लघुकथा की चार पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। दैनिक ट्रिब्यून में 100 से अधिक पुस्तकों की समीक्षाएँ प्रकाशित। लघुकथा मंच, गुरुग्राम की संरक्षक।
दान-महिमा का ऐसा बखान किया गया दान-महिमा का ऐसा बखान किया गया
न पूजा-पाठ का सलीका ही आया।ʼ एक साथ कई स्वर सुनाई दिए, ʻजिंदगी।ʼ न पूजा-पाठ का सलीका ही आया।ʼ एक साथ कई स्वर सुनाई दिए, ʻजिंदगी।ʼ
करके फिर-फिर कहती रहो यह बात, जब तक यह मेरी आत्मा का। करके फिर-फिर कहती रहो यह बात, जब तक यह मेरी आत्मा का।
मम्मा, मैंने सुना है कि आपने मुझे अपने दूध का कतरा तक नहीं पिलाया।’ मम्मा, मैंने सुना है कि आपने मुझे अपने दूध का कतरा तक नहीं पिलाया।’
पूछने पर एक कर्मचारी ने बताया, ‘पकौड़े-सी नाक, बिल्ली-सी आँखें, हाथी के-से कान और ऊँट के पूछने पर एक कर्मचारी ने बताया, ‘पकौड़े-सी नाक, बिल्ली-सी आँखें, हाथी के-से कान और...
कविता सोच रही थी, ‘वाह ! रत्ना के बहाने दो अन्य की पहचान।’ कविता सोच रही थी, ‘वाह ! रत्ना के बहाने दो अन्य की पहचान।’