कुमार जितेन्द्र जीत

Drama

5.0  

कुमार जितेन्द्र जीत

Drama

ज्वलंत समस्या - चिंतनीय विषय

ज्वलंत समस्या - चिंतनीय विषय

5 mins
981


गांवों के पारम्‍परिक सांस्कृतिक मेले दिनो - दिन अपने रंगो से फीके होते हुए* गांवो में मेला लगा है मेला, आओ सज्जनों मेले चले मेला कितना अच्छा शब्द है, सभी रंगो को एक जगह मिलाने वाले स्थान को हम मेला कह सकते हैं। और कहना भी चाहिए क्योकि यह मेला ही हम सबको मिलाता है। एक दूसरे के भावों को जोड़ने का महत्वपूर्ण भूमिका मेला ही निभाता है। गांवो की रौनक बढ़ाने का कार्य मेला ही करता है। एक दूसरे में भाईचारे की भावना विकसित करने में सहयोग देता है। पौराणिक सांस्कृतिक को जीवित रखने में गांवों के मेले अनौखे भरे जाते हैं। परन्तु वर्तमान समय में गांवो के पारम्‍परिक सांस्कृतिक मेले अपने रंग में फीके नजर आने लग रहे हैं। अखिर इसके पीछे मुख्य वजह क्या है आईए मित्रों *कुमार जितेन्द्र "जीत"* के साथ विश्लेषण से मेले रंगो में दिनो - दिन होती कमी को समझने का प्रयास करते हैं। 

उचित कमेटी के गठन का अभाव* गांवो के पारंपरिक मेलो को उचित दिशा निर्देश, मेले को सफल बनाने की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए उचित कमेटी का गठन होना जरूरी है। कमेटी गठन के समय ऎसे सदस्यो को शामिल करना चाहिए। जो मेले को सफल बनाने में मदद करे, मेले की व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूर्व तैयारी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। जो सदस्य मेले की रूपरेखा तैयार सके और अपने मान - सम्मान की परवाह किए बगैर निःस्वार्थ भाव से मेले की गरिमा बनाए रखे। परंतु वर्तमान समय में ऎसी उचित कमेटियां देखना मुश्किल हो गया है। वर्तमान में कमेटियां चेहरे देख के बनाई जाती है। न कि काम करने वाले और अपनी जिम्मेदारी निभाने वाली कमेटी होती है। 

कमेटी द्वारा योजना के अनुरूप कार्य न करना* वर्तमान समय में प्राय: यह देखा जा रहा रहा है। गांवो के पारंपरिक मेले अब अपने रंग में फीके होते जा रहे हैं। ऎसा क्यों होता है, इसके पीछे क्या वजह है। यह सब हम जानेंगे तो पता चलेंगा कि मेले को सफल बनाने के लिए जो कमेटी बनाई गई है। वह कमेटी उचित योजना के अनुसार कार्य नहीं कर रही है। मेला कमेटी को पूर्व तैयारी करते हुए मेले को सफल बनाने के लिए योजना बनाई जानी चाहिए। उन्ही योजनाओं के अनुरूप कार्य करने से मेले में चार चांद लगा सकते हैं। 

बड़े पैमाने पर प्रचार - प्रसार की कमी* मेला जिसमे बना रहे लोगों का रेला वही मेला होता है। पैर रखने की जगह भी नहीं, सामान बड़ी मुश्किल से खरीद पाए, झूले झुलने के इंतजार ही करते रहे रुकने का नाम ही नहीं है। लोगों के मुह पर एक ही नाम आज तो मेला जबरदस्त भरा हुआ है। मेले की आवाजें दूर दूर तक गूंज उठे वही मेला होता है। परन्तु वर्तमान समय में देखा जा रहा है कि मेला की परिभाषा ही बदल गई है। ना ही कोई रौनक, ना भीड़ मानो कही शादी का कार्यक्रम चल रहा हो। ऎसा क्यो हो रहा है, क्यो मेला अपना रंग बदल रहा है। कारण यह है कि मेला कमेटी द्वारा मेले का बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार नहीं किया जा रहा है। आसपास के लोगों को को मेले की जानकारी नहीं पहुच पाती है। जिससे मेले मे लगने वालों हाट बाजार, झूले, विभिन्न गैर नृत्य एवं अन्य समाज सेवी संस्थाए समय पर पहुंच नहीं पाती है। जिससे मेले की रौनक खत्म हो जाती है। वर्तमान समय में मेले को पुनः अपनी पृष्ठभूमि में लौटना है तो सभी कमेटी सदस्यो को व्यापक रूप प्रचार प्रसार करना होगा। पूर्व तैयारी करनी होगी। विभिन्न प्लेटफार्म सोशल मीडिया, समाचार पत्रों के माध्यम से प्रचार प्रसार की गति को बढ़ाना होगा। लोगों तक मेले की सही जानकारी पहुंचानी होगी। 

पर्याप्त मात्रा में भौतिक सुविधाओं की कमी* मेले में दूर दूर से आने वाले लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में भौतिक सुविधाओं की सख्त आवश्यकता होती है। जैसे बैठने के लिए छाया की अनुकूल व्यवस्था, पानी के प्याऊ, मेले में घूमने के लिए छोड़े छोड़े रास्ते, किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए नियंत्रण कक्ष स्थापित होना जरूरी है। आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से बचने के लिए सुरक्षा की व्यवस्था भी जरूरी है। यानी मेले को परिपूर्ण से सफल बनाना है तो पर्याप्त मात्रा में भौतिक सुविधाओं की जरुरत होती है। अन्यथा कुछ लोगों के द्वारा सुविधाओं की कमी का गलत संदेश प्रचारित करने से मेले पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वर्तमान समय में मेलो की कमेटी द्वारा लोगो की अनुकूल सुविधाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है। 

विभिन्न प्रतियोगिताओं के आयोजन में रुचि नहीं* मेले की रौनक को बरकरार रखने के लिए मेले में विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाना भी जरूरी है। प्रतियोगिताओं से मेले की रौनक बनी रहती है। परन्तु वर्तमान समय में कमेटी द्वारा कई मेलो में प्रतियोगिताओं का आयोजन नहीं किया जाता है। जिससे भाग लेने वाले खिलाड़ी अपनी प्रतिभा नहीं दिखा पाते हैं। वर्तमान में सांस्कृतिक मेलो को पुनः अपने रंगो में लौटाने के मेला कमेटी द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाना जरूरी है। जिससे मेला अपनी पृष्ठभूमि में लौट सके। 

शिक्षित वर्ग द्वारा मेले को दरकिनार करना* वर्तमान समय में प्रायः यह देखा गया है कि गांवों के सांस्कृतिक मेलों में शिक्षित वर्ग अपनी रुचि नहीं दिखा रहे हैं। शिक्षित वर्ग मेले से दिनो दिन मुह मोड़ रहे हैं। शिक्षित वर्ग को गांवों के मेलो में जाना अपने आप में शर्मीदगी महसूस कर रहे हैं। जिसका प्रभाव अपने आसपास के लोगों पर भी ज्यादा पड़ रहा है। गांवों के मेलों को पुनः अस्तित्व में बनाए रखने के लिए शिक्षित वर्ग को भी अपने सुझाव रखने के लिए आगे आना होगा।

गांवों के रंगीन सांस्कृतिक मेले है, प्रेम और भाईचारे के प्रतीक।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama