कड़वा सच
कड़वा सच


हम ऐसे देश के रहवासी है,
जहाँ बाप की इज्जत बेटी के हाथों मे होती है
मगर जायदाद सारी बेटों के हाथोमें होती है
हम ऐसे देशके रहीवासी है,
जहाँ बेटी के मायका और ससुराल दो दो घर होते है,
फिर भी वो दोनो तरफ से परायी, होती है
और बेटा अपने बाप के घरपर अधिकार कर,
ऊन्हे वृध्दाश्रम भेज देता है
हम ऐसे देशके रहीवासी है,
जहाँ महिला भूखी प्यासी अपने गृह-कार्य मे लिन होती है,
मगर ऊसे सम्मान देने के बजाय ऊसे झटकार दिया जाता है
हम ऐसे देशके रहीवासी है,
जहाँ महीला-सुरक्षा के कानुन तो बनते है,
मगर आँखोपर पट्टी बंधी कानुन की देवी के सामने,
महिला उतनी ही असुरक्षीत होती है
हम ऐसे देशके रहीवासी है,
जहाँ महिला से बेटे के
जन्म की ही अपेक्षा रखते हैं,
और बेटी अगर हो तो घर के ही बुजुर्गों के
ताने सुनने विवश हो जाती है
हम ऐसे देशके रहीवासी है,
जहाँ पुरुष व महिला को समान
अधिकार की बातें तो होती है,
मगर फिर भी ये सभ्य समाज
पुरुष-प्रधान ही कहलाता है
पुरुष-प्रधान ही कहलाता है
पुरुष-प्रधान ही कहलाता है।