यशोदा मां
यशोदा मां
वर्षों पहले की बात है। मैं किसी कलयुगी बिन ब्याही मां के गर्भ में नौ महीने पला-बढ़ा। मेरी कलयुगी मां ने लोकलाज के चलते मुझे दुनियाँ के नजरों से छिपाकर ही रखा क्योंकि, जमाने भर की अंगुलियां उस औरत को आजीवन मौत से भी बढ़कर मारते, चुभते और ज़िन्दगी भर कलंक के काले धब्बे के साथ उनका जीना मुश्किल कर देते। इसलिए उन्होंने लोकलाज बचाने के लिए उन्होंने मुझे अपने परिवार वालों के सहयोग से मुझे जन्म देते ही खेत मे छोड़ गयी और खुद मुक्त हो गयी।
मैं खेत मे पड़ा रोने चिल्लाने लगा, मेरी आवाज सुनकर देखते ही देखते लोगों की भीड़ जमा हो गयी। एक गरीब किसान ने मुझे उठाकर मेरी परवरिश की जिम्मा लेते हुए अपने घर ले गये। उनकी पत्नी ने मुझे देखते ही किसान पर आग बबूला हो उठी और मुझे नाजायज, लावारिस कहते हुए घर से बाहर निकाल दी। फिर, किसान ने मुझे जहां से उठाया वहीं रखने आ गया। तबतक लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। जितनी मुँह उतनी बातें होने लगी।
भीड़ मेला के तरह लुढ़कती जा रही थी। और मैं भूख से रोये-चिल्लाये जा रहा था। किसी को मेरी भूख की फिक्र नही थी सब मुझे जगह लगाने में तुले थे। कुछ लोगों ने पुलिस स्टेशन जाकर पुलिस तक को सूचना दे आये थे।
किसी ने मुझे पानी तक नही पिलाया, लोगों को सिर्फ तमाशा देखना था। अंत मे भीड़ को चीरती हुई एक दयालु, ममतामयी, देवी(मां)आगे बढ़कर मेरा हाथ थामा और मुझे गोद मे लेकर अपने जन्नत से आँचल तले सीने से लगाकर मेरा भूख शांत कर मुझे अपने गोद मे ही सुलाया। मैं भी मां के गोद में जाते ही बिल्कुल शांत हो चुका था। लोगों ने तरह-तरह की बातें बनायी किसी ने ये तक कह दिया, 'नाजायज बच्चों को अपना दूध कैसे पिलाया'?
मां ने सभी को एक ही उत्तर देकर सबका मुँह बन्द कराया कि, "किसी चंडाल मां के कुकर्म का फल ये मासूम क्यों भुगते???""मैं इसे अपने पांचों बेटे के तरह ही पालूंगी। मैं अपने बच्चे को दूध पिलाती हूँ इसे भी पिलाऊंगी। मैं इसकी मां बनूंगी। आज से ये मेरा बेटा है लखन है। ''कहते हुए सबों का मुंह बन्द कराते हुए मुझे अपने घर ले आयी।
उसघर में भी बिरादरी के लोगों ने मुझे अपनाने पर बहुत विरोध भी किया पर मां अपने फैसले पर अड़ी रही। छठे पुत्र के रूप में अपना दूध पिलाकर, अपने हिस्से से मेरे लिए पाय-पाय जोड़कर मुझे पालपोस कर बड़ा ही नही अपने पैरों पर खड़ा भी करा दिया।
मेरी जॉब अमेरिका में लग गयी सभी बड़े भाइयों इंडिया में ही अच्छे पोस्ट पर सेटल हो गए। मुझे मां ने तो कभी बताया ही नही कि, मैं उनका बेटा नही हूँ न ही परायेपन का एहसास होने दिया। अपना दूध पिलाकर मुझे मेरे रग-रग में अपना खून भर दिया। मां को जमाने से अपने लिए लड़ते देखकर, ये कहते सुनकर बालमन गदगद हो जाता था कि, "मैं मां हूँ लखन की, लखन के लिए 'मैं ही काफी'"
समय के साथ मैं ज्यों ही बड़ा होते रहा पर जमाना, जमाने के ताने ने मुझे समय के साथ ही हर सच्चाई से रूबरू कराते रह गये। कभी-कभी तो मुझे ऐसा लगता कि, काश कोई मुझे जन्म देने वाली कलयुगी मां के बारे में बताता तो मैं उसे जाकर जान से मार देता। यहांतक मेरे पांचों बड़े भाई भी समझ आते ही मुझसे नफरत करने लगे साथ ही मां के साथ भी लड़ाई-झगड़े करने लगे।
एक समय के बाद पिताजी की मृत्यु हो गयी और मां कमजोर पड़ गयी। मैं पिताजी के मृत्यु की खबर सुनकर सात समंदर पार अपने ऑफिस से छुटियाँ लेकर घर आया। पिताजी के तेरहवीं के बाद सभी बड़े भाइयों में मां को रखने की बैठक होने लगी। मां को किसी ने नही रखना चाह रहे थे। सभी अपनी व्यस्त लाइफ और बढ़ते महंगाई का हवाला देकर पीछा छुड़ाना चाह रहे थे।
मां की लाचार निगाहे को देखते हुए मैंने हिम्मत कर बड़े भाइयों से कहा, "आपलोग अगर परमिशन दे तो मैं मां को अपने साथ......अमेरिका ले जाना चाहता हूं। "सभी भाइयों को तो शायद इसी दिन का इंतजार था, किसी ने कोई आपत्ति नही जतायी मुझे खुशी-खुशी मां को अपने साथ रखने की स्वीकृति दे दिया। मैं मां को लेकर अमेरिका आ गया। मुझे मां को अपने साथ रखकर बहुत ही अच्छा लग रहा था कि, मैं मां के लिए कुछ कर पाया।
समय के साथ मैं भी अपने दफ्तर में काम करने वाली शिल्पा के साथ विवाह के बंधन में बंध गया। विवाह के समय इंडिया से औपचारिकता निभाने दो भाई, भाभी आये विवाह खत्म होते ही वापिस लौट गए।
मेरी गृहस्थी बहुत अच्छे से चल रही थी। मेरी दो बेटियां को भी दादी का भरपूर प्यार मिला। मेरी पत्नी शिल्पा, दोनो बेटी सुनिधि और सौम्या, मैं और मेरी माँ इतना का भरापूरा हमारा परिवार मुझे बहुत अच्छा लगता था। हमसब बहुत खुश रहते थे। हर वीकेंड पर मां, पत्नी और बच्चों के साथ ही बाहर घूमने जाते। हर वेकेशन में मां को सारा तीर्थ करा दिया। मेरी पत्नी को भी कोई शिकायत नही मां से। शिल्पा भी बहुत सुलझी और समझदार बहु के साथ ही जीवनसाथी भी है। मां को अपने तरफ से हर खुशियां देने की भरपूर कोशिश करता रहा और खुश भी रखता। मां के आंखों की चमक बता देती मुझे कि, मेरे सर पर मां का हाथ और आशीर्वाद है। जिस बलबूते मैं आज यहां तक हूँ। हर पल मुझे मेरी माँ के आंखों में अपने लिए प्यार, ममता और दुआ ही महसूस करता रहा। और मन ही मन खुश होते ही कहता, मां, मेरे लिए 'तुम ही काफी' और तेरे लिए 'मैं ही काफी। '
देखते ही देखते उम्र के अंतिम पड़ाव पर हमारा भरा-पूरा खुशियों का संसार छोड़कर मां हमेशा के लिए आंखे मूंद ली। मेरे लिए तो मेरा संसार ही उजड़ गया। मेरी माँ से मैं था मैं फिर से चालीस साल पहले का बच्चा बन गया ठीक उसी तरह रोया, चिल्लाया पर इस बार मुझे शांत कराने वाली मां खुद ही शांत होकर बेफिक्र सो चुकी थी। मुझे मां से इस बार चुप नही कराया। मेरी बीबी और बेटियां ने मुझे हिम्मत दी।
फिर मैं चुप होकर सभी बड़े भाइयों और रिश्तेदारों को सूचना दिया। भाई लोग भी मां के बारे में सुनकर दुखी जरूर हुए पर पासपोर्ट और वीजा न बन पाने के कारण मुखग्नि देने नही आ पाये। फिर मुझे मेरी माँ के पिलाये दूध का कर्ज चुकाने का सौभाग्य मिला।
मैं ही विदेश में अपने परिवार, कुछ दोस्तों, रिश्तेदारों संग मां का अंतिम संस्कार किया। मां को मुखग्नि देकर मुझे आसिम सुख और मां के दूध का कर्ज चुकाने का क्षणिक सौभाग्य मिला।
वैसे तो मुझे पता है कि, मैं मां का उपकार, ऋण साथ ही दूध का कर्ज आजीवन नही चुका पाऊंगा। पर, मेरी इच्छा है, "अगला जन्म मैं अपनी इसी ममतामयी मां के गर्भ से जन्म लूं और हर जन्म अपनी इसी मां का बेटा बनूँ। "
