"झील में परछाईं किसकी"(भाग-2)
"झील में परछाईं किसकी"(भाग-2)
समर ने उस लड़की को खींच कर सामने किया। तो वह जोर जोर से रोने लगी। समर हैरान होकर उसे देखता है।फिर उससे पूछता है,"कौन हो तुम ?" और इतनी रात को यहां क्या कर रही हो ? वह लड़की अब भी रोये जा रही थी।समर उससे कहता है ,कि दे"खो यदि तुम मुझे बताओगी तो मैं शायद तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं।"
इतना सुन कर वह लड़की चुप हो गई।और आंसू पोंछते हुये बोली "मैं रुक्मिणी हूं। गांव के मुखिया की बेटी।आज से 3 वर्ष पहले उसे गांव के ही एक युवक गोविंद से प्रेम हुआ था। और दोनों ने विवाह करने का मन बना लिया था। परंतु गोविंद गरीब घर का लड़का था। इसलिए मेरे घरवालों ने शादी करने से इन्कार कर दिया।पर हम दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे।हमने गांव से भाग कर शादी करने का निर्णय लिया।गोविंद ने मुझे रात के ठीक 10 बजे झील के किनारे पहुंचने का बोला था।मैं ठीक 10 बजे यहां पहुंच गई थी।परंतु गोविंद नहीं पहुंचा।सारी रात वो इसी झील के किनारे उसका इंतजार करती रही पर गोविंद नहीं आया।सुबह होने से पहले निराश होकर वह घर लौट गई।
सुबह उसने गोविंद का पता करने की कोशिश की।तो पता चला।गोविंद कल शाम से ही गांव में नहीं है।कई दिन बीत गए।ना तो गोविंद आया ना उसकी कोई खबर।तब से मैं रोज रात को यहां आकर इंतजार करती हूं।शायद वो मुझे लेने आ जाये।"
इतना कह कर वह चुप हो गई।थोड़ी देर बाद उसने पूछा "तुम शहर से आये हो ?"
समर ने "हां" में सिर हिलाया।
"क्या तुम मुझे शहर ले जा सकते हो? मेरे गोविंद के पास।"
समर ने कहा "मैं तुम्हें कहां ले जाऊं ?........"
