दीपक कुमार

Drama

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दीपक कुमार

Drama

जुदाई

जुदाई

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ये इश्क और समाज एक दूसरे के विपरीत हैंं।जो ईश्क में पड़ गया उसे समाज को छोड़ना पड़ेगा। मेरी कहानी भी कुछ ऐसी ही है:-

बी.ए.खत्म होने के बाद पापा ने कहा 'अमित,घर में बैठे-बैठै क्या करेगा? जा कुछ काम कर वैसै भी अब तूझे पढ़ाने की शक्ति हममें नहीं है।'

उसके बाद मैनै रोहन भैया की सहायता से शहर के एक मॉल में नौकरी कर ली। एक दिन उसी मॉल में पुष्पम शॉपिंग करने आई।पुष्पम और मैं दोनों हाईस्कूल में साथ पढ़े थे।हमदोनों का क्रमांक भी सेम ही था,पढ़ाई में दोनो ठीकठाक।यूँ कहे हम दोनो दोस्त थे।

उसने मुझे देखते ही पहचान ली,हमने बातचीत की और वो शॉपिंग करके चली गई।उसके बाद हर दो-तीन दिन में मॉल आने लगी,वो यहाँ शॉपिंग करने के लिए ब्लकि मुझसे मिलने आती थी।

धीरे धीरे हमारे बीच नजदीकियाँ बढ़ती गई,और प्यार हो गया।

उसके बाद हम घंटो फोन पर बाते करते, चैटिंग करते। कभी उसे मूवी लेके जाता तो कभी नौलखा मंदिर घूमाने।

सबकुछ बढ़िया चल रहा था कि उसके भाई ने हमदोनो को साथ देख लिया।उसके भाई से मैंं क्रिकेट मैच में झगड़ा कर चुका था।

मामला सीधा घर आ गया और घर से पंचायत।

पंचायत में पुष्पम,मैं और दोनो के फैमिली मौजूद थे। हमारे पंचायत का मुखिया बहुत दबंग आदमी है,उसने कई हत्या-किडनैपिक कर रखी है, कालेधंधे का तो बॉस है अभी यहाँ का।इसके डर से ही लोगो ने इसे वोट दे दिया।

लम्बी बहस के बाद में पंचायत ने फैसला सुनायी। फैसला यह था कि आज से हमदोनो कभी नहीं मिलेगें और फोन पर बातचीत भी नहीं करेगे,जिसने पहले सम्पर्क करने की कोशिश की, उसके माता पिता को पचास हजार रुपए जुर्माना देने पड़गे तथा 100 बार.दण्ड -बैठक करने पड़गे।

पुष्पम से मिलने के दिल मचल जाता है मगर माता पिता की इज्जत के बारे में सोचकर खुद को काबू में कर लेता हूँ।

मुझे 'इश्क और समाज' ने कहीं का नहीं छोड़ा।


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