Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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dipti dave

Others

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प्रयाश्चित

प्रयाश्चित

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सुबह से ही अविनाश व्याकुल था। कब से ईनटरनेट खोल के बैठा था, आज करण के एम बी ए का नतीजा लगनेवाला था। करण और करीना की पढ़ाइ का ध्यान अविनाश ने बचपन से ही रखा था। कितना भी थका हो या ऑफिस से देर से लौटा हो , ऑफिस का काम घर लाया हो लेकिन वो करण और करीना की पढ़ाई लेना, उनकी कॉपियां चेक करना कभी नही चूकता, अविनाश ने ही उनकी पढ़ाई में दिल्चस्पी बढाई थी, पढ़ाई के लिए रूची जगाई थी और इस लिए जब करण को B. E. मे प्रथम आने के लिए सम्मानित किया गया था तो उसने अपनी सफलता का सारा श्रेय अविनाश को दिया। लेकिन अविनाश हमेशा से ही मानता था के करण और करीना अपनी माँ की तरह बुद्धिमान और तेजस्वी है।

 अविनाश को पूरा यकीन था कि करण इस बार भी बेहतरीन नंबरो से पास होगा नौकरी के लिए भी उसका कैम्पस सिलेक्शन हो गया था। फिर भी मन व्याकुल, बेचैन और रिजल्ट जानने के लिए उतावला हो रहा था। करीना अच्छी नौकरी और अपने पति के साथ खुश थी। बस करण का रिजल्ट घोषित हो जाए तो.......इतने में वेबसाइट खुली, रिजल्ट लग चुका था, करण बहुत अच्छे नंबरों से पास हुआ था, करण कि सफलता की चमक अविनाश की आंखों मे दिख रही थी। अविनाश सोच रहा था की आज करण और करीना को देख कर उन्की माँ की आत्मा भी तृप्त होगी, खुश होगी, सुजाता की याद ने जैसे अविनाश की जीवन क़िताब पर जमी वक़्त की धूल को फूंक मार दी।

मन के यादों के जोंकें ने अविनाश के जीवन का सबसे खूबसूरत पन्ना खोल दिया था - अविनाश और सुजाता का सानिध्य काल, अविनाश जैसे वापस उस काल मे पहुँच गया था। अपने आप को कॉलेज की कैंटीन में बैठा पा रहा था, बस अभी 10 बजेंगे और हस्ती किलकिलाती सुजाता अपनी सखियों के साथ आयेगी। सुजाता बहुत कठिन परिस्थितियों मे जी रही थी, अनाथ थी, मामा मामी के साथ रहती थी, मामी उसे पढ़ाना नही चाहती थी पर मामा के फैसले के आगे उसकी एक न चली लेकिन सुजाता से काम करवा के उसे ताने मार के उसका जीना और पढाई दोनो मुश्किल कर दिया था ,लेकीन सुजाता जीवन से भरपूर थी।हस्ती, हँसाती और अपने हाजिर जवाबी से अपने आसपास का माहौल हमेशा ख़ुशनुमा कर देती, कठिन परिस्थितियों मे भी अच्छे नंबरो से पास होती, उसे देख कर कोई नही जान पाता कि वह किस परिस्थितियों में पढ़ रही थी।

 सुजाता की सादगी, हाजिरजवाबी और किलकिलाट अविनाश को बहुत भा गई, बड़ी हिम्मत से अविनाश ने एक दिन सुजाता से अपने प्यार का इज़हार कर दिया। सुजाता ने उसका स्वीकार किया और बस अविनाश के जीवन का सब से सुहाना समय शुरू हो गया। घूमते, फिरते, पढ़ते, मौज करते कॉलेज काल समाप्त हुआ। दोनों आगे पढ़ना चाहते थे लेकिन सुजाता को अब आगे पढ़ने की अनुमति न थी, वह अपने सपने अविनाश को पढ़ते देख पूरे करना चाहती थी।

 सुजाता के मामा ने उस के लिए वर खोजना शुरू कर दिया, वह चाहते थे कि सुजाता अच्छे लड़के से शादी कर के एक खुशहाल जिंदगी बिताए, सुजाता अपने मामा को अविनाश के बारे में कहना चाहती थी पर अविनाश चाहता था कि जब वह पढ़ाई पूरी कर अच्छी नौकरी में स्थिर हो जाए तब उनसे बात करे। अविनाश के इनतजार में सुजाता सारे अच्छे रिश्ते ठुकराती गई। आखिर वह दिन आ ही गया जब अविनाश की पढ़ाई पूरी हुई और उसकी नौकरी लग गयी, नौकरी में सेटल होते ही अविनाश ने अपनी माँ को सुजाता के बारे मे बताया, बस उसी दिन अविनाश का वो सुहाना समय समाप्त हो गया। उसकी माँ ने एक अनाथ लड़की से रिश्ता जोड़ ने से मना कर दिया। अविनाश अपनी माँ के विरुद्ध न जा सका और उसने सुजाता का साथ छोड़ दिया।

 सुजाता पहली बार जीवन से हारी, उसकी हँसी और खिलखिलाट कहीं गायब ही हो गए, इतने सालों का प्यार और इनतेज़ार का उसे यह सिला मिला था। अब उसके लिए अच्छे रिश्ते आने भी बंद हो गए थे, मामी के ताने सुनने की ताकत नही थी, मामा चाहते थे उसकी शादी कर के वह अपना फर्ज जल्द से जल्द निबटाले, और सुजाता की शादी अपने से उम्र में 8 साल बड़े और सामन्य सी नौकरी करने वाले सुभाष से हो गई ।उधर अविनाश न अपनी माँ को मना सका , न सुजाता को भूल कर किसी और से शादी कर ने को अपने मन को मना सका। 

 उदास और गमगीन सुजाता के लिए शादी बस मामा की आज्ञा का पालन था और शादी निभाना एक यांत्रिक क्रिया। पैसो की तंगी और उदासीनता में ज़िन्दगी बीत रही थी लेकिन जब सुजात करण और करीना की माँ बनी तो उसमें जीने की वजह जगी, बच्चों के जन्म से आर्थिक मुश्किल तो बढ़ गयी थी लेकिन जीवन जीने का उत्साह भी बढ़ गया था। लेकिन यह उत्साह और आनंद भी ज़्यादा न रहा। सुभाष की टी वी से मृत्यु हो गई। सुजाता के लिए अब मुश्किलें और बढ़ गई पति की बीमारी ने बहुत बड़ा आर्थिक झटका तो दिया ही साथ ही कमानेवाले एक मात्र सदस्य को भी खा गई। जब अविनाश को यह सब पता चला तो वह अपने आप को सुजाता की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार समज ने लगा।

समय बीतता चला गया। एक दिन एक खबर पढ़ कर अविनाश सुन्न सा रह गया- सुजाता एक दुर्घटना में मारी गई थी, सुजाता के 8 और 10 साल के बच्चे बिल्कुल अनाथ और एकले हो गए। अविनाश उन बच्चों को अपने साथ ले आया और तब से उनके लिए वह सब कुछ किया जो एक पिता करता है। अविनाश सोच रहा था कि आज करण का रिजल्ट घोषित होते ही वह सुजात के साथ किये अनन्य का प्रायस्चित पूरा होगा। तब दिल के एक कोने से आवाज़ आयी- प्रायस्चित? क्या इस से सुजाता अपना जीवन फिर से ठीक कर पायेगी? सुजाता के जीवन का पतन तो तुम ने कर ही दिया। प्रयाश्चित कर के तुम सिर्फ अपने मन का बोझ हल्का कर रहे हो, खुद को सुकून दे रहे हो। बेशक उसकी आयु तुम नही बढ़ा पाते पर इस छोटी सी ज़िन्दगी के कुछ साल तुम सवार जरूर सकते थे।

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