जन्मदिन
जन्मदिन
मोहन के जन्मदिन का इंतजार मोहन व उसके परिवार वाले कई दिनों से कर रहे थे। आज मोहन का जन्मदिन था। मोहन के पिता जी ने जन्मदिन मनाने का शानदार प्रोग्राम रखा। मोहन के घर के पास में ही एक निर्धन बालक दीनबंधु रहता था।
जन्मदिन के दिन मोहन के पिता ने अपने पहचान वाले सभी अतिथियों को आने का निमंत्रण दिया। दीनबंधु निर्धन परिवार से था तो मोहन के पिता ने उसे पूछा तक नहीं। मोहन ने पिता से कहा "पापा आपने दीनबंधु को बुलाया है जन्मदिन के पार्टी में।"
पिता जी ने सिर हिलाते हुए न में उत्तर दिया। मोहन यह सुनते ही मायूस हो गया। सुबह से जो खुशी चेहरे पर साफ-साफ झलक रही थी, उसका स्थान अब गम़ ने ले लिया। मोहन घर के एक कोने में बैठकर मन ही मन सोचने लगा पापा ! भला ऐसा कैसे कर सकते हैं ? पापा तो रोज मुझे सिखलाते थे कि बेटे आदर व सम्मान का भाव सभी के प्रति एक समान रखना चाहिए। फिर पापा ने दीनबंधु को जन्मदिन में न बुलाकर क्या साबित किया है ?
क्या केवल अच्छी बाते दूसरे को कहने के लिए ही होती है ? उसे आत्मसात करने के लिए नहीं। माना दीनबंधु मेरा अपना बंधु नहीं है, पर मैं उसे बंधु से भी बढ़कर समझता हूँ। उसके बिना मैं जन्मदिन की पार्टी नहीं मना सकता। पापा भले ही मुझे सिखलाए गए सकारात्मक विचार भूल गए हो पर मुझे स्मरण है।
