Ekta Rishabh

Inspirational

4.3  

Ekta Rishabh

Inspirational

जब सम्मान तभी अधिकार

जब सम्मान तभी अधिकार

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लवकुश निवास आज फूलो की खुश्बू और रंगीन रौशनी से जगमगा रहा था।ख़ुशी से दोहरी होती रमा जी कभी मेहमानों को देखती तो कभी बारात के निकलने की तैयारी देखती।सालों बाद ऐसा शुभ अवसर उनके जीवन में आया था वर्ना उनके पति रमेश बाबू के जाने के बाद तो सिर्फ संघर्ष ही देखा था उन्होंने।दोनों बेटों को राजकुमार सा सजता देख ऑंखें ख़ुशी से बार बार झलक उठ रही थी।

मात्र बीस वर्ष में रमेश जी की दुल्हन बन ससुराल आ गई थी।भरा पूरा ससुराल मिला और रमेश जी जैसे नेक दिल पति जीवन सपनों सा सुन्दर लगता।कुछ ही महीनों में नन्हे मेहमान की आहट हुई और जब पता चला एक नहीं दो बच्चे है पूरा घर ख़ुशी से झूम उठा।नौ महीने का वक़्त पलक झपकते बीत गया और रमा जी की गोद में लव कुश आ गए।लेकिन कहते है ना कभी कभी खुशियों को खुद की नज़र भी लग जाती है।ससुर जी ने जुड़वा पोते होने की ख़ुशी में बड़े से भोज का आयोजन किया था।रमेश जी और दोनों देवर बरामदे में हलवाई से अपने निगरानी में काम करवा रहे थे तभी जाने कैसे सिलिंडर फट गया।तेज़ आवाज़ के साथ बरामदे की छत गिर पड़ी चारों तरफ आग और चीख पुकार।जब सब शांत हुआ अनर्थ हो चूका था।एक साथ चार अर्थी उठी घर से पिता और तीन जवान बेटे आँखों के आंसू दहकते अँगारे बन चुके थे।

पीछे रह गई रमा जी की सास और रमा जी दोनों बच्चों के साथ।रमा जी को कुछ महीनों बाद रमेश की जगह नौकरी मिल गई।बूढ़ी सास रोते रोते अंधी हो चुकी थी और कुछ समय बाद चल बसी वहीं ढेरों कष्ट झेल बच्चों को बड़ा किया रमा जी ने और आज वो शुभ दिन भी आ गया था जब दोनों बेटे बहु ले कर आ रहे थे।बहुत धूमधाम से शादी संपन्न हो गई और दोनों बहुएं घर आ गए।बड़ी अदिति और छोटी राधिका आपस में चचरी बहनें लगती थी।शुरुवात में तो सब ठीक था दोनों बहुएं सासूमाँ का मान करती।समय के साथ रमा जी दादी भी बन गई थी और अब रमा जी भी रिटायर हो चुकी थी और पेंशन की मोटी रकम हर महीने उठाती थी।बड़ी बहु अदिति शांत स्वाभाव की थी कम बोलती और सास की सेवा भी करती वहीं छोटी बहु राधिका बातों की धनी थी लेकिन सास को एक ग्लास पानी देने में भी उसे ज़ोर पड़ता।

दोनों बेटे अच्छी नौकरी में थे बड़े बेटे और बहु घर के खर्चो में भी हिस्सा देते और कभी रमा जी से भी उम्मीद ना करते की वो कुछ ख़र्च करे लेकिन राधिका हर कोशिश करती अपने पति के पैसों को बचाने की और सारा खर्च जेठ और सास से निकलवाने की।रमा जी को राधिका की नियत समझ तो आ रही थी लेकिन घर की सुख शांति के लिये चुप्पी लगाये बैठी थी अब छोटी बहु को परखने की नियत से रमा जी ने अपने पैसे खर्च करने बंद कर दिये।पहले वो दूध सब्ज़ी ले आती दोनों बच्चों पे भी खर्च करती साथ ही अपनी दवाई का खर्च भी निकाल लेती।अब जब वो पैसे खर्चने बंद कर दी तो राधिका को अपनी सासूमाँ खटकने लगी।आये दिन रमा जी दोनों बेटों को कोई दवा या कोई काम बता देती थी राधिका को बहुत गुस्सा आता अपनी सासूमाँ पे।जब रमा जी पैसे खर्च करती तब राधिका सारा दिन माँजी की रट लगाई रहती लेकिन पैसे आने बंद होते ही उसने नज़रे फेरने शुरू कर दी।वहीं बड़ी बहु अदिति के व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया था जैसे वो पहले थी वैसे अब भी थी।अदिति बहु को देख रमा जी ख़ुश होती।

एक दिन रमा जी के मायके के रिश्तेदारी में किसी की शादी का निमंत्रण आया तो रमा जी ने राधिका को बुला कर कहा, "बहु तुम और कुश चले जाना और एक साड़ी और हजार रूपये शगुन दे देना"।

रमा जी का इतना कहना था की पहले से चिढ़ी राधिका नाराज़ हो उठी। "वाह माँजी रिश्तेदार आपके और रिश्तेदारी निभाये हम दोनों पति पत्नी "।

"ऐसा क्यों बोल रही हो बहु? क्या वो लोग तुम दोनों के कुछ नहीं लगते"?

"मैं तो ठीक से जानती भी नहीं उन्हें माँजी एक बार मिली हूँ बस और मेरे पति के मेहनत की कमाई उनपे ख़र्च करू और फिर आपको तो पेंशन मिलती है तो आप क्यों नहीं ख़र्च करती पैसे और जेठ जी भी है उन्हें क्यों नहीं भेजती आप किसी शादी में माफ़ कीजियेगा लेकिन बहुत फ़र्क करती है आप माँजी "।

"बस करो बहु मैं कोई फ़र्क नहीं करती शायद तुम्हें पता नहीं लेकिन लव को भी मैं दूसरे रिश्तेदारी में इतना ही शगुन ले भेज रही हूँ लेकिन अदिति ने तो कोई सवाल नहीं किया मुझसे "।जैसा अनुमान था उससे अधिक राधिका के असली रंग को देख रमा जी बेहद नाराज़ हो उठी।

राधिका और रमा जी की आवाज़े सुन पूरा परिवार इकठ्ठा हो गया।

"अच्छा हुआ तुम सब आ गए तो अब जब छोटी बहु के मन में खोट आ ही गया है तो आज इसी समय में बॅटवारा भी कर रही हूँ एक भाई ऊपर के हिस्से में और एक नीचे के हिस्से में रहेगा मैं बड़े बेटे और बहु के साथ रहूँगी "।

"ठीक है माँजी अब जब आप बॅटवारा कर ही रही है तो अपनी पेंशन का भी कर दे "।राधिका भी कहा चुप रहने वाली थी।

"बॅटवारा इस घर का हुआ है क्यूंकि इस घर पे मेरे बेटों का हक़ है लेकिन मेरी पेंशन में किसी का कोई हक़ नहीं मेरे पेंशन पे सिर्फ उसका ही अधिकार होगा जो मेरे सम्मान करेगा और राधिका बहु तुम्हारा व्यवहार देख इसकी गुंजाईश तो बिलकुल भी नहीं की तुम मेरा सम्मान करोगी फिर मेरे पेंशन में कैसे अपना अधिकार जतला रही हो? मेरी पेंशन पे सिर्फ मेरा हक़ है और उसे मैं अपनी मर्जी से ख़र्च करुँगी।"

"माँजी, आपका फैसला बिलकुल सही है और हमें कुछ नहीं चाहिये इतने कष्ट आपने पुरे जीवन देखा है अब आपको सुख देने की जिम्मेदारी हमारी है "।हमेशा शांत रहने वाली अदिति की बातें सुन रमा जी का दिल ख़ुशी से भर उठा।आज रमा जी ने अपना फैसला सुना दिया था और राधिका दंग खड़ी देखती रह गई।थोड़ी समझदारी से काम ले रमा जी ने अपनी हीरे जैसी बड़ी बहु को पहचान लिया था और वहीं लालच में अंधी राधिका पछताती रह गई।


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