dipti dave

Drama

4.2  

dipti dave

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ऋण

ऋण

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प्रशांत ऑफिस से थक कर घर आया, सोफे पर बैठा, अंदर से नन्ही मुस्कान दौड़ी दौड़ी आयी उसके लिए पानी लेकर और उसकी गोद में बैठ गई। उसकी तोतली भाषा में उस से बातें करने लगी। उसे देख कर उसकी सारी थकान उतर गई। मुस्कान ही तो उसके जीवन में मुस्कान लाई थी इसलिए तो बड़े प्यार से उसका नाम मुस्कान रखा था। मुस्कान के साथ थोड़ा खेल कर वह अंदर के कमरे में गया। छ: महीने के ईशान को अपनी गोद में लिया, उसको खेलते देख प्रशांत की जान में जान आई। पिछले एक हफ्ते से वह बीमार था, प्रशांत एक हफ्ते से रोज़ रात को देर तक रोते ईशान को गोद में लेकर इधर से उधर करता रहा। एक रात बहुत ज्यादा तबीयत खराब हुईं तो आधी रात को हॉस्पिटल ले जाना पड़ा। आज उसे ठीक देख कर बहुत राहत हुई।


प्रशांत की ज़िन्दगी बहुत अच्छी कट रही थी। प्यार करने वाली पत्नी और अपनी किलकारियों से घर गुंजाने वाले दो बच्चे। कुछ सालों पहले उसने बड़ी तकलीफ़ देखी। प्रशांत पढ़ाई में कमजोर था इसलिए बारहवीं से आगे पढ़ाई नहीं कर पाया। छोटी मोटी नौकरी में उसका जी नहीं लगता था। कभी नौकरी होती, कभी नहीं होती। अनीता से शादी करना चाहता था पर कोई ढंग की नौकरी नहीं थी तो अनीता के पिताजी ने शादी के लिए मना कर दिया। तब प्रशांत ने अपना कारोबार शुरू करने का सोचा। कारोबार के लिए पिताजी से पैसे माँगे, उसके पिताजी सरकारी दफ्तर में ऊचे ओहदे पर थे। उन्हों ने अपनी जमा पूंजी से कुछ पैसे प्रशांत को अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए दिए। वह बिज़नेस चला नहीं और सारे पैसे डूब गए।


प्रशांत निराश हो गया। अब उससे गैरों की चाकरी नहीं हो रही थी और खुद का बिज़नेस ठप हो गया था। हताश और निराश प्रशांत को उसके पिताजी ने फिर से हौसला दिया, फिर से हिम्मत बंधाई और फिर से आर्थिक सहायता की। फिर एक बार प्रशांत ने नई शुरुआत की, फिर एक बार वह नाकामयाब रहा। अब अनीता की शादी के लिए भी लड़के देखने शुरू हो गए थे। प्रशांत सब कुछ हार चुका था, लाखो रुपए बर्बाद कर चूका था। ना ही व्यावसायिक जीवन में, ना ही निजी ज़िन्दगी में स्थायी हुआ था। अनीता को खोने का डर उसे अंदर से खाए जा रहा था। कई दिनों तक हताशा में घिरा रहा, उस के पिताजी उसे मनोचिकित्सक के पास ले गए। उनके साथ के कई सेशंस के बाद प्रशांत को फिर जीने का जोश आया। उसने एक बार फिर पिताजी से मदद माँगी, अब पिताजी के पास देने को कुछ नहीं था। वह अपना पेंशन, जमा पूंजी सब कुछ प्रशांत पर खर्च कर चुके थे। तब प्रशांत ने उनसे अपने गाँव वाली ज़मीन बेचने को कहा। प्रशांत का बड़ा भाई, आकाश अब तक आपने छोटे भाई के हर दुख में उसके साथ खड़ा रहा था। जब उनके पिताजी सारा पैसा अपने छोटे बेटे पर लुटा रहे थे, तब भी वह चुप रहा। पर अब जब ज़मीन का सारा पैसा वह प्रशांत को देना चाह रहे थे, तब उसने आपत्ति जताई।


"ज़मीन पर जो खेती हो रही हैं, उससे हमें काफ़ी पैसा मिल रहा है और हमारा काफ़ी राशन भी उसी ज़मीन में से आ रहा है। यह तो सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को काटने वाली बात है"


तब भी जब पिताजी नहीं माने तो उसने कहा, "सब कुछ प्रशांत को ही दे दोगे, मेंरे लिए कुछ नहीं रखोगे?"


“बेटे तुम पढ़े लिखे हो, इतनी अच्छी नौकरी है, अच्छी मोटी तनख्वाह है, साल दर साल तरक्की करते हो। तुम्हें बाप की कमाई की कोई ज़रूरत नहीं। तुम अपने आप ही बहुत काबिल हो। अपने भाई को देखो, वह अब तक कहीं स्थाई नहीं हुआ। वह कमजोर है, उसे मेंरे सहारे की जरूरत है"


आकाश ने भी बड़ा दिल रखा। ज़मीन बिकी और प्रशांत को नए बिज़नेस के लिए पैसे मिले। ज़िन्दगी थोड़ी थोड़ी पटरी पर आ ही रही हैं की एक रोड दुर्घटना में आकाश की मौत हो गई। कुछ सालों बाद प्रशांत की माँ ने भी आंखे बंद कर ली। अब घर में प्रशांत और उसके पिताजी ही रह गए। कुछ सालों बाद प्रशांत का बिज़नेस बहुत अच्छा चलने लगा। एक दिन जब काम से लौटा तो देखा, अनीता के माता पिता आए थे। पिताजी ने उन्हें शादी की बात करने घर बुलाया था। बड़े गर्व से कहा “मेंरा बेटा अब आपकी बेटी के लायक हो गया है"


अनीता के पिताजी शादी के लिए राज़ी हो गए और फिर ज़िन्दगी में खुशियां ही खुशियां थी।


प्रशांत ने पुराना मकान जो कि पिताजी के नाम था वह बेच कर उस में थोड़ा और अपना पैसा डाल कर एक आलीशान घर बनाया। प्रशांत के पिताजी बेटे की तरक्की देख कर बड़े खुश होते, बस आकाश के ना होने के गम से उभर नहीं पाते। जब ईशान हुआ तो उन्हें लगा उनका आकाश वापस आ गया। यूँ तो पिताजी ने अपना सब कुछ प्रशांत को दे दिया था बस एक अलमारी के लॉकर को वह कभी छूने नहीं देते। प्रशांत को लगता था कि पिताजी के पास अभी कुछ ऐसा खज़ाना है जो वह उसे देना नहीं चाहते।


साल बीतते गए, पिताजी बूढ़े और कमजोर हो गए थे। प्रशांत का बिज़नेस बहुत अच्छा चल रहा था। उसका घर भौतिक सुविधाओं से सजा था। वह एक खुशहाल जिंदगी जी रहा था। एक दिन पिताजी को पैरालिसिस का अटैक आया।कई दिनों तक हॉस्पिटल में रहने के बाद घर ले आए पर अब वह पराधीन हो चुके थे। कुछ दिनों तक तो अनीता ने उनकी देख भाल की फिर एक दिन प्रशांत से कहा "सुनो, तुम्हारे पिताजी की देखभाल कर के मै थक जाती हूँ, सारा दिन घर का काम कर के मुझसे उनका काम नहीं होता। वैसे भी वह तुम्हारे पिताजी है तो ज़िमेंदारी भी तुम्हारी है, मेंरी नहीं”


प्रशांत ने उनके लिए एक नर्स रख दी। नर्स सुबह तो आती लेकिन रात में रुकती नहीं थी। रात भर पिताजी कभी ख़ासते रहते, कभी उन्हें बाथ रूम जाने में मदद लगती, कभी करवट बदलने के लिए मदद लगती,तो कभी उन्हें आधी रात में भूख लगती। इससे अनीता और प्रशांत की नींद में खलल होता। अनीता चिढती रहती, दोनों में बहस होती रहती। प्रशांत रात के लिए भी नर्स रखना चाहता था लेकिन अनीता इस के लिए सहमत नहीं थी।


"रात की नर्स कितना पैसा लेते हैं कुछ अंदाज़ा भी है? दवाई और सुबह की नर्स में हम काफ़ी पैसा खर्च कर रहे। सारा पैसा इन्हीं पर लुटा दोगे या अपना बच्चो के लिए भी कुछ रखोगे? वैसे भी सब कुछ लुटा भी दोगे तो भी यह ठीक होने वाले नहीं"


प्रशांत को अनीता की बात सही लगी। प्रशांत ने एक अखबार में वृद्धाश्रम का एक इश्तिहार देखा था। उसने पिताजी को वहाँ छोड़ आने का तय कर लिया। पिताजी को बहुत दुख हुआ। जिस बेटे के लिए उन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था, वह बेटा आज उसे यह दिन दिखा रहा था। लेकिन सब से बड़ा दुःख ईशान से दूर होने का था। लगा फिर एक बार कुदरत ने उनको आकाश से फिर दूर कर दिया।


पिताजी वृद्धाश्रम चले गए। अब अनीता और प्रशांत चैन की नींद सोते थे। प्रशांत ने पिताजी की अलमारी का वह लॉकर खोलने का सोचा "देखें तो सही कौन सी चीज़ है जिसे पिताजी कभी नहीं दिखाते थे"


लॉकर में कुछ कागजात थे, प्रशांत ने जब वह पढ़ा तो पैरो के नीचे से ज़मीन खिसक गई। वह एडॉप्शन पेपर थे, खोल कर देखा तो फूट फूट कर रोने लगा। वह पेपर लेकर पिताजी के पास गया। पिताजी ने उसे बताया कि आकाश उनका सगा बेटा था। एक बार जब वह सुबह की सैर के लिए निकले थे तब एक कचरे के डिब्बे में वह उन्हें रोता हुआ मिला था। वह उसे डॉक्टर के पास ले गये। उसका इलाज करवाया, उसे बहुत चोट आयी थी और भूखा भी था। उन्होंने उसे गोद लेने का निर्णय कर लिया, उनके इस निर्णय में उनकी पत्नी ने उनका पूरा साथ दिया। उन्होंने दोनों में से किसी भी बच्चो को यह हकीकत नहीं बताई थी।


प्रशांत यह सब सुनकर उनके क़दमों में गिर पड़ा। फूट फूट कर रोने लगा। अपने आप पर घिन आने लगी


"पिताजी आप सच में अपने घर में एक कूड़ा उठा लाए। आपने तो मुझे अपने घर का चिराग बनाना चाहा और मैंने आप का घर ही जला दिया। मैं कूड़ा ही रहा, इतने सालों में यह कूड़ा सड़ गया और अब बदबू फैला रहा है। मुझे माफ़ कर दीजिए और घर चलिए"


पिताजी ने उस के सर पर अपना हाथ रखा और कहा "मै शायद पिछले जन्म का तुम्हारा कर्जदार था। तूने तो मुझे पिछले जन्म के ऋण से मुक्त किया और मेंरे मोक्ष के द्वार खोल दिए। तेरा ऋण चुका दिया तो मै अब शायद जन्म मृत्यु के चक्कर से मुक्त हो जाऊंगा। मै यही ठीक हूँ, अपनी उम्र के लोगों के साथ, अपने जैसे पीड़ितों के साथ अच्छा लगता है। इन लोगों को तो उनके सगे बेटे ने निकाल दिया है। मैंने तो तुझे जन्म नहीं दिया, तू क्यों अपने आप को दोषी मान रहा है? जीवन के बचे कुचे साल मैं यही शांति से गुजारना चाहता हूँ”


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