काश ऐसा होता
काश ऐसा होता
सरिता और राम एक ही कॉलोनी में रहते थे, साथ रहते खाते पीते और मौज मनाते थे। ऐसा करते करते जाने कब हम बड़े हो गए। सरिता पर उसके माता-पिता की बंदिशें बढ़ने लगी। राम को कुछ समझ नहीं आ रहा था अचानक क्या हो रहा है आज कल सरिता का व्यवहार भी बदल रहा है। धीरे-धीरे सरिता राम से थोड़ा कतराने लगी उधर राम को उसकी आदत बन चुकी तो वह आज भी वही छोटा सा राम था जो सदा उसके साथ खेला करता था। अत: एक दिन राम की हरकतों से परेशान होकर सरिता ने उसे डांट दिया। राम को यह सब अच्छा नहीं लगा वैसे भी वह उसकी किसी बात का बुरा नहीं मानता था। सच बात तो यह है की साथ में रहते रहते राम सरिता को कब अपना दिल दे बैठा उसे पता ही नहीं चला और उसने जाकर सरिता से कह दिया वह उससे बहुत प्यार करता है और उसके बिना नहीं रह सकता। सरिता ने बहुत समझाया कि इस उम्र में ये सब होता है अभी हमारा वक़्त अपना जीवन बनाने का है। वह भी मन ही मन उससे प्यार करती थी लेकिन जाहिर करने की शक्ति उसमें नहीं थी। उसने राम को समझाया कि प्यार को बताया नहीं वह तो हो जाता है और जब हो जाता है तो आंखें ही सब ब्यान कर देती है उसे शब्दों में पिरोने की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये सब बाते राम के समझ में नहीं आई वह तो प्यार को शब्दों में बांधना ही प्यार समझता था काश वह भी सरिता को समझ सकता अगर ऐसा होता तो उनका रिश्ता सदा सदा के लिए कायम रहता। ऐसी बातों से राम कहाँ मानने वाला था वह तो पागल सा हो गया था। वह जिद्द करके बैठ गया और धीरे अपना आपा खोने लगा अब उसका किसी भी चीज में मन नहीं लगता था। अपने बेटे की आदतों से परेशान होकर उसकी शादी कर दी लेकिन राम कभी भी अपनी पत्नी को वो प्यार नहीं दे पाया जो वह सरिता से करता था और एक पत्नी के रूप में उसे दे सकता था। राम न तो पूरी तरह से एक अच्छा पति ही बन पाया न ही एक अच्छा प्रेमी। हाँ यह बात दूसरी है कि अच्छी नौकरी और एक अच्छी प्राप्त कर पाया और सरिता भी अच्छे परिवार की बहू बनी लेकिन जब भी दोनों मिलते है है उनके मुंह से एक ही बात निकलती है कि “काश ऐसा होता” तो ये हो जाता वो हो जाता, पता नहीं क्या-क्या हो जाता।।
