कबाड़
कबाड़


शर्माजी बेहद खुश थे उनके पैर मानो जमीन पर ही नही टिक रहे थे..और हों भी क्यों नही उनके इकलौते बेटे रमेश का सीधे अफसर की पोस्ट पर सिलेक्शन जो हुआ था। नया घर मिला वो भी हाईफाई सोसायटी मे। थ्री बी एचके वरना अब तक तो शर्माजी किराए के मकान मे धक्के खा रहे थे। ऐसा नहीं कि उन्होंने कभी अपना मकान नहीं बनाया था ... बनाया था मगर बेटे रमेश को बडा अफसर बनाने मे उसकी अच्छी पढाई और जरुरतों के लिए बेच दिया। तमाम संघर्ष किए इस बीच पत्नी का साथ भी छुट गया मगर हिम्मत नही हारी और बुढापे मे गार्ड की नौकरी भी की ...जिसकी बदौलत आज उनका सपना पूरा हो रहा था।
बहु और दो मजदूरों सहित पूरे घर मे समान बखूबी जमा दिया सचमुच घर एक मंदिर की तरह लग रहा था आखिर थ्री बीएचके मे से एक कमरा उनके लिए भी था । दोपहर को रमेश आफिस से लंच करने के लिए घर लौटा तो घर को करीने से सजा देख खुदपर नाज करने लगा ...कहाँ किराए का छोटा सा मकान और कहा सभी कमरे बड़े बड़े ...फिर उसने पूरे घर का मुयायना किया अपना और पत्नी का कमरा देखा फिर किचन और साथ मे बना स्टोर रुम जिसमें तमाम कबाड़ का समान भरा हुआ था ताकि घर मे आलतू फालतू समान दिखाई ना दे ...फिर बेडरूम गेस्ट रुम और बडा सा हाल देखा .... आखिर मे पत्नी को बुलाकर बोला-सुनो ...इस स्टोर रुम से ये कबाड़ बाहर निकालो ..इसे बेचो.. फेको ... जो मर्जी करो मुझे ये खाली चाहिए। पत्नी ने हैरानी से वजह पूछी तो रमेश बोला-"इसमें पिताजी की चारपाई बिछाकर उनके रहने की जगह बनानी है अब बुढापे मे उनके लिए बड़े कमरे की क्या जरूरत और जिस कमरे में पिताजी हैं उसे मे अपना रीडिंग रूम बनाऊंगा सकून से अपना आफिस का काम करूगां। इसके दो फायदे एक तो मुझे कोई डिस्टर्ब नही होगा दूसरे तुम अपने पर्सनल कमरें जो चाहे करो जैसे मर्जी अकेले रहो...... दोनों पति पत्नी मुस्कुराते हुए अपने काम को अंजाम देने मे लग गए ।
रात को स्टोर रुम मे शर्माजी कभी खुदको कभी छोटे से कमरे को देखने लगते ...और जब सांस लेते तो उन्हें पहली बार खुद मे से कबाड़ होने की दुर्गंध महसूस हो रही थी .... निशब्द...