Meenakshi Kilawat

Drama

5.0  

Meenakshi Kilawat

Drama

जिंदा इंसान कैसे भूत बना

जिंदा इंसान कैसे भूत बना

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एक-एक दिन की बात है दो दोस्त रात में पार्टी करके अपने घर लौट रहे थे आते वक्त नशे में होनेकी वजह से लड़खड़ा रहे थे वह एक दूसरे से बातें करते घर का रास्ता तय कर रहे थे।

दोनों दोस्त की बातें कुछ अजीब सी थी एक का नाम धनराज और दूसरे का नाम वनराज था । धनराज अपने मित्र से कहता है ! हमें अगर रास्ते में कुछ खजाना या अलादीन का चिराग मिल जाता है तो कितना अच्छा होता लेकिन मेरी तो किस्मत ही खराब है। हमको कभी कुछ मिलता ही नहीं है, वनराजने कहा हर वक्त तुम्हारी नजर मोफत मैं मिलने वाली चीजों परही रहती है। तुम कुछ करते नहीं हो और किस्मत पर दोष मढते रहते हो।

धनराज ने कहता है, एक बार एक बार मुझे अलादीन का चिराग मिल जाए फिर मैं आराम से जिंदगी गुजार दूंगा कभी भी हमें किसी चीज की कमी नहीं होगी चलते चलते मित्र के पीछे जाने लगा तब बनराजने कहा !तुम्हारा घर उस तरफ है तब धनराज ने कहा क्या फर्क पड़ता है दोस्त मेरी किस्मत ही मुझे इधर-उधर घुमा रही है तो इसमें मेरी क्या गलती है।

किसी तरह धनराज अपने घर पहुंच गया आतेही बेड पर तुरंत ही फैल कर गहरी नींद में सो गया कुछ ही देर में खर्राटे गूंजने लगे और कुछ देर बाद धनराज को कोई परछाई दिखाई दि और कानों में आवाज आई मैं भूत बोल रहा हूं लेकिन धनराज ने आंखें नहीं खोली वह डर के मारे भूत भूत चिल्लाने लगा भीतर से थरथर कांपने लगा उसने भूतों के बारे में सुना पढ़ा था लेकिन असल में उसे अभी तक भूतों से सामना नहीं हुआ था कथामें, किताबों में उसने भूतों के बारे में अलग-अलग तरह की बातें सुनी और पढ़ी थी।

भूतों को पांव नहीं होते वह जमीन पर पावरखकर नही चलते बीच अधरमे चलता है, वह हवा में उड़ता है आगे की ओर चलना छोड़ पीछे की ओर चलता है ऐसी अनेक भ्रामक बातें सुनी थी । मगर आज धनराज के सामने भूत खड़ा था और भूत कहकर अपना परिचय करवा रहा था।  

धनराज थर थर कांप रहा था मुंह से आवाज नहीं निकल रही और बोलती बंद हो चुकी थी। बाहर तेज हवा और बारिश हो रही थी साईं सांय सांयकी आवाजे और मौसम कुछ ज्यादाही डरावना हो रहा था। धनराजके डर के मारे होश डूबते जा रहे थे।

तभी फिर से आवाज आई भूत कहने लगा ! सुनो धनराज मुझसे मत घबराना मैं बुरा भूत नहीं हूं, मैं तुम्हारे भलाई की दो बातें बताने आया हूं। तब धनराज की धड़कने लौट आई हिम्मत करकर उसने अपनी आंखें खोली एक मानवाकृति देख हक्का बक्का रह गया मन ही मन धनराज ने कहा यह तो मेरे जैसा ही इंसान है। तभी भूत की आवाज गूंजी मै एक अच्छा भूत तेरे पास तुझे कुछ समझाने आया हुं ।

भूत भविष्यकी बातें करने आया हूं तुम अगर शांत हो गए हो तो मैं कुछ बातें तुमसे कहना चाहूंगा, भूतकालको भूलकर वर्तमान कालमे इंसान को कैसा जीना चाहिए यह बात तूम समझलो, इस काल में हम अच्छे कर्म करे तो अच्छा इंसान कहलाये जाओगे आगेकी पीढ़िया तुम्हारा नाम लेंगी और अगर तूम बुरे कर्म करोगे तो तुम्हे मेरे जैसा भूत ही बनना पडेगा.

अच्छे मार्ग पर चलने वालों की गति अच्छी होती है यह एक बार मन में ठान लो, जीवन जीना है तो वर्तमान कालमें कुछ अच्छे कर्म करना पड़ता है यह अच्छाई की पूंजीही तुम्हारी सच्ची कमाई है। वरना मेरे जैसा भूत बनकर लोगों को रात बेरात सताता रहेगा और किस्मत कह करके आजीवन भटकता रहेगा।

भूत कहने लगा ! मैं भी तुम्हारे जैसा एक इंसान ही था मेरे जीवन काल में मैंने पाप किए थे इसीलिए मुझे भूत की उपाधि मिली है मुझे अनेक व्यसन थे मैंने अनेक जाने ली थी मेरी नजर स्त्रियों के लिए सन्मानजनक नहीं थी उन्हें वासनाभरी नजरेसे देखता था, कितनेही बुरे काम करके धन कमाया था फिर भी मेरे परिवारमें मुझे कोई सन्मान नही था क्योंकि मैंने बहुतही गलत काम किए थे।  परिवार और रिश्तेदार मुझसे नफरत करते थे, आज मैं भटक रहा हूं यह मेरे पापों की ही सजा मुझे मिली है, जिधर जाता हूं उधर मुझे लोगबाग भूत कहकर चिढाते और दूर भागते हैं।

मेरे दुष्कृत्य ऐसे है कि मैं किसी के सामने नहीं जा सकता मुझे लोग अनेको प्रकार के नाम देते हैं मुझे देख कर कोई भी मुझे सहारा नहीं देता कोई मेरे पास नहीं आता कोई मुझे प्रेम नहीं करता और सब कहते हैं "जैसा करेगा वैसा भरेगा "यह मेरे जिंदगी का सच मैं तुम्हें इसीलिए बता रहा हूं की तुम भी एक व्यसनी, नशेडी, आलसी, क्रूर इंसान हो इन सब बातों ने तुम्हे कमजोर बना दिया है इसीलिए हर वक्त तुम्हें भूत ही भूत दिखाई देते हैं । आगे जब तुम नशे में डूबकर तबाह हो जाओगे तब तुम जालिम, शक्की, कामचोर होजाओगे तब न जाने कितने ही भूत प्रेत आसपास मंडराते हुए दिखाई देने लगेंगे ।

यह सब भूतों से दूर रहना हो तो अपनी दिनचर्या बदलनी होगी अपना आहार विहार आचरण सुधारना होगा अपने स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाना होगा अपने पारिवारिक जिम्मेदारीयोको कर्तव्य समझा कर निभाना होगा कीसिभी परिस्थितिमें हिम्मत रखनी होगी, समाज में रहकर समाज की सेवा धर्म समझते हुए करनी होगी, यह सब बातें तभी हो सकती है जब तुम अच्छे कामोंमें मनसे से जुडोगे।

मैं तुम्हारा ह्रदय परिवर्तन करने खातिर आया हूं क्योंकि मैं भूत बनने के बाद पश्चाताप कर रहा हूं। ज्यादा कुछ तो नहीं कर सकता लेकिन सही राह दिखाकर किसी को

एक अच्छा इंसान बनने में मदत कर सकता हूं तुम्हें सुनना है तो सुनो अन्यथा छोड़ दो यह कह कर नजाने भूत किधर चला गया था।

 धनराज ने इधर उधर देखा भूत गायब हो उसके जान में जान आई तबसे धनराज ने अपनी सभी गलत काम करना छोड़ दिया था वह बदल गया था सभी मित्र परिवार आश्चर्यचकित होकर इस सुधारका कारन पुछने लगे लेकिन धनराज ने किसी को कुछ भी नहीं बताया उस भूत ने उसकी पूरी तरह आंखें खोल दी थी वहां मन ही मनमें उसने भूत से वादा किया और अच्छा इंसान होने की कसम खाई और उसने व्यसनोको छोड़ दिया, झूठ बोलना निंदा करना यह सब बुरी बातोंसें दूर रहने लगा

रोज सुबह जल्दी उठकर योगा व्यायाम करकर खुद को सुदृढ़ बनाया और समाज में मान सन्मान प्राप्त किया और भविष्य के लिए खूब अच्छे कार्यों से अच्छाई या बटोरी उस भूत का मनसे स्मरण करके आभार मानता रहा तब से भूत कभी भी उसके करीब नहीं आया ना कभी दिखाई दिया।

दोस्तों आज हम इस कहानी से कुछ सबक ले सकते हैं। हालांकि वह भूत नहीं इंसान ही था । जिंदगी में उसकी पापोंकी वजह से वहां जिंदा इंसान भूत बनकर किसी तरह जीवन बिता रहा था। यह भूत बाहर ना होकर मनके भीतर पनपते है, वह कमजोर इंसान को ही परेशान करते है और दिखाई देते हैं यह भूत इंसानो ने ही खड़ा किया है। भूत का कभी कहीं भी अस्तित्व नहीं होता। भूत का अस्तित्व निराधार बेमतलब का होता है।


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