जल्दबाजी से देर भली

जल्दबाजी से देर भली

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साप्ताहिक हाट से सप्ताह भर की सब्जियां व कुछ जरूरी सामान थैले में बांध, सावित्री ने छोटे बेटे को गोदी में और बड़े की उंगली पकड़ बस्ती की ओर तेजी से कदम बढ़ाने शुरू किए लेकिन ज्यादा सामान व बच्चों के कारण चाह कर भी वह तेजी से नहीं चल पा रही थी।

एक तो रास्ता सुनसान ऊपर से रेलवे फाटक। उसने मन में ठान लिया था कि कुछ भी हो अंधेरा होने से पहले घर पहुंचना ही है इसलिए बच्चों को घसीटते हुए वह तेज चल रही थी।

"अम्मा थोड़ी धीरे चल ना गिर जाऊंगा मैं।"

" तेरे चक्कर में रही तो यही अंधेरा हो जाएगा।" सावित्री गुस्से से बोली। लेकिन उसकी सारी तेजी धरी रह गई। फाटक पर पहुंची तो वह बंद मिला। दोनों ही तरफ अनेक वाहन और लोग खड़े थे।

कुछ लोग बंद फाटक के नीचे से निकल रेलवे लाइन पार कर रहे थे। सावित्री ने भी चौकस आंखों व कानों से दोनों ओर देखा और रेल की आवाज सुनने की कोशिश की।उसे दूर-दूर तक ना तो रेल दिखाई दी और ना ही उसकी आवाज सुनाई दी। उसे तसल्ली हो गई कि अभी रेल दूर है। उसने बेटे का हाथ कस के पकड़ा और फाटक के नीचे से निकलने लगी। यह देख कुछ लोगों ने उसे टोकते हुए कहा

"इतनी जल्दी भी क्या है ! देख नहीं रही रेल आने वाली है ! " "बहन जी अपनी जान भी खतरे में डाल रही हो और बच्चों की भी 2 मिनट ठहर जाओ।"

उनकी बातों को अनसुना कर सावित्री बंद फाटक के नीचे से निकल रेल की पटरियों पर पहुंच गई। पर यह क्या उसका सारा अंदाजा फेल हो गया। दोनों तरफ से ही तेजी से रेल उसे अपनी ओर बढ़ती दिखाई दी। वह उन दोनों रेलों के बीच की पटरी पर ही थी। लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। सावित्री का हलक ही सूख गया। वे वहां से हटना चाहती थी लेकिन डर के मारे उसके पैर वहीं जम गए । उसे मौत तेजी से अपनी ओर बढ़ती दिख रही थी । डर के मारे उसने आंखें बंद कर ली। लोगों के भी यह दृश्य देख रोंगटे खड़े हो गए। दोनों रेल पल भर में वहां से गुजर गई। रेल के जाने के बाद लोगों ने सावित्री को वही खड़े पाया तो सब यह चमत्कार देख अचंभित रह गए। सावित्री को तो खुद अपने जीवित होने पर विश्वास नहीं हो रहा था। बच्चे रो रहे थे और वह पागलों की तरह उन्हें सीने से चिपकाए अब भी वही खड़ी थी।

कुछ लोगों ने उसे ले जाकर एक और बिठाया । उसके चेहरे पर दहशत के हाव भाव आ जा रहे थे। उसने अपने दोनों बच्चों को छाती से लगा लिया। उसकी आंखों से निरंतर आंसू गिर रहे थे । आज उसकी जल्दबाजी की वजह से एक भयानक हादसा होते-होते टल गया। उसने मन ही मन भगवान को शुक्रिया कहा और आगे से एक बात गांठ बांध घर की ओर कदम बढ़ाया कि ऐसी जल्दबाजी से देर भली।


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