STORYMIRROR

Ragini Singh

Inspirational

5  

Ragini Singh

Inspirational

"दहलीज"

"दहलीज"

8 mins
486


       

अवंँतिका ने जल्दी-जल्दी अपना सामान पैक किया और दरवाजे से बाहर निकल गई। नीलेश पीछे से आवाज दे रहा था।अवंँतिका सुनो मेरी बात तो सुन लो। पर अवंँतिका ने एक भी नहीं सुनी और वह तेज कदमों से चलते हुए टैक्सी में बैठ कर बाहर निकल गई। नीलेश देखता रह गया। नीलेश और अवंँतिका के शादी को 15 वर्ष हो गए थे। जैसा कि होता है अवंतिका कुछ सपने लेकर नीलेश के साथ घर संँसार बसाने आई थी। जैसे ही उसने घर में प्रवेश किया वहांँ के वातावरण को देखा तो वहांँ का वातावरण उसके घर पर से बहुत भिन्न था। पर कोई नहीं नीलेश के प्रेम व्यवहार और खुश मिजाजी के आगे उसे यह सब तुच्छ लगा ।दोनों ने हंँसी-खुशी अपना जीवन शुरू किया। कुछ समय बाद कामकाज की तलाश में नीलेश दूसरे शहर जाकर रहने लगा। अवंँतिका ने उसके घर परिवार की सारी जिम्मेदारी उठा रखी थी। नीलेश बाहर जाकर अपनी सारी जिम्मेदारियांँ भूल गया। इसी बीच उसके घर में एक छोटी सी नन्ही सी परी का आगमन हुआ ।''नीलांँजना" अवंँतिका के जीवन में से बहार आ गई थी। उसके लिए वो ही सारी दुनिया थी। उसकी देखरेख में अपना सब कुछ भूल कर बस उसी में खो गयी। नीलेश अपने काम में व्यस्त था। अवंतिका को अब आभास हो गया था।कि अब कुछ बदल रहा है नीलेश के फोन अब पहले की तरह बार-बार नहीं आते थे।अवँतिका बार बार उसको फोन करती,तो बाद में फोन करने की बात कहकर फोन काट देता। अवंँतिका को चिंता होने लगी ।इसी बीच अवंतिका का स्वास्थ्य थोड़ा खराब रहने लगा। उसकी बच्चेदानी में गांँठ पड़ गई थी। जिसकी वजह से उसे बहुत दर्द रहता था। उसने नीलेश से बार-बार उस बारे में कहा। पर वो कहता ठीक है दवाई ले लो मैं आऊंँगा तो दिखा दूंँगा ।करते-करते जो बहुत दिन हो गये।और नीलेश नहीं आया तो एक दिन अवंँतिका ने अपनी नन्ही सी गुड़िया को साथ लेकर शहर जाने की ठानी। और शहर में नीलेश के पते पर पहुंँच गई ।वहांँ जाकर उसने देखा कि एक लड़की पहले से उसके घर में बैठी हुई है। अवंँतिका को कुछ समझ में नहीं आया। उसने नीलेश से पूछा यह कौन है ?तो नीलेश ने कहा कोई नहीं मेरी सेक्रेटरी है ।कुछ ऑफिस के काम के लिए रख रखी है ।काम बहुत बढ़ गया है इसलिए घर पर भी उससे काम करा लेता हूंँ। अवंँतिका ने कहा कोई बात नहीं ।अवंँतिका उसी बीमारी की अवस्था में रह रही थी। अपनी गुड़िया की देखभाल करते हुये।तभी अचानक एक दिन अवंँतिका नहाने के लिए बाथरूम में गई तो कुछ सामान छूट गया था, इसे लेने बाहर आयी तो देखती है नीलेश उस लड़की को अपनी बाहों में ले रहा है। अवंँतिका के पैरों के तले से जमीन खिसक गई ।उसे काटो तो खून नहीं था। सुन्न पड़ गई वो।साहस करके जोर से चीखी!

" क्या है यह शर्म नहीं आती तुम्हें ?मेरे घर में यह सब क्या कर रहे हो तुम?" सुनकर दोनों हड़बड़ा गये और अलग होते हुए वो लड़की भाग गयी।और अवंँतिका जोर जोर से रोने लगी। "हे! भगवान क्या कमी रह गई थी मेरे प्रेम में ?तुमने क्यों किया ऐसा नीलेश।"कहते हुये वह नीलेश से ही लिपट गयी। अवंँतिका को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह क्या करें, इस संँसार में नीलेश के अलावा उसका कोई नहीं था। उसे ऐसा लग रहा था ,कि वह अनाथ हो गई थी। इस भरे सँसार में कोई उसका नहीं है। वह कात़र दृष्टि से निलेश की तरफ देख रही थी। आंँखों में आंँसू भरे हुये, बार-बार प्रश्नन कर रही थी। नीलेश क्यों किया तुमने ऐसा? तुमने मुझे इस भरे संँसार में बिल्कुल अकेला कर दिया ।नन्ही नीलांँजना मांँ को रोता हुआ देखकर माँ से लिपट कर रोने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था क्या हुआ ?वह लड़की बाहर की तरफ गयी।तो नीलेश अवंँतिका को चुप कराने लगा। चुप हो जाओ कुछ नहीं है ।बस चुप हो जाओ। अवंँतिका को कुछ नहीं सूझ रहा था। वह तो बस रोये जा रही थी।  नीलेश रंँगे हाथों पकड़ा गया था । अवंँतिका से माफी मांँग रहा था। मुझे माफ कर दो अवंँतिका ।गलती हो गई मुझे माफ कर दो ।उसी दिन अवंँतिका का ऑपरेशन होना था। उसने नीलांँजना को अपने रिश्तेदार के यहांँ छोड़ दिया ।हॉस्पिटल में नीलेश अवंँतिका से बात करने की कोशिश कर रहा था ।पर अवंँतिका जैसे उसकी कोई बात सुन ही नहीं रही थी ।बस खामोश थी ।अवंँतिका को ऑपरेशन से बहुत डर लगता था । उसे तो इंँजेक्शन से भी बहुत डर लगता था ।आज उस पर कोई असर नहीं था।आज उसकी भावना मर गई थी ।संवेदनशीलता खत्म हो गई थी।बस चुपचाप बैठी हुई थी ।डॉक्टर उसे अंँदर ले गए ऑपरेशन शुरू हो गया। पर आज अवंँतिका को कोई भय नहीं लग रहा था। कोई डर नहीं था उसको ।चुपचाप जैसा कहा जा रहा था ।वैसा कर रही थी। ऑपरेशन शुरू हुआ। परंँतु अवंँतिका के अंँदर कोई भी एहसास नहीं था। उसका दिमाग सुन्न था बस वही दृश्य उसे बार-बार अपनी आंँखों के सामने दिख रहा था। नीलेश का धोखा,विश्वासघात बस वही उसकी आंँखों के सामने घूम रहा था। उसका यह दर्द ऑपरेशन के इस दर्द से कहीं भारी था। उसे किसी दर्द का एहसास नहीं था क्योंकि उसके अंँदर बहुत भयंँकर दर्द था।ऑपरेशन के बाद अवंँतिका को 2 घंटे बाद होश आया। उसके पास उसके पूरे परिवार वाले खड़े हुए थे ।अवंँतिका की आंँखों से उन्हें देखकर आंँसू बहने लगे। सबको लगा शायद यह ऑपरेशन के दर्द की वजह से रो रही है।पर कोई नहीं जानता था कि अवंँतिका के अंँदर का दर्द आँसुओं के माध्यम से बाहर निकल रहा है। जो अपनों को सामने देखकर बह पड़ा है। अवंँतिका की मांँ ने नीलाँजना को संँभाल रखा था। वह10 दिन तक उसके साथ रही। उसके बाद वापस चलीं गयीं इस बीच अवंँतिका ने खुद को संँभालने की कोशिश की। और 10 दिन बाद खुद ही अपना सारा काम करने लगी। नीलेश बार-बार मौका मिलते ही उससे माफी मांँग रहा था।पर अवंँतिका को जैसे सच्चाई का पता चल गया था।उसका दिल टूट गया था। अब कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। नीलेश की सफाई देने का ।उसने अपनी आंँखों के सामने सच्चाई देख ली थी ।दोनों के बीच बस एक औपचारिक संँबंँध रह गया था। मांँ होने के नाते अपनी बेटी के भविष्य की वजह से चुपचाप रह गयी थी। पर उसने ठान लिया था, कि आब पीछे मुड़कर नहीं देखेंगी।उसने अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू की और प्रतियोगी परीक्षा पास करके वह एक सरकारी कंँपनी में नौकरी पा गयी। उसके बाद उसका जीवन थोड़ा बदल गया था। नीलेश को कहीं ना कहीं ऐसा करने लगा था।कि उसे अपने पैरों पर खड़ा देखकर उसके मन में पुरुष का स्वभाविक भाव पैदा हो रहा था। पुरुष स्त्री को कभी आगे बढ़ते नहीं देख सकता। अब अवंँतिका घर से बाहर निकली थी तो नीलेश  उस पर लाँछऩ लगाने के लिए तैयार था। अपनी गलती को छुपाने के लिए अवंँतिका पर तरह-तरह के लांँछ़न लगाता रहता ।जिंदगी बस इसी तरह से आगे बढ़ रही थी। तभी अवंँतिका के जीवन में सिद्धार्थ का आगमन हुआ ।सिद्धार्थ उसके साथ ही ऑफिस में काम करता था। लंँबा चौड़ा कद कठी का सिद्धार्थ जिसे देखकर कोई भी आकर्षित हो जाये। अवंँतिका ने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया ।क्योंकि वह नीलेश के दिये गये धोखे के बाद भी, अपने घर परिवार को ही महत्व देती थी। अपने संँस्कारों से बंँधी हुई थी ।पूरा ऑफिसअवंँतिका के काम से बहुत प्रभावित था। वह पूरी ईमानदारी और लगन के साथ अपना काम करती थी। सभी उसके प्रशंँसक थे।एक सीधा-साधा व्यक्तित्व शांँत सौम्य उसके सिद्धार्थ के मन को वह भाने लगी ।और एक दिन मौका पाकर सिद्धार्थ ने अपने मन की बात अवंँतिका से कह दी । अवंँतिका भौंचक्की रह गई सिद्धार्थ की बात सुनकर ।अवंँतिका ने कहा मैं शादीशुदा हूंँ, सिद्धार्थ । सिद्धार्थ ने कहा प्रेम कभी यह नहीं देखता कि प्रेमी या प्रेयसी शादीशुदा है ।वह यह नहीं देखता कि किस जाति वर्ग का है। काला है, गोरा है, प्रेम तो प्रेम है बस हो जाता है। इधर नीलेश की हरकतें भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं।वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। नित नई लड़कियों के साथ उसके रिलेशन कई बार अवंँतिका के सामने आए ।पर उसने उन्हें अनदेखा कर दिया ।थोड़ी बहस के बाद कहानी खत्म हो जाती । समाज में जीने के लिए अपने घर को बचाए रखने के लिए हमेशा शाँत रहती। और कभी कुछ बोलने प्रयास करती तो नीलेश लड़ झगड़ कर उसे चुप करा देता ।अवँतिका ने सिद्धार्थ के प्रस्ताव को ठुकरा दिया ।सिद्धार्थ ने कहा कोई बात नहीं है अवंतिका मैं आजीवन तुम्हारा इंँतजार करूंँगा। जब भी तुम्हें मेरी जरूरत हो मुझे जरूर आवाज देना। मेरे घर के दरवाजे हमेशा तुम्हारे लिए खुलें हैं।एक दिन तो हद ही हो गई। नीलेश एक औरत को लेकर घर ही आ गया ।अवंँतिका ऑफिस से उस दिन जल्दी आ गई थी ।उसके सर में दर्द था ।तबीयत ठीक नहीं थी ।जैसे ही दरवाजा खोला चकरा गयी।नीलेश भागता हुआ बाथरूम चला गया। उस औरत को देखकर अवंँतिका ने कहा "कौन हो तुम ?तुम्हें शर्म नहीं आती एक शादीशुदा मर्द के साथ तुम उसके घर में हो?" तो वह औरत बोली "मुझे क्या बोलती हो ,अपने पति को संँभालो। खुद से तो अपना पति संँभाला नहीं जाता ,दूसरों को ताने मार रही हो।" ये सुनकर अवँतिका खामोश रह गई। सच कह रही थी वह औरत ।जब उसके पति में ही दोष है, तो दूसरी स्त्री को क्या कहती। अवंँतिका ने सिद्धार्थ को फोन किया "सिद्धार्थ मैं तुम्हारे पास आ रही हूंँ। क्या तुम तैयार हो ?" सिद्धार्थ ने कहा "मैं तो कब से तुम्हारा इंँतजार कर रहा था। तुम्हारा घर है जब चाहो तब आ जाओ।" ,"मैं नीलांँजना के आते तुम्हारे पास आती हूँ "और अवंँतिका ने पैकिंग शुरू कर दी। जैसे ही नीलाँजना आयी, तो अवँतिका ने कहा 

 कपड़े बदलो जा रहे हैं हम ।वह नीलांँजना को पकड़े बाहर आ गयी। नीलेश ने कहा "कहांँ जा रही हो तुम अवंँतिका।प्लीज मुझे एक मौका और दो।कहांँ जा रही हो तुम प्लीज मुझे एक मौका दो।" पर अवंतिका एक ना सुनी। जिस दहलीज के भीतर दर्द और घुटन में वह रही थी ।आज उसने एक झटके के साथ ही उस दहलीज को पार करके ,उन सारी कड़वी यादों से दर्द से घुटन से छुटकारा पा लिया था ।आज वह एक उन्मुक्त खुले आसमान के नीचे खुली हवा में सांँस ले रही थी। उसने नीलेश की एक ना सुनी ।वह आगे बढ़ रही थी दह़लीज के पार अपने नए भविष्य के साथ अपने जीवन का उद्देश्य नीलांँजना को साथ लेकर.....

           


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational