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Krishan Lata Yadav

Drama

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Krishan Lata Yadav

Drama

जिंदगी जिंदाबाद

जिंदगी जिंदाबाद

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भवन की दूसरी मंजिल पर आयोजित एक शोकसभा से लौटते समय, सीढ़ियाँ फलांगते हुए, सुनंदा का संतुलन इस क़द्र बिगड़ा कि वह लुढ़कती चली गई।

स्थिति की विकटता को देखते हुए प्रत्यक्षदर्शियों ने अपने कलेजे थाम लिए। उनके दिलों में धुकधुकी, जुबां पर मौन और मनों में सलामती की दुआएँ थीं। सुनंदा फर्श छू चुकी तो तुरन्त उठ खड़ी हुई। उपस्थित जन के हाव-भाव देखकर उसने विश्वास दिलाया, ʻचिंता न करें, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।ʼ

एक ने कहा, ʻआपका यूँ गिरकर संभल जाना देखा तो ऐसा लगा जैसे किन्हीं अदृश्य हाथों ने फूल की मानिन्द आपको उठा लिया हो।ʼ

किसी ने कहा, ʻहो न हो, किसी बलधारी देवी-देवता की पक्की भक्त हैं आप।ʼ तीसरी टिप्पणी थी, ʻकिसी तीर्थ पर किए गए दान-पुण्य का प्रताप है यह।ʼ

सुनंदा मुस्कराई। उस मुस्कराहट का राज जानने के लिए सबको उत्सुक देखकर वह बोली, ʻअपनी शादी से पहले मैं भतीजियों की पढ़ाई में मददगार रही। शादी के बाद ननदों की शादियाँ निपटाई। फिर अपनी बेटियों के लालन-पालन में व्यस्त रही। सत्ताईस साल कन्या स्कूलों में सेवा की और आजकल नन्ही पोतियों को संभाल रही हूँ। यह सब करते-कराते जिंदगी की शाम हो गई लेकिन चाह कर भी न कहीं तीर्थ-भ्रमण हो पाया न पूजा-पाठ का सलीका ही आया।ʼ

एक साथ कई स्वर सुनाई दिए, ʻजिंदगी।ʼ


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