Onika Setia

Abstract Tragedy Inspirational

3.0  

Onika Setia

Abstract Tragedy Inspirational

कबाड़

कबाड़

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        ज्योति कबाड़ी वाले को बुलाकर अपने घर का सारा पुराना टूटा -फूटा, सामान निकाल कर दे रही थी, बेचने को । जैसे टूटी हुई चारपाई, कुर्सी, मेज, आईना,  जंग खाए हुए स्टील के बर्तन, लाठी,  और रद्दी में पुराने अखबार, पत्रिकाएं, पुस्तकें। आदि। जब सब वस्तुएं एकत्र हो गयी तो ज्योति ने कबाड़ी वाले को हिसाब करने को कहा । लगभग १ घंटा बहस चलती रही । इतने में ज्योति का बेटा अंकुश स्कूल से आया और घर की चौखट के बाहर बिखरे हुए सब सामान को  देखा तो पूछ बैठा, ’’ क्या कर रही हो मम्मा ?’’


         ‘’कुछ कबाड़ बेच रही हूँ बेटा, ‘’

     ‘’ क्या देख रहे हो, तुम्हारे मतलब का इसमें कुछ नहीं है, तुम जाओ अन्दर और डाइनिंग टेबल पर रखा है जूस का गिलास, उसे पी जाओ, और अपनी यूनिफार्म भी बदल लो, जाओ!’’

       माँ  के आग्रह को अनसुना करके अंकुश फिर भी उस  कबाड़ से जाने क्या तलाश कर रहा था। आखिरकार इतना तलाश करने पर उसे अपने प्यारे दादाजी का टूटा हुआ चश्मा, बर्तन (जिसमें उन्हें खाना दिया जाता था,)


     उनका कई जगह से मुड़ा–तुड़ा स्टील का गिलास, और लाठी आदि मिल गयी और उठाकर वो अन्दर ले जाने लगा तो ज्योति ने उसे रोक लिया।


     ‘’ इसका तुम क्या करोगे ? यह तुम्हारे दादाजी का था। अब इन चीजों की  कोई ज़रूरत छोड़ो इसे ‘’


   ‘’ ज़रूरत है मम्मा ! कैसे ज़रूरत नहीं। ? जब मैं बड़ा हो जाऊंगा और आप बूढ़े हो जाओगे तो आपको और पापा को  इसी  में खाना  खिलाया करूँगा, इसी गिलास में पानी दूंगा, जिसमें आपने दादाजी को दिया और आपको भी इस लाठी की, इस चश्में की ज़रूरत पड़ने  वाली है.. है ना !


     अंकुश अपने प्यारे मरहूम दादाजी का सामान लेकर घर के अन्दर चला गया रहस्यमई मुस्कान के साथ.....



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