कड़वा सच
कड़वा सच
जुड़वां बेटों की मां समाज में क्या रुतबा होता है। दो दो बेटों की मां होने का यह कोई शोभा से पूछे। दिली तमन्ना थी उसकी कि वह भी बेटे की मां बने। उसके घर में भी बेटा होने पर थाली बजे। क्यों बेटियों की मां ही कहलाए। आखिर उसे भी तो मोक्ष पाने का अधिकार है ना।
इसके लिए उसने क्या जतन नहीं किए। अपने ही हाथों अपनी कई अजन्मी बेटियों को अकाल मृत्यु के हाथों सौंप दिया । समाज के आरोपों से बचने के लिए सारा दोष अपनी सास के सर पर जड़ दिया क्योंकि यही सबसे आसान तरीका है ना। सास को बुराई मिली और उसे सहानुभूति।सच पर पर्दा डाल मन ही मन कितनी खुश थी वो।
हां भगवान ने भी इस बार उसकी सुनी एक नहीं दो दो बेटों की मां की पदवी से उसे नवाजा।
खुशी के मारे वह तो मानो आसमान में ही उड़ रही थी लेकिन यह क्या वह अपने पैरों पर खड़ी क्यों नहीं हो पा रही थी। क्यों शरीर में एक अधूरापन लग रहा था। उसने प्रश्नवाचक नजरों से डॉक्टरों की ओर देखा तो उन्होंने रूखे स्वर में दो टूक जवाब दिया "कई अबॉर्शन के बाद आपका शरीर कमजोर हो चुका था। आपका केस बहुत ही डिफिकल्ट था। वैसे सब कुछ सही है लेकिन अब आप सारी जिंदगी सही से चल फिर नहीं पाएंगी।"
यह सुन मानो वह धड़ाम से आसमान से जमीन पर आ गिरी हो। आंखों से आंसुओं का सैलाब बह निकला। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे किस गुनाहों की सजा मिली ।अचानक से उसे कमरे में बहुत ही छोटी बच्चियों के हंसने, चीखने चिल्लाने की आवाजें सुनाई दी। उसने आंखें उठाकर देखा तो उसे बहुत सी अजन्मी बच्चियां दिखाई दी। ध्यान से देखने पर उसे सब अपनी वह बेटियां लगी जिसको उसने जन्म लेने से पहले ही मार डाला था।
आज मानो वह सब चीख चीखकर कह रही हो की "मां हमारा क्या कसूर था।" इस सवाल ने उसकी अंतरात्मा को झकझोर दिया। उसे अपने पर ग्लानि हो रही थी । जिस खुशी के पीछे वह यू अंधी हो भागी। उन्हें ही वह सही से अपनी गोद में संभालने लायक भी नहीं रही। समाज से तो उसने यह सच छुपा लिया लेकिन भगवान ने इस अनकहे सच को इस रूप में उसके सामने ला खड़ा किया।