काठ की हांडी
काठ की हांडी
रसोई चकाचक साफ़ थी। सभी बरतन प्रसन्न थे।दोस्ती जो थी उनमें। पर यह क्या ?
मालकिन हाट से एक सुंदर नक्काशीदार हंडिया लाई और छीके पर रख दी।
बरतनों के चेहरे लटक गये।सबसे खूबसूरत जो थी वह 'काठ की हांडी'।
रात भर बरतनों में गुप्त सभा होती रही। बरतन नाखुश थे।अपने बीच इतनी खूबसूरत हांडी को देख कर।
अचानक 'बेपेंदी का लोटा' उछल कर बोला, "मित्रों चिन्ता क्यों करते हो? सुंदर है तो क्या? काठ की हांडी है।बस, एक ही बार चूल्हे पर चढ़ेगी।"
तभी मालकिन सुलगती हुई अंगीठी ले कर रसोई में आई।
लोटे ने चाकू के कान में कुछ कहा और उसे छीके की तरफ़ उछाल दिया।
चाकू छीके की रस्सी काटता हुआ सीधे सुलगती हुई अंगीठी में जा गिरा और उसके बाद गिरी काठ की हांडी, जमीन पर पर टूटी नहीं। कमज़ोर जो नहीं थी।
वह आँख मलते हुए उठी और अपने आस-पास षड़यंत्रकारियों को देख कर सहम गई।
मन से आवाज़ आई, "काश ! मैं हाट में ही रहती !'