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Shivam Vidrohi

Abstract

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Shivam Vidrohi

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कामयावी की कठिन राह लोग

कामयावी की कठिन राह लोग

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एक दिन मैं अपने जीवन के सपने देख रहा था। वो सपना बस सच होने वाला ही था।

लोग मुझे पे हंसते थे क्योंकि मैं सभी से सच बोल दिया करता था ।आज शनिवार का दिन था, मुझे न नींद आ रही थी न कुछ करने का मन करता था। बस सोमवार का क्यों कि अन अकाडमी के एस ई ओ सादी थी, उसकी कुछ थोड़ी प्रोसेस थी वो बाकी थी वो पूरा होना था।

पड़ोसी हंस रहा था, मामा हंसे डांटे भी,

कहते हैं कि जन्म देने वाली मां जो अपने बच्चों की खुशी चाहती है वो मेरा मज़ा ले रही थी। आज जीवन में सबसे कठिन परिश्रम ये समझ आ रहा थी कि सबसे कठिन तो लोगो को फोस करना होता़

लोग आज मुझे जीने नही दे रहे थे। मेरा जीना बस यही लग रहा था बस तो जीवन में राह खुल जायेगी या फिर मेरा अंत होना तय था। कभी हंसता था तो कभी आंसू बिना बताए निकल जाते थे। मुझे अपनी जिंदगी जीनी है।

मुझे जीने दो तो भी नहीं मैं कहा औऱ किधर जाना है मुझे कुछ पता नहीं था ,वो लोगो का हंसना मेरे दिल का वो कांटा था जिसे मैं चुभने से बचा नहीं सकता था मेरे आंसू बस मुझ तक ही थे

मेरे आगे नहीं पीछे तो दूर दूर कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

अब मैं आज सोच लिया था कि जीवन में वो काम करूंगा जिससे लोग जो हंसते थे वो मुझे मिलने की परमीशन बिना न आएं चाहे वो माँ ही क्यो न हो.

मैं रात में सो नही पाता था, कभी जब मैं बचपन मे मंगा तो बच्चा था आज बड़ा हो गया मेरी वो मेहनत किसी को नहीं दिखती थी क्योंकि जो करता था अपने बल पे मुझे जीवन सब की तरह जीना था.

एक टाइम था कुछ कपड़े मैं मांगा तो बोला गया बच्चा है।

जब बड़ा हो गया तो बोला कि कितने कपड़े हैं, फोन बोलो तो कभी नया नहीं अपना पहना हुआ दिया करते थे .क्या कभी ये नही सोचता कि हमारा जब नए का मन करता होगा तो इसका भी तो लेकिन ये कभी कोई सोचा ही नहीं क्योंकि मुझे प्यार कोई नहीं करता .मैं एक परिवार का वो बेकार था घर से कभी पैसे खो जाते तो प्यार से बोलते दादू ने किया होगा, कुछ घर मे खराब हो जाता तो दादू ने किया होगा ,ये मैं अपने परिवार से फेस किया .जीवन मे कभी आसानी से जी नही सोचता भी नहीं था .मैं एक हर कम करता था जब बच्चा नहीं था क्योंकि वो काम मैं कर लेता हूँ तब बड़े नहीं मैं छोटा कर लेगा. लेकिन जब मैं बड़ा हुआ तो मैं करूं वो छोटे हैं बस एक बात सोंचता था कि बीच वाले कब होंगे बस पैसे के बारे में सोंचता था। पूरी रात पूरा दिन मेरी सोच ही पैसे में बदल गयी थी मुझे ये लगता था मैं खुद पे डिपेंड होना चाहा, हर दम हर वक्त.



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