जलपरियों का बदला
जलपरियों का बदला
जलपरियों की सभा शुरू हो गयी थी। अध्यक्षता ख़ुद रानी जलपरी कर रही थीं। रानी जलपरी ने जब समस्याओं के बारे में पूछा। तो एक जलपरी बोल पड़ी। उसने बताया कि इन दिनों मनुष्य जलनिधि पर भी कब्जा करना चाहते हैं । कभी जलजीवों को मारते हैं तो कभी उनके जहाजों से टकराकर भी जलजीव मर रहे हैं। तब रानी जलपरी को याद हो आता है कि कैसे उन्होंने इंसानों से संधि की थी कि इंसान जलनिधि के एक खास हिस्से पर तो जलजीव जलनिधि के दूसरे हिस्से में रहेंगे और एक दूसरे की सीमा का कम से कम उपयोग करेंगे।
पर ऐसा हुआ नहीं, कुछ वर्षों में ही इंसानों ने संधि तोड़ कर जलमार्ग का उपयोग व्यापार के लिए शुरू किया और मार्ग में आ रहे सीमा का भी ख्याल नहीं रखा। इंसान समय के साथ जलीय जीवों की हत्या भी करने लगें।
रानी जलपरी समझ चुकी थी कि इंसानों को समझाने मात्र से काम नहीं चलेगा, वरन उन्हें उनकी गलतियों का एहसास कराना होगा। रानी जलपरी ने योजना बनाई और अपने साथ चार और जलपरियों को लेकर जलमहल से निकल पड़ी।
रात के समय जब यात्रियों को ले जा रहे जहाज पर जलपरियों को नजर पड़ी वो जोर जोर से गाने लगीं "आओ प्रियतम मिलो मुझसे मैं करती तेरा इंतज़ार।"
ये सुन कोई यात्री भी खुद के काबू में नहीं रह पाया। कुछ गाने की दिशा जानने को आतुर हुए तो कुछ जहाँ थे वहीं बेसुध पड़े रहे।
जैसे जैसे गाने की आवाज़ गूंजी लोग पानी में छलांग लगाने लगे। और जैसे ही वो छलाँग लगाते जलीय जीवों का आहार बनते। पूरे नाव में एक व्यक्ति को छोड़कर कोई नहीं बचा था। वह बहरा था। व्यक्ति आश्चर्य में था कि अन्य लोगों को क्या हुआ?? तभी उसे जहाज के चक्कर लगाती जलपरियाँ दिख गईं। वो जान चुका था कि और लोगों के साथ क्या हुआ होगा।
सुबह जब सुरक्षा दल के लोग जहाज़ में गए तो देखा कि वहां एक बेसुध पड़ा व्यक्ति ही था। इंसानों ने अब समझ लिया था कि अपनी सीमा में ही रहना सही रहेगा। फिर कभी इंसानों ने जलसीमा का उल्लंघन नहीं किया।
