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dipti dave

Inspirational

4.2  

dipti dave

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जीवन की सार्थकता

जीवन की सार्थकता

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सुलोचना ने जल्दी जल्दी पर्स लिया। अभी घर से निकली ही थी कि उसकी चप्पल टूट गयी। पहले से ही देर हो चुकी थी, उस पर यह चप्पल। आज यह महीने का तीसरा दिन था जब वो आफिस पोहचने में लेट हो गयी थी, मैनेजर गुस्सा भी करेगा और आधे दिन की तनख्वा काटेगा सो अलग। अपनी टूटी चप्पल पे उसे गुस्सा आ रहा था। तीन बार तो उसे पहले ही ठीक करवा चुकी थी। पिछली बार तो मोची ने भी कहा था कि ,"यह चप्पल अब फेंक दो, पूरी तरह घिस चुकी है ठीक कर भी दू तो ज़्यादा नही टिकेगी।" असली गुस्सा तो उसे अपनी किस्मत पर आ रहा था।

।23 साल की उम्र में सुरेश से उसकी शादी हुई थी। सुरेश एक फौजी था। पिता को बड़ा गर्व था की बेटी के लिए फौजी ढूंढा है, देश की रक्षा करता है, कितने सम्मान की बात है। क्या काम का ऐसा पति जो देश की रक्षा करता रहा और अपने परिवार को राम भरोसे छोड़ दिया। आज अगर सुरेश होता तो ऐसे चप्पल न घिसने पड़ते। 

।दिनभर की थकान के बाद जब घर पहुँची तो देखा बीमार सास की तबीयत और खराब हो चुकी थी उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना था, आफिस से लौट कर सुस्ताने का मौका भी नही मिला। सुलोचना, घर, आफिस, सास , बच्चे और आर्थिक ज़िम्मेदारीया संभालते संभालते थक चुकी थी। 

 सास को हॉस्पिटल में भर्ती किया उसी वक़्त बाजू वाले बेड के जवान मरीज़ की मौत हुई, उसकी जवान बीवी को रोते देख, सुलोचना के सामने सुरेश की मौत का दृश्य आ गया।

।सुलोचना की शादी को 3 साल हुए थे।सुरेश की पोस्टिंग अलग अलग जगह रहती, सुलोचना सास के साथ रहती,छुट्टी मिलने पर सुरेश घर आता, उस बार उसे घर आये एक हफ्ता ही हुआ था। मिंटू दो साल का था लेकिन अपने पापा को ठीक से पहचानता नही था, उसके पास जाता नही था। अभी थोड़ा थोड़ा ही सुरेश से घुलने मिलने लगा था कि सुरेश की छुट्टियां कैंसल हो ने का ऑर्डर आया। कारगिल में युद्ध छिड गया था और फौजियों को छुट्टी पर से वापस बुलाया जा रहा था। सुरेश के जाने के 15 दिन बाद सुरेश के मौत की खबर आई। वह बहादूरी से लड़ते लड़ते शहीद हो गया था। उसके कारगिल जाने के बाद सुलोचना की उसे बात ही नही हो पाई थी, वह उसे बता भी नही सकी के वह फिर से बाप बन ने वाला था। चिंटू सुरेश के प्यार से वंचित रहा, देखा जाए तो मिंटू को भी कहा बाप का लाड़ प्यार मिला, बेचारा, पिता से पहचान हुई थी कि सुरेश को जाना पड़ा।

 सुरेश बहुत बहादूरी से लड़ा था। हर जगह उसकी बहादुरी के किस्से सुनाई देते थे। वर्तमान पत्र, TV, रेडियो हर जगह सुरेश की चर्चा थी। सुरेश की माँ और सुलोचना को भी बहुत आदर मिलता, सुरेश को मरणोपरांत सम्मानित भी किया गया। 

।माँ ने आवाज़ दी और सुलोचना वर्तमान में लौट आयी। ,"क्या फायदा ऐसे मान सम्मान का, भारत माँ की रक्षा करने चले गए और अपनी माँ को बेसहारा छोड़ गए, कितनी दिवाली माँ ने रो के काटी है, कितने करवा चौथ पर मेरा मन रोया है। देश के बच्चों का सुरक्षित भविष्य देने के लिए कुर्बान हो गए और खुद के बच्चे बाप की सूरत भी ना देख पाए, उनके भविष्य का कोई विचार नही किया। लाखों, माँ, लाखो पत्नी, सैकड़ो बच्चें, सब के बारे में सोचा, खुद की माँ ,पत्नी और बच्चों का क्या होगा यह कभी नही सोचा। आदमी का सबसे पहला फ़र्ज़ उसके खुद के परिवार के प्रति होता है, जानवर भी अपने परिवार को पालता है। अपने परिवार के प्रति एक भी फ़र्ज़ निभाये बगैर बस देश के लाखों परिवार को सुरक्षित करने निकल पड़े ।" सुकोचना सोचती रही

।सरकार से जो आर्थिक मदद मिल रही थीं वह घर का खर्च, माँ जी की दवाई, दोनो बच्चों की पढ़ाई सब के लिए काफी नही थी। सुलोचना अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे कर अच्छी नौकरी करवाना चाहती थी ताकि जब वह बूढ़ी हो तो उसका बेटा उसका सहारा बने, उसकी बहु अपने पति के साथ सारे त्योहार मानये, उसके पोते अपने पिता के साथ खेले, उनसे जीवन का मार्गदर्शन पाए।

।जीवन की ज़िम्मेदारियों को अकेले ढोते ढोते जब सुलोचना थक जाती तो अपने पिता से शिकायत करती," क्यो करवाई मेरी शादी, फौजी से? कहीं औऱ होती तो खुश होती।" "अरे तेरा पति देश के लिए कुर्बान हुआ, तुजे उस पर गर्व होना चाहिए, उसने अपने जीवन को सार्थक कर दिया" उसके पिता उसे समजाते।

 सोहन, रात को हॉस्पिटल आया अपनी दादी के पास रुकने ताकि उसकी माँ घर जा कर रात को अच्छी नींद ले ले तो सुबह ऑफिस समय से पहुँच सके। सुलोचना को हॉस्पिटल से निकलते निकलते ९.३० बज गए हॉस्पिटल शहर से थोड़ी दूरि पर थी, घर जाने वाली सड़क सुमसँ थी। सुलोचना ने देखा एक १७, १८ लड़की भी राह पर चल रही थी,सुलोचना तेज़ी से चली और उसके साथ हो गई, और बोली"ऐ लड़की ऐसी सड़क पे इस समय घर से बाहर क्यों निकली? कुछ उच्च निच्च हो जाएगा तो सरकार को दोष दोगी, कानून व्यस्था पर उँगली उठाओगी पर अपनी सुरक्षा खुद करने की नही सोचोगी"। " मेरे पिताजी की तबियत अचानक खराब हो गई उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराने ले आयी थी, मेरे घर मे मैं और मेरे पापा ही है। इस शहर में किसी को जानते नही है क्योंकि यहाँ थोड़े दिनों पहले रहने आये है, पापा को भर्ती किया फिर घर जाकर उनके लिए खाना बनाकर ले आयी, अब उन्हें खिला कर वापस घर लौट रही हूं।"

।अचानक सामने से मोटरसाइकिल की तेज रोशनी दोनो की आँखों पर पड़ी, तेज़ी से मोटरसाइकिल उनके पास आकर खड़ी रही और बाइक सवार, लड़की को छेड़ ने लगे, सुलोचना उन्हें रोकने के लिए आगे बढी, उसमें से एक ने सुलोचना को ज़ोर से धक्का दिया और ज़मीन पर गिर दिया, दूसरे ने लड़की का हाथ पकड़ा और उसे खीचने लगा, सुलोचना ने एक पत्थर उठा कर एक के सिर पर ज़ोर से दे मारा,वह लहू लुहान हो कर गिर पड़ा, दूसरे आदमी ने एक छुरी निकाली और और सुलोचना के पेट मे घुसा दी, इतने में लड़की ने अपना हाथ छुड़ा लिया, अपना फोन निकालाऔर पुलिस को फ़ोन किया, यह देख कर दोनो भाग निकले

।सुलोचना का खून तेज़ी से बह रहा तब,आंखों के आगे अंधेरा छा ने लगा था, दर्द से कराह रही थी, उसके बाद क्या हुआ उसे कुछ ख़बर नही थी। आंखे खुली तो खुद को हॉस्पिटल में पाया। अपने आप को ज़िन्दा देख कर ताजुब हुआ। डॉक्टर ने बताया की उसके नसीब अच्छे थे कि हॉस्पिटल पास हि था ता तो उसे तुरंत मेडिकल ऐड मिल गयी नही तो उस के बच ने की उम्मीद बहूत कम थी। 

।थोड़ी देर बाद वह लड़की जिसको सुलोचना ने बचाया था, उसे मिलने आयी। उसको धन्यवाद कहने लगी, सुलोचना को अपने पिता के शब्द याद आगए," सुरेश ने अपना जीवन सार्थक किया है" उस लड़की को एक खरोच भी नही आई थी, उसे देख सुलोचना को भी लगा कि उसने भी अपना जीवन सार्थक कर दिया है। बहुत ही अदभूत एहसास था, उस एहसास को शब्द देना मुश्किल था दिल मे सुकून और मन मे तृप्ति थी, सुरेश से अब कोई शिक़वे नहीं रहे। जब वह लड़ रही थीं तब उसने नही सोचा कि उसकी बूढ़ी बीमार सास उसके सहारे है, उसने नही सोचा कि उसके बिन बाप के बच्चे माँ को भी खो देंगे। उसे अब महसूस हुआ कि एक लड़की को अगर बचा के उसे इतना सुकून मिल रहा है तो सुरेश ने तो सैंकडो लोगों केलिए जान बिछा दी थी, पापा सहीं कहते थे, सुरेश ने अपना जीवन सार्थक कर दिया। अपने परिवार के बारे में तो हर कोई सोचते है लेकिन उस से ऊपर उठ कर आप किसी के बारे मे सोचो तो वह इंसानियत है वरना अपने परिवार का खयाल तो जानवर भी रखता हैं। श्रेष्ठ मानवता उसे कहते है जब आप किसी ऐसी व्यक्ति के लिए कुछ करते हो जिसे आप पहचानते भी नही, कभी देखा भी नही। एक फौजी श्रेष्ठ मानवता का उत्तम उदहारण है। सुलोचना को आज अपने पति पर दिल से गर्व हुआ, उसने तय कर लिया कि उस के दोनो संतान भी फौज में जाएगी।


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