जेठ के बिस्तर पर मत बैठो,छोटी बहू
जेठ के बिस्तर पर मत बैठो,छोटी बहू
सलोनी को ससुराल आये चार ही दिन हुए थे| ससुराल में सभी रस्में निभाते हुए चौथे दिन किचन में चूल्हा पूजन कर सलोनी बहुत अच्छे से एक आदर्श बहु का फर्ज निभाने लगी|
संयुक्त परिवार के ससुराल में सास, दादी सास, जेठ, जेठानी और उनके दो बच्चे थे| सलोनी की जेठानी सुनीता भी बहुत ही अच्छी थी| सलोनी के आने से दोनों बहनों के तरह प्रेम पूर्वक रहने लगी| सास भी दोनों बहुएं को एकसाथ प्यार से देखकर बहुत खुश रहती थी|
वैसे सलोनी के ससुराल में सब कुछ सही था, बस जेठ और सलोनी को लेकर सास ने घूंघट के साथ ही बहुत सारे नियम बनाये थे| जब भी सलोनी किचन में काम करती तब जेठ को किचन की ओर आना मना था| जब जेठ जी सलोनी के कमरे के पास से किसी काम से भी गुजरते तब सास सलोनी को कमरे में ही बन्द रहने को कहती| जब तक जेठ जाते नहीं तब तक सलोनी कमरे में ही बन्द रहती| मतलब एक दूसरे से आमना-सामना हर हाल में नहीं करना था जेठ और छोटी बहू को| अगर संयोग से आमना-सामना हो भी गया तो दोनों को भागना पड़ जाता है| जेठ जी तो छलांग लगाकर भागते हैं और छोटी बहू बड़े-बड़े कदम बढ़ाकर|
कई बार दोनों देवरानी-जेठानी हँसती भी है चर्चा कर कि, अपने ही घर में दौड़-दौड़कर कबड्डी खेलते हैं जेठ जी|
इसी वजह से सास ने छोटी बहू को शादी के समय ही ऊपर के कमरे में शिफ्ट कर दिया था| पर किचन नीचे होने के वजह से सलोनी को बार-बार किचन आना ही पड़ता था और ज्यादा से ज्यादा समय किचन में ही बिताना पड़ता था|
शादी के जब कुछ ही दिन हुए सलोनी ने जेठानी से कुछ पूछने के लिए उनके कमरे में गयी तभी जेठ जी नहीं थे| सलोनी की जेठानी सुनीता ने सलोनी को पहली बार कमरे में आये देखकर प्यार से हाथ पकड़कर बिस्तर में बैठा दी| इतने में दादी सास अचानक आकर जोर-जोर से चिल्लाने लगी तब तक सास भी आ गयी| दोनों मिलकर सलोनी और सुनीता को खूब खरीखोटी सुनाने लगी|
"ये क्या छोटी बहू, तुम्हारे मांबाप ने संस्कार नहीं सिखाएं क्या??जेठ के बिस्तर में नहीं बैठते हैं और न ही जेठ के कमरे में आते हैं| तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई जेठ के बिस्तर में बैठने की|"
डर से सलोनी उठकर खड़ी हो गयी जैसे ही कुछ कहना चाही तबतक सुनीता ने भी दबे शब्दों में कहा,"मम्मी जी,मैंने ही बैठाये थे सलोनी को| मेरे मायके में तो नहीं मानते हैं कोई ऐसे| बस जेठ के सामने सिर पर पल्लू रखती है मेरे मायके में छोटी बहू| बाकि कमरे में और बिस्तर पर तो बैठते ही है वहां| "
दबे स्वर से सलोनी ने भी सुनीता के बातों से सहमति जतायी| क्योंकि,सलोनी के मायके में भी ये सब नहीं मानते थे कोई|
फिर भी दादी सास का पारा हाई ही रहा,"तुम दोनों के मायके में नंगे ही रहे कोई,मुझे मतलब नहीं है| मेरे घर में ये सब नहीं चलेगा| "
सास और दादी सास के इस रूप को देखकर दोनों बहुओं ने चुप रहने में ही भलाई समझी|
उसी दिन दोनों बहुओं ने आपस मे फैसला कर बैठी, चाहे जो भी हो बहस नहीं करेंगे बुजर्गों से साथ ही बदलाव भी लाएंगे|
इसी तरह अब सलोनी जेठानी के कमरे में भी सास और दादी सास से नजर बचाकर ही जाती थी क्योंकि,सलोनी का कमरा तो ऊपर था और किचन में खड़ी-खड़ी थक जाती थी| जबतक खाना-पीना नहीं हो जाता सभी का तबतक सुस्ताने या बैठने के लिए सुनीता अपने कमरे ही ले जाती थी सलोनी को| जब कभी सुनीता के साथ सलोनी को कमरे में देख भी लेती सास या दादी सास| बकबक कर के एक दिन गुस्सा दिखाकर खुद ही चुप हो जाती थी| दोनों बहुओं ने तो प्रण ही ले रखा था चाहे जो बोले मुँह और कान बन्द ही रखना है|
सास, दादी सास की सेवा सत्कार में कोई कमी नहीं करती थी दोनों बहुएं|
एक दिन किचन से सलोनी काम कर रही थी तभी जेठ जी अपने कमरे में कुछ काम से जा रहे थे अचानक सलोनी को देखते ही बड़े छलांग लगाकर भाग गए| अचानक भागने के वजह से जेठ के पैरों में मोच भी आ गयी थी| फिर जेठानी ने बाम और गर्म पानी से सेककर ठीक किया|
एक दिन मौका पाकर सुनीता ने सलोनी को समझाकर दादी सास और सास के पास भेजा| सलोनी ने दादी सास के बालों में तेल लगाते हुए कह ही दिया,"दादी माँ,लिहाज नजरों से की जाती है| बिस्तर में बैठने या कमरे में जाने से कुछ नहीं होता| जेठ जी भी तो पति के बड़े भाई तो मेरे भी बड़े भाई ही है न| जब पति की मां,बाप,दादी,दादा सब मेरे अपने हुए तो पति के बड़े भाई भी तो मेरे भाई ही हुए न| जब सुनीता दी मेरी बड़ी बहन जैसी है तो भैया जी मेरे बड़े भाई ही न हुए|
अगर मान के चलिए दादी माँ,घर में कोई नहीं है और आपकी छोटी बहू की तबीयत बहुत बिगड़ जाए तब क्या भैया जी तो छोड़ देंगे न लिहाज के वजह से मरने के लिए??या फिर डॉक्टर के पास ले जाएंगे????या फिर भैया जी अगर खाना खा रहे हैं घर में कोई नहीं हो उन्हें ज़ोर से हिचकी आ गयी तब तो मैं परम्परा निभाने के चक्कर में पानी नहीं दूंगी उन्हें???
इज्जत और सेवा मन से की जाती है दादी मां| "
तभी जेठानी सुनीता ने भी कहा, "सलोनी सही कह रही है माँ, दादी माँ| अब देखिए न इस तरह भागने दौड़ने से आपके बेटे को चोट भी लगी| घर में ही कबड्डी खेलते हैं जेठ बहु के पर्दे में|"
सास और दादी सास एक दूसरे का मुँह देखने लगी| दादी सास के चेहरे में फिक्र और चिंता की लकीरें साफ-साफ दिख रही थीं और सास के आंखों में अपने परिवार के लिए प्यार| उन्होंने दोनों बहुओं से कहा, जैसा ठीक लगे तुम दोनों को अपने हिसाब से मैनेज करो| पर हां, मर्यादा में रहकर|
दोनों बहुओं ने एक साथ जी मम्मी जी कहते हुए खुशी-खुशी अपने कामों में लग गयी|
उस दिन के बाद से कभी भी जेठ के कमरे को लेकर कुछ नहीं कहा सास और जेठ ने भी अपने ही घरों में कब्बडी खेलना मतलब दौड़ना, छलांग लगाना बन्द कर दिया| मर्यादा और इज्जत को बचाते हुए एक बड़े बदलाव के साथ घर से अजीब दकियानूसी सोच हमेशा के लिए बाहर हो ही गया|
