो दी थी पर यह खुशी उसके लिए क्षनिक मात्र साबित होने वाली थी । क्योंकि अपनी हार से बौखलाए एम.एल. ए. ने अब अपने बेटे को छुड़ाने के लिए अपनी सारी राजनीतिक ताकत लगाने की ठान ली थी और उसके इस पावर गेम में उसके सारे दुश्मनों का हाल बुरा होना तय था ।


जैसे ही कोर्ट से अपनी पहली जीत का सेहरा बांध सूर्या अपने ओफिस पहुंचा वैसे ही उसका पीछा करते हुए उसके तबादले की ओर्डर कॉपी उसके टेबल पर आ धमकी । अपने तबादले का ओर्डर देख वो मंद मंद मुस्कुराते हुए बाहर आया और अपने तबादले की ओर्डर कॉपी अपने मातहतों के हाथों में थमाकर बोला "अब मेरे यहां से जाने के बाद इस केस को अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी आप सबकी होगी । मैं उम्मीद करता हूं कि आप सब........ ।"


उसके तबादले के ओर्डर कॉपी को हवा में उड़ाते हुए इंस्पेट्कर अनवर तैश में आकर चिल्लाया "नहीं सर , अब और नहीं । इसबार हम आपका तबादला होने नहीं देगे । इस बार ए लड़ाई आरपार की है । सर, इतने साल के अपने करियर में आज पहली बार आपकी वजह से हमने लोगों की आँखों में पुलिसवालों के लिए इज्जत देखी है । आज पहली बार लोगों की आखों में हम पुलिस वालों के लिए बिश्वास देखा है । और अब हम फिर से इतिहास दोहराने नहीं देंगे । अब आप नहीं तो हम भी नहीं । हम सब अभी के अभी आपके तबादले के विरोध में अपना इस्तीफा देंते हैं।"


"अनवर....." कुछ बोलने की अधूरी कोशिश की सूर्या ने तभी हेड कोंस्टेबल राघव उसे बीच में टोकते हुए बोला- "नहीं सर, आज आप कुछ मत बोलिए । आज हम भी इन राजनीति के चमगादरों को अपनी ताकत दिखा कर रहेंगे ।"


"हां सर, हम सब आज एक हैं । हम पुलिसवालों को अपने बाप का नौकर समझना आज से इन तुच्चे नेताओं को बहुत महंगा पड़ेगा ।"


तभी अचानक हेड कोंस्टेबल राघव ने मीडिया को फोन कर थाने बुला लिया और मीडिया के लाइव कैमरे के सामने खड़े होकर सभी ने एक स्वर में सरकार को ए.सी.पी.सूर्यकान्त का ट्रान्सफर जल्द से जल्द वापस लेने और उन्हे सुनीता मर्डर केस में पूरी छूट और पावर देने की अपील की । इस अपील में सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से धमकी की आहट सुनाई दी थी। क्योंकि पुलिसवालों ने उनकी मांग न माने जाने की सूरत में सामूहिक रेजिग्नेशन का अपना इरादा जाहिर किया था। उनकी इस धमकी ने एम.एल.ए के पक्ष में खड़ी सरकारें की जड़ें अंदर से हिला दी थी। ए खबर अबतक की सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज बन गई थी। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में आई इस खबर ने सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश को हिला डाला था। इस खबर की गर्मी से आज पहली बार जनता पुलिस प्रशासन को लेकर गौरान्वित महसूस कर रही थी। आज तक जिस पुलिस को जनता ने बस नफरत भरी निगाहों से देखा था, आज उसके लिए उनके मन में सम्मान की भावना थी और संभवतः इसी कारण आज जनता उनके साथ आ खड़ी हुई थी। पुलिसवालों और जनता के दबाव में आकर सरकार ने तुरंत ही ए.सी.पी.सूर्यकान्त का ट्रान्सफर ओर्डर वापस ले लिया और मुख्यमंत्री ने स्वयं इस केस का संज्ञान लेते हुए सूर्या को इस केस के संदर्भ में कोई भी निर्णय लेने की पूरी आजादी दे दी। सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले के बाद पुलिसवालों ने अपना विरोध वापस ले लिया और काम में जुट गए। पर इस पूरे घटनाक्रम में अब मीडिया का रूख इस केस की ओर झुक गया था, जो कहीं ना कहीं इस केस में सूर्या के लिए मददगार साबित होनेवाला था।

*****

सूर्या का ट्रांसफर रूकना इस केस में एम.एल. ए. और उसके साथियों की ए दूसरी हार थी । जिसके बाद वे पहले से ज्यादा तिलमिला गए थे और उनका दुश्मन नम्बर एक ए.सी.पी.सूर्यकान्त पहले से कहीं ज्यादा चौकन्ना हो गया था ।


सूर्या ने अनवर को अपने केबिन बुलाया।

"सर, आपने मुझे बुलाया?" अनवर अंदर आते हुए।

"हां अनवर, अंदर आओ।" -उसे सामने रखे चेयर पर बैठने का इशारा करते हुए सूर्या ने उसे अंदर बुलाया।

"Thank you Sir" -अनवर सूर्या के ठीक सामने रखे चेयर पर बैठता है।

"अनवर, ये शांतिलाल जी की क्या कहानी है? क्योंकि मैंने उनकी आँखो में एक अजब सा दर्द और गुस्सा देखा है। उन्हें देखकर ऐसा लगा कि मानों वो विधायक और उसके बेटे बेइंतहा नफरत करते हैं। अनवर मैं वो सारी डिटेल चाहता हूँ जो विधायक और उसके साम्राज्य को जहन्नुम का रास्ता दिखा सके।"


"सर, शांतिलाल जी एक बहुत ही सुलझे हुए व्यक्ति हैं। उनके घर में अब बस वो और उनकी बीमार बीवी है। जबकि पहले उनकी एक बेटी भी थी। कोयल। अब वो इस दुनिया में नहीं रही। सर कोयल बहुत भली और जीनियस लड़की थी। पर उससे अनजाने में एक गलती हो गई और उसका अंजाम शांतिलाल जी आजतक भुगत रहें हैं।

"सर, कोयल फाइनल इयर में थी और कॉलेज वीक के समापन समारोह के दौरान इस लुच्चे विधायक के बेटे संग्राम ने उसे प्रपोज किया। कोयल बहुत ही एम्बीशियस लड़की थी सो उसने संग्राम के प्रपोजल को ठुकरा दिया। पर ये लुच्चा उसके पीछे पड़ा रहा। कोयल की पसंद नापसंद उसकी सहेलियों से जानकर उसे इम्प्रेस करने के सारे हथकंडे अपनाने लगा। और जब वो नहीं मानी तो आत्महत्या की धमकी देकर उसे मनाने की कोशिश करने लगा। और उसकी धमकी से डरकर कोयल ने उसे हां कर दी। वो बेचारी ये समझ नहीं पाई कि यह सब संग्राम का षड्यंत्र था।

"संग्राम ने उसे अपनी चक्रव्यूह में पूरी तरह फांस लिया था। वह उसे यह भरोसा दिलाने में कामयाब हो गया था कि वह उससे बहुत प्यार करता है। बेइंतहा प्यार।

"कोयल अब उसीके साथ अपना समय बीताने लगी। कॉलेज साथ आना-जाना, क्लास में एक दूसरे को निहारना, कैंटीन में घंटों बातें करना। सिनेमा, रेस्तरां घुमना-फिरना अब पायल की जिंदगी बन गए थे। अब रोज-रोज डेट पर जाना जैसे पायल की आदत बन गई थी। इन सबके बीच पायल की पढ़ाई, पायल की आदतें सब पीछे छुट गया।

"धीरे-धीरे समय बीता और संग्राम कोयल के प्रति कठोर होता चला गया। छोटी-छोटी बातों पर झगड़ना। पायल का किसी और के साथ बात करने पर उसपे शक करना और उसके साथ मारपीट और गाली-गलौज करना संग्राम की आदत बन गई थी। संग्राम कोयल को लात और मुक्कों से मारता, उसके बाल पकड़ कर खींचता। एक तरह से उसने उसे अपना गुलाम बना लिया था।

" रोज-रोज के इन अत्याचारों से तंग आकर कोयल ने संग्राम से खुदको अलग कर लिया। पर संग्राम को यह भी मंजूर नहीं था। संग्राम ने उन सबको उससे दूर कर दिया जो उसके और कोयल के रिश्ते के बीच की दीवार थे। वो हरेक उस लड़के के साथ-साथ मारपीट करता जो कोयल के नजदीक आने की कोशिश करता।

"उसने कोयल की जिंदगी को जहन्नुम बना दिया था,सर। इसी बीच पायल का फाइनल ईयर का रिजल्ट आ गया और उसके कई पेपर खराब हो गए थे। उसके मार्क्स उसकी उम्मीद से काफी कम आये थे। और इन सब कारणों से वह अवसाद का शिकार हो गई और एक दिन उसने अपनी कलाइयों को काटकर आत्महत्या कर ली।

" कोयल ने जिसदिन आत्महत्या की थी उस दिन उसका 21वां जन्मदिन था। कोयल की मौत ने उसके दादा को इस कदर तोड़ा की हार्टअटैक से उसी पल उनकी भी मौत हो गई। शांतिलाल जी की पत्नी भी यह सब नहीं झेल पाईं और अब लकवा की शिकार हैं।

"इतना सबकुछ होने के बावजूद एक पुलिसवाला होकर भी शांतिलाल जी अपनी बेटी को इंसाफ नहीं दिला पाये और यही बात उन्हें सबसे ज्यादा खाए जा रही है।"


"शांतिलाल जी ने बेटी को समझाया क्यों नहीं?" हैरतभरी निगाहों से देखते हुए सूर्या ने प्रश्न किया।

"समझाया था सर। पर इस उम्र में बच्चे कहां किसी की सुनते हैं। और फिर यह जनरेशन तो सबसे स्मार्ट जनरेशन है। वो सबकुछ जानता है। बड़े-बुढ़े तो उन्हें नासमझ और मुर्ख नजर आते हैं सर।"


अपने निचले होंठों को दांतों से दबाते हुए सूर्या किसी सोच में डूब जाता है और फिर अनवर की आंखों में झांकते हुए कहता है- "अनवर, संग्राम पे एक और केस बनाओ और शांतिलाल जी को फरियादी।"


अनवर सम्मान भरी नजरों से सूर्या को निहारता है। सूर्या मुस्कुराकर कहता है बबली के घर पर किसी और को भेजो और शांतिलाल जी से कहो आकर मुझसे मिले।


"ओके सर।"- वो सूर्या को सल्यूट कर बाहर निकल जाता है।

*********



बबली के पिता मंडी से सब्जी लेकर घर की ओर रुख करते हैं। इतने में अचानक कुछ बदमाश उनका रास्ता रोककर उन्हे घेर लेते हैं और उनकी सारी सब्जियां उनके हाथों से छीनकर जमीन पर फेंक देते हैं। इससे पहले की वो कुछ समझ पाते बदमाश उनके साथ धक्का मुक्की करने लगते हैं । उन्हें किसी वॉलीबॉल की तरह इस हाथ से उस हाथ, उस हाथ से इस हाथ उछालकर परेशान करते हैं और फिर जब वे थक कर पसीने से तड़बतड़ हो जाते हैं तब उनके कपड़े फाड़कर सरे बाजार उन्हे बेइज्जत करने की कोशिश करते हैं। बिचारे ऐसी ज्यादतियों से हारकर वहीं निढाल हो जाते हैं। उन्हें मरणासन्न देखकर गुंडे उन्हें वहीं छोड़कर वहां से भाग जाते हैं।


जब काफी समय बीतने के बावजूद शर्माजी घर नहीं पहुंचे तो उनकी पत्नी ने उनके घर पर ड्यूटी में तैनात एक पुलिसवाले से उन्हे ढूंढ लाने का रिक्वेस्ट किया । Mrs. शर्मा के निवेदन पे पुलिसवाला उन्हे ढूंढने निकल पड़ता है और मंडी जाकर शर्माजी को इस हालत में देख उन्हें उठाने की कोशिश करता है। पर जब वो उन्हें अकेले नहीं उठा पाता तब वह वहां खड़े लोगों की मदत से उन्हे एक कार में बैठा कर उनके घर ले आता है । उनकी ए हालत देखकर उनके घरवाले रोने लगे-बिलखने लगते हैं ।


तभी उनके घर पर तैनात दूसरा पुलिसवाला बिना समय गवाए सरकारी डक्टर और सूर्या दोनों को फोनकर मिस्टर शर्मा के घर पर आने को कहता है।


डक्टर के फर्स्ट एड देने पर मि० शर्मा अपना होश सम्भालने लगते हैं । उन्हे कुछ दवाईयां देकर डक्टर वहां से विदा लेता है। जबकि सूर्या उनके होश में आने का इंतजार करता है और जैसे ही वो होश में आते हैं सूर्या उनसे उनकी इस हालत का कारण पूछता है। पर खबराहट के कारण वो कुछ बता नहीं पाते ।


तब सूर्या उन्हे मंडी से घर तक लानेवाले हवलदार से जानकारी लेने की कोशिश करता है और उसे पता चलता है कि सब्जी लेकर घर लौटते समय उनके साथ कुछ गुंडों ने धक्का-मुक्की कर उनकी हालत ऐसी बना दी है । उसकी बात सुनकर सूर्या दो मिनट तक चुपचाप खड़ा होकर कुछ सोचता है और फिर साथ आए इंस्पेक्टर अनवर को लेकर मंडी पहुंचता है। मंडी पहुंचकर वह अनवर और बाकी पुलिसवालों को पुछताछ करने भेजता है और खुद गाड़ी के पास खड़े होकर सबपे नजर दौड़ाता है । कुछ देर बाद अनवर और बाकी पुलिस वाले निराश होकर खाली हाथ वापस आ जाते हैं ।


अनवर: "सर ,कोई कुछ नहीं बता रहा । सबके सब डरे हुए हैं ।"


"पर लगता है कि ए लोग गुंडो को पहचानते हैं, तभी इनके चेहरे पे इतना ज्यादा आतंक दिख रहा है ।" अपनी दाढ़ी खुजाते हुए अपने तजुर्बे से बोलता है सूर्या ।


"चलो देखते हैं ।" वो गाड़ी से उतरता है और दोबारा मंडीवालों से पूछताछ करने लगता है पर कोई अपनी जुबान नहीं खोलता । जिससे उसके दिमाग का फ्यूज उड़ जाता है। लोगों की इस बर्ताव से चिढ़कर दहाड़ मारकर चीखता है सूर्या- " कैसे इंसान हो आपसब? आपके सामने एक अधेड़ व्यक्ति के साथ जुल्म किया गया और सबके सब चुप हो । अरे जितना चुप रहोगे उतना ज्यादा जुल्म सहना पड़ेगा तुम सबको । तुम हर घड़ी पुलिस को कोसते हो ना,कहते हो कि पुलिस तुम्हारी मदद नहीं करती । तो सुनो तुम्हारे इसी बर्ताव की वजह से पुलिस तुम्हारी मदद नहीं करती । क्योंकि पुलिसवाले जानते हैं की तुम कोई भी लड़ाई उसके अंजाम तक नहीं लड़ोगे । तुम पर अत्याचार होता रहेगा और कोई गवाही देने के लिए मुंह नही खोलेगा । कोई कुछ नहीं बताएगा और कसूरवार बाईज्जत छूट जाएंगे । तुम्हारा खुद का डर तुमपे हो रहे अत्याचारों का मूल कारण है । जब तक तुम डर से नहीं जीतोगे कोई तुम्हारी मदद को आगे नहीं आएगा ।"


चारोंओर खामोशी छा जाती है ।


"यूंही चुप रहना और पीठ पिछे पुलिसवालों को धिक्कारते रहना । तुम्हारी प्रोबलम दूर हो जाएगी । अरे औरों को गालियां देने से पहले खुद अपने अंदर झांक कर तो देखो । देश बदलने की बात करते हो, पहले अपने आपको तो बदल लो ।


"याद रखना, अगर आज सरकारी कर्मचारी रिश्वत लेते हैं तो इसके जड़ में तुम हो । तुम अपना काम निकालने के लिए उन्हे रिश्वत देते हो । कमी तुम्हारे अंदर है इसलिए सरकारी महकमें में बैठे लोग तुम्हारी ओर टकटकी लगाए बैठे रहते हैं । बात करते हैं देश बदलने की । अरे एक अकेला नेता क्या क्या करेगा । जब उसके हाथ बांधने को संसद में देश के दुश्मनों को भेजोगे । छोड़ो ए सब । तुम्हे इससे क्या?"


वो चुप हो जाता है ।


इतने में एक बुढ़ा आदमी आगे आकर बोलता है -"जो भी कहा ,ठीक कहा साहब आपने । आपने मेरी आखें खोल दी साहब । साहब,मैं उन लोगों को पहचानता हूं ।"


सूर्या ने अनवर को इशारा किया । अनवर उससे पुछताछ करने लगता है और सारी जानकारी लेकर वो वहां से सीधे गुंडो के ठीकानों पर धाबा बोलते हैं और एक एक को उनके ठिकानों से उठाकर थाने ले आते हैं और उनकी जमकर मरम्मत करते हैं । पुलिस की खातिरदारी के बाद वो अपना गुनाह कबूल कर लेते हैं और पुलिस को ए भी बताते हैं कि उन्हें ऐसा करने के लिए किसी ने उन्हें पैसे दिए गए हैं। पर वो पैसे देने वाले को पहचानने से इंकार कर देते हैं । उनका कहना था कि उन्हे सारे निर्देश फोन पे दिए गए थे और पैसे किसी तय जगह पर रख दिये गए थे ।


उनकी बातें सुनकर सूर्या बिना कुछ बोले बाहर निकल आता है ।

सूर्या अपने कैबिन में बैठकर अपने दातों से नीचे के होठ को चबाते हुए कुछ सोचता है और तभी उसके मेज पर रखी फोन की घंटी बज उठती है । वह फोन का रिसिवर कान से लगाकर दूसरी ओर से कही बातों को चुपचाप सुनता है। फोन करनेवाले की बातें सुनकर उसकी भौंहे सिकुड़ने लगती हैं । फोन रखकर वह तैस में बाहर निकलता है । उसे तमतमाया हुआ देख अनवर उसे टोकता है -"क्या हुआ सर?"


जोर से सांसें छोड़ते हुए वह कहता है - "बबली के घर की बिजली कटवा दी गई है ।"


अनवर: "क्या?"

सूर्या : "हां, अनवर ।"

अनवर : "सर इस वार का जवाब हमें भी दिमाग से ही देना होगा । जिससे शिकारी खुद अपने जाल में फंस जाए ।"


सूर्या : "शायद तुम ठीक कर रहे हो ।"


और फिर दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरातें हैं और एक साथ आवाज लगाते हैं -"राघव जी ।"


हेडकोंस्टेबल राघव दौड़ता हुआ आकर हाजिर होता है । "जी सर ? "


"घुमाइए अपनावाला नम्बर ।" दोनो मुस्कुराते हुए एक साथ राघव से कहते हैं।

*****

सूर्या बबली को लेकर मीडिया के साथ बिजली विभाग के ओफिस पहुंचता है । मीडिया के कैमरे के सामने बिजली विभाग के एस.डी.ओ से वह मुखातिब होता है और बिना किसी पूर्व नोटिस के अचानक बिना वैलिड कारण के बबली के घर की बिजली डिसकनेक्ट करने का कारण पूछता है । मीडिया को सामने देख एस.डी.ओ. सकपका जाता है और अपनी गर्दन बचाने के लिए वह साफ- साफ कहता है कि यह सब जो कुछ भी हुआ है वह इलाके के बाहुबली विधायकजी की दखलंदाजी से हुआ है । उसे ऐसा करने के सख्त ओर्डर मिले थे । सो ऐसे में उसने बस अपनी ड्यूटी बजाई है ।


एस.डी.ओ. ने बिना देर किए अपनी गलती सुधारते हुए बबली के घर की बिजली फिर से बहाल करवा दी ।


मीडिया ने एम.एल.ए.के इस कुकर्म को टीवी पर जमकर दिखाया । जिसके बाद पार्टी आलाकमान ने अपने एम.एल.ए. को पार्टी से निलम्बित कर दिया । उसके सारे पावर कम कर दिए गए । अब वो किसी 'पर' कटे परिंदे की तरह फड़फड़ा रहा था । और उसकी यह तड़प इस बात का संकेत था कि कहीं कुछ अनहोनी होने वाला है ।


एम.एल.ए.ने इन सारी मुसीबतों से पीछा छुड़ाने के लिए इस बार अबतक की सबसे गंदी चाल चली थी । उसने इस केस को खत्म करवाने के लिए सुनीता के छोटे भाई को किडनैप करवा लिया था । और उसने सुनीता के परिवार वालों को धमकी दी थी की अगर वो केस वापस नहीं लेते तो वो उनके बेटे को मार डालेगा। उसके इस कदम से सुनीता के घरवाले आतंकित हो उठते हैं । और अपने बच्चे को बचाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं । सुनीता के मम्मी पापा थाने पहुंचकर इंसपेक्टर अनवर से रिक्वेस्ट करते हुए कहते हैं वो इस केस को रफादफा करने में उनकी मदत करे । उनकी ए बात सुनकर पूरा पुलिस डिपार्टमेंट हिल जाता है । सूर्या की गैरहाजिरी में अनवर उन्हे यह समझाने की कोशिश करता है कि वो ऐसा ना करें । वह उन्हे हर प्रकार से बार बार यह समझाता है कि यह केस अब अपने अंजाम के करीब है । पर वे कुछ भी सुनने को तैयार नही होते । उनकी बस एक ही जिद थी कि अब यह केस बंद कर दिया जाए ।


इतने में गस्त से लौटा सूर्या सुनीता के माता पिता की बातें सुनकर आग बबूला हो जाता है और झल्लाते हुए कहता है - "आप सबने पुलिस को समझ क्या रखा है ? जब मर्जी मुंह उठाकर चले आते हैं किसी भी बात की रिपोर्ट लिखवाने । और जब मर्जी तब खुद ही ममाले का निपटारा कर लेते हैं और फिर केस उठाने चले आते हैं। आप सबको पता भी है कि इस केस को लेकर हम सबने कितनी मेहनत की है। रात दिन एक कर के इस केस को अंजाम तक लेकर आए हैं हम और अब आप सब इस केस को बंद करवाना चाहते हैं । यही वजह है कि पुलिसवाले किसी भी केस को पहली नजर में सीरियसली नहीं लेते हैं । क्योंकि वे जानते हैं की कोर्ट में पहुंचते पहुंचते या तो गवाह मुकर जाएंगे या फरियादी खुद ही केस बंद करवाने के लिए अर्जी लगाने लगेगा और उस केस के चक्कर में अपना नींद चैन बेचने वाले पुलिसवालों को निराशा के सिवा कुछ नहीं मिलेगा । पुलिसवाले जन्म से बुरे नही होते हैं उन्हे बुरा बनाती है सिस्टम । जिसका सबसे बड़ा पहलू है जनता । जी हां , अपने को बेबस, लाचार, मासूम कहने वाली ए धृतराष्ट्र रुपी जनता ही सारे भ्रष्टाचार की जड़ है । क्योंकि वो सबसे ज्यादा मतलबी और डरपोक होती है । याद रखिए अगर आपने आज इस केस को बंद करवाया तो आज के बाद यहां कोई भी पुलिसवाला किसी की भी मदद नहीं करेगा ।"


उसकी बातें सुन सुनीता की मां फफ-फफक कर रोने लगती हैंं । और रोते रोते वो अपनी सारी परेशानी सूर्या को बताती हैं । उनकी बात सुनकर सूर्या उनसे वादा करता है कि एक घंटे में उनका बेटा सही सलामत उनके पास होगा । इस तरह समझा-बुझाकर सूर्या उन्हें घर भेजता है और खुद अनवर और बाकी के पुलिस वालों लेकर एम.एल.ए.के घर पहुंचता है । उसे देखते ही भेड़िए के मानिंद मुस्कुराता हुआ अठखेली करते हुए बोलता है विधायक -"आइए आईए ए.सी. पी. साहब ,पधारिए । बताइए,क्या लेंगे आप? चाय, कॉफी या कुछ ठंठा ?"


चेहरे पे कठोरता लाकर गरज उठता है सूर्या-"फिलहाल तो उस बच्चे को ले जाने आया हूं जिसे आपलोगों ने किडनैप कर रखा है ।"


"ये क्या आप क्या बोल रहे हो ए.सी.पी. साहब ?"-अंजान बनते हुए एम.एल.ए.भोला बनने की नाटक करता है ।


पर इसबार उसका पाला एक ईमानदार और सिरफिरे पुलिसवाले से पड़ा था । जिसका बस एक ही मकसद था उस मासूम सी लड़की को इंसाफ दिलाना जिसे हवस के भूखे भेड़ियों ने बिना किसी अपराध के नोंच डाला था और उसके परिवार वालों को जिंदगीभर का घाव इनाम दिया था ।


वो धीरे-धीरे एम.एल.ए.के पास जाता है और मुस्कुराते हुए कहता है-"एम.एल.ए.साहब आपको मैं बस एक घंटे का टाइम देता हूँ। अगर एक घंटे में बच्चा घर नहीं पहुंचा तो आपका लाडला बेटा किसी भी समय जेल के अंदर कैदियों के आपसी मुठभेड़ में मारा जा सकता है । या फिर फांसी लगाकर अपनी जान भी दे सकता है। शर्म से........" और जोर से ठहाका लगाने लगता है सूर्या।


उसकी बात सुनकर एम.एल.ए चीख उठता है.-"ए.सी.पी तुम होश में तो हो? तुम्हें पता भी है कि तुम क्या बोल रहे हो?"


मुसकुराते हुए उत्तर देता है सूर्या-"सच बोल रहा हूं , कसम से । And your Time starts, now. "


इतना कहकर तेज कदमों से वस अपनी.गाड़ी की ओर बढ़ जाता है । आज एक अजीब सी चमक दिखती है कानून के उस रखवाले के चेहरे पर। अपनी चाल से आज कायामत ढा रहा था वह खाकी वाला ।


उसके थाने पहुंचने से पहले ही उसके मोबाइल पे सुनीता के भाई के घर पहुंचने की खबर आ जाती है।


*****


सुनीता की पोस्टमोर्टम रिपोर्ट आ गई थी । जिसमें उसके साथ रेप के बाद गाड़ी से कुचल कर मारने की पुष्टि हो गई थी ।


सुनीता के नाखूनों में मिले मांस और खून के नमूनों और आरोपियों से इकट्ठा किए गए बल्ड सैम्पलस के डी.एन.ए. रिपोर्टस भी अब तक आ गए थे । सूर्या ने सरकारी वकीलो से भी मीटिंग कर अब इस केस के क्लोजिंग की तैयारी कर ली थी । अब बस उसे इंतजार था तो कोर्ट की तारीख का । उस तारीख का, जिसदिन सारे सबूतों और गवाहों को मद्देनजर रखते हुए आरोपियों को सजा-ए-मौत का फरमान सुनाया जाना था । जिसके बाद सुनीता की रुह को शांति मिल जाएगी और उसे अपना फर्ज निभाने की खुशी ।


वो अभी अपने ख्यालों में खोया हुआ था कि उसके मेज पर रखी फोन की घंटी बजने लगी । उसने फोन उठाकर हैलो कहा और दूसरी ओर से कही जा रही बातों को चुपचाप से सुनता रहा।


"मैं आ रहा हूं।" बोलकर उसने फोन रखा और उठकर बाहर की ओर निकला । आज किसी से बिना कुछ बोले गाड़ी में बैठकर वो खुद ही गाड़ी भगाने लगा । उसके सुरक्षा कर्मी दूसरी गाड़ी में उसके पीछे हो लिए ।


वो गांधीनगर चौकी पहुंचा । उसे देखते ही पुलिसवाले उसके सम्मान में खड़े हो गए । सबने अपना फर्ज निभाते हुए जय हिंद का नारा दिया । जवाब में उसने भी जय हिंद कहा और पास के टेबल पे बैठे इंसपेक्टर को देख कर दहाड़ लगाते हुए बोला- "इंस्पेक्टर लोहित, क्या तुम जानते हो कि तुमने अपने शरीर पर चढ़ा रखा ए खाकी तुम्हारी अलमारी में रखे बाकी कपड़ो से बिल्कुल अलग है ?"


"जी ..., जी सर" हकलाते हुए बोला इंसपेक्टर ।


"क्या जानते हो?"


कोई कुछ नही बोला । कुछ पल के लिए सन्नाटा छाया रहा ।


"बोलो क्या जानते हो?”-सन्नाटे को चिड़ते हुए फिर से गर्जा था वो बब्बर शेर ।


आंखों से झलकते डर को अपने थूक के साथ गले के नीचे उतारने की कोशिश करते हुए इंसपेक्टर ने अपनी नजरें झुका लीं ।


"जानते हो इंसपेक्टर, ए खाकी जनता की हिफाजत और सेवा के लिए दिया गया है तुम्हें ।"


"पर सर......" अपनी सफाई में कुछ कहने की कोशिश की उसने पर बीच में ही उसे डांडते हुए सूर्या ने उसके जेब में रखी गाड़ी चोरी की फर्जी F.I.R. की कॉपी को निकालकर उसे दिखाते हुए कहा "ए क्या है इंसपेक्टर..?"


उससे कुछ भी कहते नहीं बन रहा था । नजरें झुकाए अपनी चुप्पी से वो आपनी गलती स्वीकार कर रहा था ।


"जानते हो तुम्हारी इस एक गलती की वजह से हमारे सारे किए कराए पर पानी फिर सकता था । याद रखो इंसपेक्टर, अगर हम आज हार गए तो आज के बाद कभी कोई पुलिसवालों पर भरोसा नही करेगा । ए लड़ाई बिश्वास की है । कानून की रक्षा की है और हमें हर हाल में इस लड़ाई को जीतना होगा ।"


अपनी करतूतों पर बिफर कर रो पड़ता है चंद पैसों के लिए अपने जमीर को गिरवी रखने वाला इंसपेक्टर । अपनी गलती का एहसास होते ही वह हाथ जोड़कर सूर्या से माफी मांगते हुए फिर कभी ऐसी गलती नहीं दोहराने का वादा करता है।




और एक अच्छे कप्तान की तरह उसकी गलतियों को बिना शर्त माफ कर सूर्या उसे गले लगा लेता है।

शायद इसीलिए कहते हैं कि पश्चाताप के आंसूओं में बहुत ताकत होती है।


*****

छल कपट के सारे पैंतरे आजमा कर हार चुके विधायक और बिजनेस टायकून सुधीर चन्द्रा ने अब अपने आखरी पैंतरे पर जोर आजमाने की ठानी । क्योंकि अब यही एक आखिरी उपाय था जो उनके नालायक, बिगड़े हुए अपराधी बेटों को बचा सकता था ।


पैसों के लिए अपने जमीर का सौदा करनेवाले चंद वकीलों के गिरे हुए दिमाग की उपज थी ए सारी प्लानिंउनके प्लान के अनुसार ही कोर्ट की तय तारीख को जिरह स्टार्ट होती है । गुनाहगारों के बजाव में कोई भी सबूत न होने के बावजूद उनके वकीलों ने कोर्ट में जबरदस्त जिरह की । कई भावुक स्पीच दिए और कोर्ट को गुनाहगारों को बरी करने की मांग की । ए सब उनके प्लान का हिस्सा था । पर सरकारी वकील के जिरह और पुलिसद्वारा पेश किए गए पुख्ता सबूतों के बिनाह पर विधायक और सुधीर चन्द्र के सारे प्लान के उलट कोर्ट ने आरोपियों के लिए सजा-ए-मौत मुकरर की । और इस फैसले ने आम लोगों के मन में देश के कानून के प्रति विश्वास की एक लौ जला दी थी । एक ऐसी लौ जिसमें लोगों को समान अधिकार का संदेश दिख रहा था ।


ए जीत खाकी की जीत थी । लोगों के मन में जगी खाकी के प्रति निष्ठा की जीत थी ।


कोर्ट से बाहर सूर्या सरकारी वकील को एक सीडी देते हुए कहता है- "लीजिए गुप्ताजी, आपके और जज साहब के काले कारनामों के सबूत । अब मुझे इनकी कोई जरुरत नहीं है।"


वो एक सीडी सरकारी वकील के हाथ में थमाता है । और मुस्कुराते हुए फिर कहता है -"और सोरी गुप्ताजी आपकी और जजसाहब दोनो की जासूसी के लिए । क्या करते? थोड़ी सी चूक सारा बना बनाया खेल जो बिगाड़ देती । और देखिए ना हमारा शक भी सही निकला । वो दोनों थके हुए कछुए आखिर अंत में आप दोनो को ही खरीदने पहुंच गए और सबसे कमाल की बात है की आप दोनों भी पैसे और प्रमोशन के नाम पर अपने फर्ज से चूकने को तैयार हो गए । आप भी बिक गए । तब जाकर हमें आपकी ए वीडियो फिल्म बनानी पड़ी । नहीं तो आप दोनो ने तो सारे किए कराए पर पानी फेर दिया होता । By the way ,आपको जीत की बधाई । गुप्ताजी देखते रहिए, ए जीत आपकी जिंदगी में धन,दौलत,शोहरत कामयाबी सब लेकर आएगी । क्योंकि आपकी इस जीत ने एक गरीब मजलूम के साथ न्याय किया है । उसकी आत्मा आपको दुआएं दे रही होगी ।"

मुसकुराते हुए वह शांतिलाल जी को धन्यवाद देता है और उन्हें विजयी होने का एहसास कराते हुए कहता है: "वेलडन शांतिलाल जी, आज सिर्फ आपकी सूझबूझ की वजह से देश की एक बेटी को न्याय मिल पाया है। आज कोयल की आत्मा भी बहुत खुश होगी और आपको दुवाएँ दे रही होगी।" उनके कंधे पर सांत्वना का हाथ फेरकर वह एक नायक की भांति कोर्ट से बाहर निकलता है।

बाहर मीडिया और पब्लिक पूरे गर्म जोशी से उनका स्वागत करती है। उनके जयकारे लगाए जाते हैं, पर वह कर्मवीर अपने अगले मिशन की ओर कदम बढ़ाते हुए आगे निकल जाता है।

उसे यूं किसी वीर की भांति कदम बढ़ाता देख लोगों की आंखों में उसके लिए और अधिक सम्मान की भावना उमड़ने लगती है। खाकी के इस नये अवतार को देखकर वे फूले नहीं समा रहे थे। उन्हें आज यह एहसास हो गया था कि खाकी के जिद्द और निष्ठा के आगे सब फीका है । सारी ताकत सारा पावर ।




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