जननी
जननी
उसका नाम तो है जैसे सबका होता है, पर वो बताना नहीं चाहती। वैसे भी क्या फर्क पड़ जाएगा वो कहानी का बस एक पात्र ही तो है नाम ना हो तो अच्छा ही है सुनने पढ़ने वाले इस जगह खुद को आसानी से रख सकते हैं।बात कई साल पुरानी है पर बात का टॉपिक पुराना नहीं
उस दिन रात को सोने जाने के बाद से ही उसे दिक्कत होने लगी थी काफी कोशिश करने के बाद भी नींद नहीं आई उसे टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस होने लगी, दो तीन बार जा कर आना काफी थका देने वाला होता है जब गर्भावस्था अपने चरम पर हो।हसबैंड की पोस्टिंग की वजह से वो दोनों ही रहते थे इन दिनों उसकी सास उनके पास आ तो गई थीं वो कुछ महीनों पहले सेवानिवृत्त हुईं थीं उनके अध्यापिका के कार्य से परंतु उन्हें उनके पूजा पाठ और व्रत त्योहारों से इतनी फुरसत नहीं थी की पहली बार मां बनने जा रही बहू को गर्भावस्था से जुड़ी कुछ जानकारी दें उल्टा हमेशा ऐसी बातें करना कि बच्चा कहीं ऐसा न हो, वैसा न हो, एब्नॉर्मल न हो,कोई और होती उसकी जगह तो रोती, दुखी होती पर वो ऐसी न थी, बी एस सी की हुई थी उसने, इन बातों को ये कह कर बंद करवाया की डॉक्टर सोनोग्राफी करवा चुके हैं और ये होती ही इसलिये है कि बच्चे की सही ग्रोथ का पता चले उसे क्या किसी को भी उसकी पढ़ीलिखी सास से ऐसे बर्ताव की उम्मीद नही थी परंतु सच कड़वा होता है,सास के व्यवहार से उसका परिचय था तो उसने सबसे पहले पति को आवाज लगा कर कहा की "पता नही क्या हो रहा है,समझ नहीं आ रहा" क्योंकि उसे लगा डॉक्टर ने डिलीवरी की जो डेट दी है उसमे अभी 9 दिन बचे हैं पति ने अस्पताल जाना ही ठीक समझा रात के तीन बजे थे तो उसने मना किया की अभी तो इतनी रात है कैसे जाएंगे सुबह होने दो तब चलेंगे पर उसको बार बार टॉयलेट आता जाता देख और गर्भावस्था के पिछले बीते समय में आई कई परेशानियों के अनुभवों से गुजर चुके साथ ही उनकी डॉक्टर की डांट खा चुके पति ने कोई भी फैसला करने में देर नहीं की और वे पड़ोसियों को बुलाने चले गए, उनसे अपनापन था वो भी सुनते ही बिना देर किए तुरंत पत्नी को साथ ले कर आ गए तब तक पौने चार बज गए थे उन्होंने हालत देखी तो "किसी की कार मिल जाए" कह कर, उनके जानकार को उठाने गए थोड़ी ही देर में कार दरवाजे पर थी और जो भी समान एक बैग में पहले से ही पैक किया हुआ था उसको ले कर अस्पताल पहुंचे तुरंत स्ट्रेचर पर ही डॉक्टर ने उसे देखा और सीधा लेबर रूम में भेज दिया दर्द काफी तेज़ होता जा रहा था उसकी हालत खराब हो रही थी उसे लगा मर जाएगी दर्द से उसे बस आवाजें आ रही थीं जोर लगाओ, जोर लगाओ वो रोती जा रही थी चीखें भी रोके न रुकती थीं इतनी असहनीय पीड़ा, उसे लगा क्या है ये, गुस्सा भी बहुत आ रहा था उसे।कोई उस पर नहीं बस सब उसके होने वाले बच्चे को ही फोकस किए हुए थे पर कुछ ही देर में बच्चा दुनियां में आ गया गायनोकोलोजी डिपार्टमेंट की HOD के सुपरविजन में उसकी डिलीवरी हुई जाते हुए वो उसके सिर पर हाथ फेर कर बोलते हुए गईं की इतनी दुबली पतली बच्ची ने बहुत हिम्मत से काम लिया उसे तो कुछ समझ ही नहीं आया सब कुछ इतना जल्दी जल्दी होता गया वहां के डॉक्टर्स के मुताबिक थोड़ी देर और करते तो शायद घर पर ही ये घटना हो जाती। दर्द से उसका बुरा हाल था उसे पांच टांके लगे थे और दर्द से वो अधमरी हो चुकी थी अब उसे लेबर रूम से साइड के ऑब्जर्वेशन रूम में ले जाया जा रहा था उसके कानों में सुनाई पड़ा वहां काम करने वाली परिचारिकाएं कहने लगीं "माता जी बधाई दो, बधाई दो! और जवाब मिला "क्या बधाई दें लड़की हुई है", ये शब्द आज भी बार बार उसके कानों में गूंजते हैं, ये कैसा स्वागत एक महिला जाति की नवजात का एक महिला द्वारा। डिलीवरी का दर्द तो कुछ दिनों में चला गया पर उन शब्दों का दर्द उसकी मौत तक उसके साथ रहेगा जो एक जननी ने दिया एक जननी के पैदा होने पर उसकी जननी को।
