saurav ranjan

Crime Thriller

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हत्या की गुत्थी (भाग 2- गांव आगमन)

हत्या की गुत्थी (भाग 2- गांव आगमन)

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रंजीत और उसके साथी रास्ते में एक ढाबे पर बैठ कर चाय नास्ता करते हैं, वे अब बेगूसराय जिला में पहुँच गए थे। नाश्ता करने के बाद वे सभी सोलपुर गांव के लिए रवाना हो जाते हैं। अब उनकी गाड़ी एक कच्ची सड़क पर थी जो कि सीधा सोनपुर गांव के लिए जाता था। गांव का वातावरण काफी सुंदर था। सड़क के एक ओर बगीचे थे जिन्हें काफी अलग-अलग तरह के पेड़ पौधे लगे हुए थे, वहीं दूसरी ओर एक नहर थी। वे इन नजारों का लुफ्त उठा ही रहे थे कि उनकी मंजिल आ जाती है, वह गाड़ी में से देखते हैं कि वहां पर पहले से ही काफी भीड़ इकट्ठे थी सायद इन की आने की जानकारी उन लोगों को पहले ही मिल गई थी।

वे सभी गाड़ी में से बाहर निकलते हैं, तभी उनकी ओर एक लंबे कद काठी का इंसान जिसकी उम्र 34 के लगभग था, वो बढ़ता है, और कहता है-

कुंदन सिंह - "आशा करता हूं कि आपको यहां तक आने में कोई तकलीफ नहीं हुई होगी, मैं यहां का का जिला अध्यक्ष हूं और मेरी ही बहन की हत्या की साजिश को सुलझाने के लिए आपको यहां भेजा गया है। आशा करूंगा कि आप उन दोषियों को जल्दी पकड़ लेंगे नहीं तो हमने अगर तकलीफ उठाई तो जिन पर हमें शक है हम उनमें से किसी को नहीं छोड़ेंगे"।

रंजीत( गंभीरता से) - "आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए कानून दोषियों को नहीं छोड़ेगा,आप हमें अपने घर ले चलिए हम अपने काम में जल्द लगना चाहते हैं"।

कुंदन सिंह- हां क्यों नहीं पर पहले चलिए दुरा ( दुरा- सामूहिक बैठने वाली जगह)पर खाना खा लीजिए उसके बाद चलेंगे।

रंजीत - अच्छा मेरा मोबाइल का बैटरी डाउन हो गया है इसके चार्ज होने का प्रबंध हो जाएगा?

कुंदन सिंह - हां हो जाएगा मेरे घर में सोलर प्लेट लगे हुए हैं

दिन में दो -चार घंटे बिजली के उपकरण चल जाते हैं।

वह साल 2001 का था और उन दिनों बिहार की अधिकतम गांवो मैं बिजली नहीं था और मोबाइल फोन भी बटन वाली थी। रंजीत और उसके साथी वहां पहुंचकर खाना खाने लगते हैं और बाकी सभी लोग उन्हें घेर कर बैठ जाते हैं, वे सभी उनके सामने हुई इस घटना पर अपना विचार प्रस्तुत करने लगते हैं उन सभी का रोष नहर के पार वाली गांव सलेमपुर के लोग और उनके मुखिया राजेश उर्फ कल्लू पर था।उस गांव में छोटे जाति के लोग रहा करते थे और इन दोनों गांवों के बीच में जातीय संघर्ष का खूनी खेल चलता रहा था। कल्लू और कुंदन सिंह की दुश्मनी भी पुरानी थी पिछले जिला अध्यक्ष के चुनाव में वह भी खड़ा हुआ था पर जीत नहीं पाया।सभी की बातों को सुनने के बाद वे सभी कुंदन के साथ उसके घर पर पहुंचते हैं, उसका घर काफी शानदार और बड़ा था, जिसके चारों तरफ छोटे छोटे पेड़ पौधे लगे हुए थे और उसके कुछ दूरी पर लगभग 7 फीट लंबी दीवार से तीनो तरफ से घिरा हुआ था और सामने एक बड़ा सा गेट था जिसके पास दो लोग राइफल लिए पहरा दे रहे थे।

घर के दरवाजे के पास पहुंच कर कुंदन आवाज देता है, उसके आवाज पर एक नौकर बाहर निकलता है और उन लोगों का सामान घर के पीछे थोड़ी दूर पर दीवाल के नजदीक दो कमरों में रख देता है। वे सभी उसके पीछे पीछे वहां पहुंच जाते हैं उन्हें वहां पहुंचा कर कुंदन और उसका नौकर लौटने लगते हैं यह देख कर प्रभात बोलता है-

प्रभात- "कहां जा रहे हैं आप? हम अपना काम जल्द से जल्द शुरू करना चाहते हैं, इसलिए हमें आप उस दिन की सारी घटना कर्म से बताएं छोटी बड़ी कुछ भी ना छूटे क्योंकि छोटी बातें भी कई बार बड़ी सुराग दे जाती है"।

कुंदन सिंह- "जी मुझे अभी एक गांव का दौरा करने जाना है जो कि बहुत जरूरी है, वो तो मुझे आपके आने की खबर मिली थी इसलिए मैं रुक गया था, मैं शाम को लौट आऊंगा उस समय मैं निश्चिंत होकर आपको सारी बातें बता पाऊंगा तब तक आप लोग भी थोड़ा आराम कर लीजिए।"

निशा "ठीक है हमलोग भी थकान महशुस कर रहें हैं हम लोग भी थोड़ा आराम कर लेते हैं"।

निशा इतना कह कर अपने कमरे में चली जाती है, बाकी सब भी दूसरे कमरे में चले जाते हैं और आराम करने लगते हैं।

अचानक रंजीत की नींद खुलती है, व अपने मोबाइल में समय के लिए देखता है तो पाता है कि उसकी मोबाइल पूरी तरह बंद हो चुका था। वह जल्दी से उठ कर कमरे से बाहर आता है और देखता है किस संध्या हो चुकी थी, वह जल्दी से नौकर आवाज देकर बुलाता है और कुंदन के बारे में पूछता

नौकर बताता है कि उसका मालिक नाश्ता करके कुछ पलों में उनके सामने उपस्थित हो जाएगा। रंजीत उसे अपना मोबाइल चार्ज में लगाने के लिए देता है और वो वहां से चला जाता है, इधर रंजीत जल्दी से आकर अपने मित्रों को जगाता है। कुछ देर के इंतजार के बाद कुंदन उनके समक्ष आकर बैठ जाता है

रंजीत उसे देख कर कहता है-

रंजीत(शांत भाव से ) - "हत्या के दिन की सारी घटना हमें क्रमश सुनाएं, छोटी बड़ी कुछ भी बात छुटने ना पाए कभी-कभी छोटी बातें भी जानना बहुत जरूरी होती है"।

कुंदन सिंह-"जी हां मैं हर बात जो मेरे ध्यान में है वो आपको जरूर बताऊंगा। मेरी बहन का नाम पूजा था और वह एक भोपाल के इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी, वह इस बार छठी सेमेस्टर की छुट्टी में घर आई थी, उस दिन सुबह वह अपनी गांव की सहेलियों के संग निकट वाली बाजार में गई थी और 10:00 बजे तक लौट भी आई थी, फिर उसके बाद दोपहर में मुझे मेरे क्षेत्र के अंतर्गत एक गांव का दौरा करने जाना परा,मुझे लौटते हुए रात के 12:30 बज गए। मुझे देर हो गया था क्योंकि उस दिन शाम से ही काफी जोरों से बारिश हो रही थी इसलिए गांव में भी जल्दी सन्नाटा हो गया था मैं घर के मुख्य दरवाजे से अंदर आया सभी चीजें समान था सभी लोग सो रहे थे और घर के हॉल में लालटेन जल रहा था। मैं चुपचाप खाना खाया और अपने कमरे की ओर जाने लगा जैसा कि मैं आपको बता दूं कि मेरा कमरा प्रथम फ्लोर पर है मैं जब अपने कमरे में गया तो थोड़ा चौक गया, क्योंकि मैंने पाया कि मेरे कमरे की दूसरी तरफ वाला दरवाजा जिसका मुंह बालकोनी की तरफ है, वह खुला पड़ा था जहां तक मुझे याद है और मेरी आदत है मैं सुबह उठकर उस बालकोनी में प्रतिदिन अखबार और चाय के साथ सुबह की धुप का मजा लेता हुँ, फिर उस दरवाजे को मैं बंद कर देता हुँ। मैं यह देख कर घबरा गया और जल्दी से अपनी तिजोरी खोल कर देखा तो पाया की सभी चीजें अपनी जगह पर थी मुझे ऐसा लग रहा था की सायद कोई मेरे कमरे में आया है इसलिए मैंने अपने नौकरों को आवाज दिया वे दोनों मेरी आवाज पर मेरे कमरे में आए तो मैं उनसे इस बारे में पूछा उन्होंने कहा कि उनको इस बारे में कुछ नहीं पता फिर मैं यह सोच कर आराम से सो गया कि शायद मां कमरे में आई हो और गलती से बालकोनी का दरवाजा खुला छोड़ दिया हो"।

अचानक निशा उसे रुकते हुए पूछती है-

निशा(चौंकते हुए )-" जैसा कि आप ने बताया क्या अपने नौकरों को बुलाया तो क्या आपकी पत्नी उस दिन उस कमरे में नहीं थी"??

कुंदन सिंह-" जी नहीं वह अपने मायके गई हुई थी उसके वहां पर शादी था वह तो इस मनहूस घटना के चलते मैंने उसे अगले दिन बुलाया था"।

सोनू -"जी आप उस दिन के घटना के बारे में आगे बताइए"।

कुंदन सिंह (गंभीर होते हुए )-"अगली सुबह जब 10:00 बजे तक भी पूजा नहीं उठती है, तो फिर मां उसके कमरे में जाकर देखती है और चीखने लगती है, हम सभी उसकी आवाज पर ऊपर उसे कमरे में जाकर देखते हैं, तो पाते हैं कि पूजा के गले में एक छोटी सी रस्सी फसी हुई है जिसके द्वारा किसी ने उसके गले को दबाकर उसकी हत्या कर दी थी, चौंकाने वाली बात तो यह थी की यह सब कैसे हुआ कब हुआ यहां तक कि उसकी चीखने की आवाज तक हम में से किसी ने नहीं सुना। मैंने यह सब देख कर जल्दी से पुलिस को फोन किया जब उन लोगों ने जांच पड़ताल चालू किया तो उन्हें मेरे घर के पीछे वाली बाउंड्री के बगल के झाड़ियों में एक मोटी और लंबी रस्सी जिसमे 1 लोहे का हुक बांधा हुआ और एक पुरानी कीचड़ में डूबी एक जूता मिला है, शायद जल्दबाजी में वहां छूट गया हो। यह सब हो ना हो उसी कल्लू का काम होगा पहले वह मेरे कमरे में बालकोनी के रास्ते दाखिल हुआ होगा और जब मुझे ना पाया तुम मेरी बहन को मार डाला"।

 इनके बातचीत अभी अगले भाग में भी जारी रहेगी तब तक के लिए धन्यवाद


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