Gulafshan Neyaz

Drama

5.0  

Gulafshan Neyaz

Drama

इंतजार

इंतजार

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मैं अपने खाला के यहाँ अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए रहती थी।

मेरे खाला ने किराये पर कमरा ले रखा था। उसी कमरे से सटा कर एक सिंगल कोटली बनाई गई थी। सायेद मकान मालिक ने स्टूडेंट को किराया पर देने के लिए बनाया था उस कोठली से थोड़ी दूर पर अटैच टॉयलेट और बाथरूम था उस कोठली मै दो गेट थे एक हमलोगो के गेट के सामने खुलता दूसरा के अलग रास्ता था। कई स्टूडेंट आए गये पर वो गेट हमारी तरफ से नहीं खुला

एक दिन मै स्कूल से आये तो अपनी बरामदे की तरफ गेट खुला देख कर चौंक गई। उसके बाद शाम मे मैं बाहर निकली तो देखा उस कोठली से एक उम्रदराज़ औरत निकली जो काफ़ी पतली दुबली और लम्बी थी रंग गोरा था। नैन नक़्शे अच्छे थे। साधारण सी साडी पहन रखी थी।

उनके साथ उनके दो बेटे थे।

आंटी अक्सर गेट हमारे बरामदे मैं ही खोलती सों धीरे धीरे हमलोगो को उनसे दोस्ती हो गई। उस कोठली मैं बस एक चौकी और एक टेबल की जगह थी उसके बाद कुछ जगह आने जाने के लिए बच जाती। हम लोग अक्सर सोचते की आंटी उस छोटे से कमरे में कैसे रहती हैं उनके दो बड़े बड़े बेटे भी हैं एक तो देखने मे सत्रह साल का लगता था और छोटा वाले पंद्रह साल का पता नहीं कैसे ?

एक दिन मैं आंटी के कमरे मैं गई तो देखा एक छोटी चौकी थी एक कोने में एक छोटा सिलिंडर था और दिवार पर तकटथा डाल कर उसपर कुछ छोटे मोटे सामान रखे थे और चौकी के नीचे बरतन रखे होए थे

मिलाजुला उनका जीवन कष्टों से भरा था।

बाद मैं मुझे पता चला आंटी के हस्बैंड निकम्मे थे इस कारण आंटी और अंकल मैं अक्सर कहा सुनी होती देखते देखते आंटी दो बच्चे की माँ हो गई। जब उनका छोटा बेटा एक साल का था तो आंटी ने उन्हें किसी तरह मना कर कमाने के लिए शहर भेजा उसके बाद आज अंकल वापस ही नहीं आये बेचारी आंटी ने अंकल का बहुत पता लगाया पर कुछ पता नहीं चला वो अक्सर गेट खोल के सोती सायेद उनका इंतज़ार कभी ख़त्म हो अंकल कभी गेट पर दस्तक दे पर चौदह साल हो गये ना उनका कुछ पता चला ना कभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।

आंटी के गाँव मैं कुछ जमीन थी जिन पर वो खेती कर वा कर बच्चो का पढ़ाई लिखय और अपना गुज़ारा कर रही थीदेखते ही देखते समय कैसे गुज़रा पता ही नहीं चला आंटी के बेटे ने ऍम बी ए कर लिया उसको अच्छी नौकरी भी मिल गई।

उन्होंने अब बड़ा रूम ले लिया और अब उसने अपने छोटे भाई के पढ़ाई का ज़िम्मा भी अपने सर ले लिया उसके बाद मुझे पता चला की आंटी के हस्बैंड ने कॉल किया और पैसे भी भेजे पर आंटी ने पैसे वापस कर दिया उनसे कोई भी तालुक नहीं रखा।

मुझे समझ में नहीं आया जिस हस्बैंड का उन्होंने बीस साल इंतजार किया जिस की खबर पाने के लिए उन्होंने चापा चापा छाप मारा फिर उनकी खबर पर वो ख़ुश क्यों नहीं हुई। 


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