जीवनसंगिनी

जीवनसंगिनी

2 mins
458


कॉफी, किताब से नहीं.. तुम्हारे प्रेम से महकता है मेरा जीवन

संडे का दिन, दिसंबर की सुहावनी सुबह, बालकनी में खिले गेंदों की फूलों की खुशबू, मेरी मनपसंद किताब और हाथ में एक कॉफी का प्याला तो क्या बात!

मैं किताब के किरदारों में ऐसा उलझा कि पता ही ना चला कब मैं पत्नी द्वारा दी, दो कप कॉफी पी चुका था। लेकिन गुनगुनी धूप में किताब के साथ जब तक हाथ में कॉफी का प्याला ना हो , तब तक मजा ही नहीं आता।

मैंने श्रीमती जी को आवाज लगाई " सुनती हो! एक कप कॉफी और मिलेगी क्या!" " इतना सुनते ही श्रीमती गुस्से से भरी बाहर निकली और बोली "एक बात बताइए! आपके जीवन में कॉफी और किताबों के अलावा मेरा भी कोई स्थान है। पूरा सप्ताह इंतजार करती हूं कि संडे आए और आपके साथ मन की बात कर सकूं। लेकिन संडे तो आता है पर मेरे लिए नहीं आपकी किताबों व कॉफी के लिए। सच कई बार लगता है इस घर में और आपके जीवन में मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं।" कह आंसू भरी नजरों से मेरी ओर देखती हुई अंदर चली गई।

थोड़ी ही देर में श्रीमती जी कॉफी का प्याला ले बाहर आई। मुझे वहां ना देखकर, उसकी नजर मुझे ढूंढने लगी। तभी कॉफी के कप के ् नीचे रखे फड़फड़ा रहे कागज पर उसकी नजर पड़ी और उसे उठाकर पढने लगी।

जीवन में आई हो जब से तुम

गेंदे के फूलों की तरह

महक गया है मेरा घर आंगन।

कॉफी के हर एक घूंट में

महसूस करता हूं तुम्हारा

मेरे लिए फिक्र का वो एहसास।

किताब के किरदारों से नहीं

तुमसे ही करता हूं

मेरी जीवनसंगिनी मैं सच्चा प्यार।

पढ़कर श्रीमती जी का चेहरा नई दुल्हन की तरह शर्म से लजा रहा गया और होठों पर प्यार भरी मुस्कान तैर रही गई। ठंडी हो चुकी कॉफी को प्यार से देखती हुई उसे गर्म करने के लिए वह अंदर चल दी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama