saurav ranjan

Tragedy Crime Thriller

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saurav ranjan

Tragedy Crime Thriller

हत्या की गुत्थी (भाग -3)

हत्या की गुत्थी (भाग -3)

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अगली सुबह रंजीत की नींद 6:00 बजे खुल जाती है बाहर आकर देखता है, तो हल्की बूंदाबांदी हो रही थी और मध्यम मध्यम हवा भी चल रही थी।दृष काफी मन को मोहने वाला था, आराम से एक कुर्सी बाहर लगाकर आम के पेड़ के नीचे बैठ जाता है और मौसम का लुत्फ उठाने लगता है। अचानक उसके मन में इस गुँथी का विचार आने लगता है और वह सीधा खड़ा होकर घर को बाहर से चारों तरफ से निहारने लगता है।

कुंदन का घर दो मंजिला था घर के पीछे तरफ एक बड़ी बालकोनी थी, शायद पीछे के नजारो का लुफ्त उठाने के लिए बनाया गया हो जिस पर सामने से ग्रिल लगी हुई थी।

घर के बाकी दिशाओं को निहारने के बाद वह सामने की ओर आता है, उसे वहां पर भी एक काफी छोटी बालकोनी दिखाई देती है।जो कि कुंदन की कमरे से लगी हुई थी उस पर ग्रिल नहीं लगे हुए थे। घर का ठीक से मुआयना करके वह अपने कमरे में चला जाता है।

दिन के क्रियाकलाप करने के बाद वह अपने मित्रों के साथ नाश्ता करता है और सीधे पुलिस स्टेशन की ओर रवाना हो जाता है। वहां पहुंचकर वह चौक जाता है क्योंकि वह देखता है कि उसका भाई अजीत वहां पहले से ही बैठा हुआ था।वह पुलिस से इस घटना के बारे में पूछताछ कर रहा था, दोनों भाई एक दूसरे को देखकर हल्की सी मुस्कान देते हैं और फिर पुलिस से पूछताछ में लग जाते हैं।इंस्पेक्टर की बातों से पता चल रहा था कि उसे कुंदन सिंह के कमरे से किसी के आने का संदेह था क्योंकि पुलिस का मानना था कि शायद किसी प्रकार उनसे गलती से दरवाजा खुला छूट गया होगा। उस पर अजित  पूछता है कि-

अजीत- "क्या कोई और जगह नहीं हो सकता है जहां से घर के अंदर दाखिल हुआ जा सके"?

इंस्पेक्टर- "ऐसे तो घर की बनावट काफी अच्छी है और छज्जे भी नहीं है, तो ऐसे में एक रास्ता छत से होकर जाने का हो सकता है फिर भी सबसे आसान तरीका कुंदन सिंह के बालकोनी से दाखिल होकर ही जाना दूसरे तरीकों के मुकाबले काफी आसान है"।

रंजीत- "अच्छा आपने कुंदन सिंह के कमरे की तलाशी ली तो आपको कुछ मिला"?

इंस्पेक्टर -"उस वक्त गौर करने लायक तो वहां कुछ भी नहीं था, सभी चीजें समान ही लग रही थी। इसका मतलब साफ ये की जो कोई भी दाखिल हुआ था, उसकी मंशा साफ हत्या करने की थी। 

अजीत -"अच्छा तो आपने उस कमरे से कुछ नहीं उठाया है मतलब ठीक कमरा जैसे हत्या के दिन था वैसे ही आज भी होगा"?

इंस्पेक्टर- "जी हां अगर कुंदन सिंह ने कोई बदलाव नहीं किया होगा तो बिल्कुल कमरा वैसा ही होगा, जैसा कि हत्या के दिन था। ऐसे हमने उस दिन कुंदन सिंह के कमरे की और जिस कमरे में हत्या हुई उन दोनों कमरों की तस्वीरें खींची हैं अगर आप चाहे तो उन्हें रख सकते हैं"।

रंजीत-" जी आपने बहुत अच्छा किया आप हमें तस्वीर के साथ साथ दूसरे सबूत जो आपने बरामद की है वह भी लेकर आइए"।

इंस्पेक्टर एक कांस्टेबल को इशारा करता है और वो सारी चीजें लाकर इन्हें देता है अजीत सबसे पहले रस्सी को ध्यान से देखता है रस्सी काफी मोटी हर जगह पर समान थी फिर वह हुक को मैग्नीफाइंग ग्लास देखता है।

इंस्पेक्टर -"हमने भी एक्सपर्ट को दिखाया था रस्सी और हुक पर पर हमें निशान नहीं मिले इसलिए आपका देखना बेकार है"।

यह सुनकर अजीत उसकी तरफ एक हल्की सी शैतानी मुस्कान लिए देखता है, और फिर जूतों को देखने लगता है

सबूतों को बारीकी से देखने के बाद कहता है -

अजित -" पोस्टमार्टम का रिपोर्ट आ गया है क्या"?

इंस्पेक्टर -"नहीं अभी नहीं आया पर क्यों बिना उसके भी तो साफ पता लग रहा है कि उसकी हत्या गला दबाकर की गई है"?

इंस्पेक्टर की यह बात सुनकर वे दोनों एक दूसरे को देखते हैं।

रंजीत (इंस्पेक्टर की ओर पूजा जी कमरे की तस्वीर बढ़ाते हुए )- "हां हत्या गला दबाकर की गई है इसमें कोई शक नहीं पर फिर भी आप कमरे की हालत देखिए कहीं भी संघर्ष के कोई निशान नहीं है।घर वालों ने भी कुछ हलचल नहीं सुनी, चाहे कोई कितना भी ताकतवर आदमी क्यों ना हो लगभग नामुमकिन है कि किसी को गला दबाकर हत्या कर दी जाये और पता भी ना चले। यह तभी हो सकता है जब उसे पहले बेहोश किया गया हो"।

इंस्पेक्टर -"शायद आप लोग सही कह रहे हैं।इस ओर तो मेरा ध्यान ही नहीं था, पर हां पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ जाएगी तो मैं आपको जरूर बता दूंगा यह लीजिए मेरा नंबर, ऐसे आप चिंता मत कीजिये एक बार कल्लू पकड़ में आगया तो सारी गुँथी अपने आप सुलझ जाएगी"।

अजित-"अच्छा कल्लू की कोई तस्वीर हमें मिल सकती है? "

इंस्पेक्टर -"ये लीजिये "।

वे दोनों भाई वहाँ से गॉव के लिए रवाना होतें हैं वे अपने साथ सारी तस्वीरे भी लाते हैं पुरे समय रंजीत अपने भाई को लोगों और कुंदन सिंह के की बताये हुए सारी घटना कर्म को बताते लाता है "।

जब वे गॉव पहुचते हैं तो दोपहर हो चुकी थी उनको साथ में देखकर उनके सभी मित्र काफ़ी ख़ुश होते हैं।कुछ देर में नौकर उनके लिए खाना लाता है। सभी खाना खाकर काम पर लग जाते हैं, वे सभी घर के अंदर दाखिल होते हैं ताकि घर को ठीक से देख सके अजीत नेम फोटो भी अपने साथ रख ली थी।

घर के अंदर प्रवेश होते हैं एक बड़ा सा हॉल था जिस के दाएं ओर दो कमरे और एक रसोईघर था और बाये ओर भी दो कमरे और स्नानघर था उन सभी कमरों मुख हॉल की तरफ से खुलता था। हॉल के बीच से ही सीधी थी, जोकि ऊपर के फ्लोर को ले जाती थी। ऊपर केवल चार कमरे बने हुए थे।

वे सब बिना किसी विलंब के सीधे कुंदन के कमरे में जाते हैं और सारी चीजों को निहारने लगते हैं अजीत सबसे पहले बालकोनी में जाता है बालकोनी वाली तस्वीर को निकाल कर ध्यान से देखता है उसके बाद रेलिंग को मैग्नीफाइंग ग्लास से देखता है।बालकोनी से सामने का नजारा बहुत ही खूबसूरत था दूर- दूर तक हरियाली थी और फिर कुछ दूरी पर इनका गेट था। उसके बाद वह और उसका भाई बालकोनी वाले दरवाजे को ध्यान से निहारने लगते है, दरवाजा लकड़ी का बना हुआ था जिसपर कुंडी लगी हुई थी।वे दोनों मैग्नीफाइंग ग्लास से दरवाजे को देखते हैं, पर कुछ खास ना पाकर वे दोनों सीधा पूजा के कमरे में दाखिल होते हैं।उसका कमरा काफ़ी दिन से बंद था, इसलिए काफी बदबू आ रही थी।उसके कमरे में सारी चीजें हत्या के दिन के जैसे ही थी

उस कमरे को वे सभी ध्यान से निहारने लगते हैं कमरे में एक खिड़की थी। जिस पर के छोटे-छोटे रोड लगे हुए थे, कमरे के दरवाजे के सामने एक टेबल था  उसी के बगल में बिस्तर था दूसरी तरफ दीवाल से सती एक गोदरेज थी।कमरा समान लग रहा था कोई चीजें ज्यादा उथल पुथल नहीं हुई थी, जो कि सीधा दोनों भाइयों की बातों की ओर इशारा कर रहा था।

फिर वह सीधा हॉल में आकर बैठ जाते हैं और घर के सदस्यों से पूछताछ करने लगते हैं। घर में कुंदन सिंह उनकी पत्नी उनकी मां उनके चाचा और चाची और उनका बेटा रविंद्र जो घटना के बाद आया था और दो नौकर थे

प्रभात- "जैसा कि कुंदन जी ने हमें बताया था इस घटना के समय वे बाहर थे पर क्या आप में से किसी को भी यह सब कैसे हुआ इसका भनक नहीं लगा"?

बिरजू सिंह(कुंदन का चाचा )-(उदाश मन से ) "नहीं बेटा हमें कुछ भनक नहीं लग पाया ना कोई आवाज ना कोई हलचल और यह सारी घटना घटित हो गई। हमें तो अब भी  नहीं समझ में आता की किसी ने इतनी हिम्मत कैसे दिखाएं और वो इन सब में कैसे सफल हो गया।पता नहीं हमारे घर को किसकी नजर लग गयी कुछ साल पहले रेस्मा को उनलोगों ने हमला कर पागल कर दिया और अब पूजा को मार डाला अगर मैं वृद्ध ना हुआ होता तो बताता की बदला किसे कहते हैं"।

रंजीत -"आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए जो कोई भी है इस घटना के पीछे वह ज्यादा देर नहीं बचेगा"।

निशा (कुंदन se)- आपकी बहन रेस्मा कहां है?

कुंदन-" जैसा कि मैंने आपको बताया था।उसके दिमाग की हालत खराब होने के कारण वह कॉफी चीखती चिल्लाती है कभी कभी खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी करती रहती है, इसलिए हम उसे ऊपर वाले कमरा जो छत की सीढ़ियों के समीप है उसी मे उसे बंद रखते हैं, जिसका चाभी मेरे और मां के पास रहता है।मां के दिन का अधिकतर समय उसी की देखभाल में जाता है"।

निसा - उसका इलाज यहां कैसे होता है?

कुंदन सिंह- शुरू में तो उसे हमने उसे पटना के अस्पताल में भर्ती कराया था, जहां पर वह 6 महीने रही थी पर एक दिन उसने अपनी जान देने की कोशिश की इसके बाद से हमने उसे अपने सामने रखकर ही इलाज करवाना ज्यादा बेहतर समझा। अब उसकी इलाज के लिए महीने में दो बार पटना से दिमाग के अच्छे डॉक्टर आते हैं, पर दुख की बात तो यह है अब तक ज्यादा कुछ सुधार देखने को नहीं मिला है।

रविंद्र (कुंदन का भाई )-" अगर दीदी ठीक हो जाती तब तो वे सारी बातें जो कि उनके साथ घटित हुई थी और उन पर हमला किसने करवाया था उसका नाम बता देती तब तो कल्लू को सजा मिलना तय हो जाता"।

अजीत-" नौकरों से अच्छा आप लोग उस दिन कहां थे"?

नौकर -"हम दोनों कमरे में सो रहे थे, साहब आए नहीं थे इसलिए मैंने हॉल के टेबल पर लालटेन और साहब का खाना रख कर 9:30 के आस-पास सोने चला गया था"।

अजीत (कुंदन सिंह की ओर देखते हुए)-" अच्छा ठीक है अब हम अपने कमरे में जाते हैं। आप अपने दोनों द्वार रक्षक को हमारे पास भेज दीजिएगा हमारा उनसे भी बात करना जरूरी है"?

कुंदन सिंह-" जी ठीक है मैं उन्हें भेज देता हूं"।

वे सभी अपने कमरे में आते हैं और आपस में बातचीत करने लगते हैं,  कुछ देर में उनके समक्ष द्वार रक्षक आकर खड़े हो जाते है।

रंजीत उनकी ओर देख कर उस दिन की घटना के बारे में तुम दोनों को जो भी याद है उसे बताओ।

द्वार रक्षक-" साहब उस रात बहुत जोरों से बारिश हो रही थी ऐसे तो हम गेट के पास ही बैठे रहते हैं, पर बारिश के कारण हम दोनों अपने कमरे में थे जोकि गेट के निकट है, पर जैसा कि हम आपको बता दें हम दोनों में से एक कमरे के खिड़की के पास बैठे हुए थे, ताकि हम बाहर की चीजों पर नजर रख सकें"।

फिर देर रात में मालिक आते हैं हम उनके लिए दरवाजा खोलते हैं, उसके एक घंटे बाद हम भी सोने चले जाते हैं।

सोनू-" इसका मतलब है कि जब तक कुंदन सिंह नहीं आये थे तब तक तुम दोनों जागे हुए थे"।

द्वार रक्षक-" जी हाँ "।

प्रभात द्वार रक्षक को जाने का इशारा करता है और वे सभी आपस में चर्चा करने लगते हैं ;अजीत चुपचाप बैठा हुआ था अचानक वह समय देखता है। शाम के 4:30 बज चुके थे, वह सोनू के साथ शाम का लुत्फ़ उठाने निकल जाता हैं।

उन दोनों में काफ़ी अच्छी मित्रता हो गई थी,

जिसका प्रभाव यह हुआ था सोनू भी अब थोड़ा-थोड़ा पीना चालू कर दिया था। इस बात के कारण रंजीत काफी गुस्से में भी था।

वे दोनों बाहर जा ही रहे थे की तभी अजीत को द्वारा रक्षक का कमरा दिखता है तो वह अंदर जाकर खिड़की पर खड़ा हो कर सभी चीजों को देखने लगता है फिर कुछ सोचकर बाहर आ जाता है।

यह देखकर सोनू उससे अंदर जाने का कारण पूछता है, जिस पर वह हंसते हुए टाल देता है और कहता है अरे यह सब तो चलता रहेगा चलो पहले रात का कुछ इंतजाम करते हैं।

सोनू यहां कहां से इंतजाम करेंगे और ऐसे भी रंजीत भैया ने मुझे पिछली बार बहुत डांटा था, इसलिए आप ही करो मैं तो इस बार दूर रहूंगा।

अजीत -"अरे डरपोक चिंता मत कर उसे नहीं पता लगेगा। ऐसे मौके रोज-रोज नहीं मिलते वहां मां के होने के कारण मेरा भी शराब से नाता बहुत कम हो गया है अगर किसी दिन भूले से शराब पी भी लिया तो फिर कोई ना कोई बहाने घर के बाहर ही रहना पड़ता है, नहीं तो घर में आफत आ जाती है"।

सोनू -" ऐसे बात तो आपकी बिल्कुल ठीक है घर वालों के सामने पीने का मौका कहां मिलता है"।

अजीत- चल आखिर में तू समझ ही गया मेरी बात और ऐसे भी जब कोई गुत्थी सुलझा रहा होता हूं तो दिमाग को एनर्जी चाहिए होती है जो मेरे दिमाग को इसे मिलती है"।

सोनू (हँसते hue)- हां हम पीने वालों को तो बस पीने का बहाना चाहिए, पर यहां अब शराब कहां से मिलेगा?

अजीत -"शराब की किसे पड़ी है उसमे दम कहां जो गांव के देसी नुस्खों से मिलती है"।

सोनू-" मतलब"?

अजीत- "अरे!भाई मैं भांग और गांजे की बात कर रहा हूं चलो आज इसको भी ट्राई कर लेते हैं "।

सोनू- "नहीं इससे तो बहुत दिक्कत हो जाएगा आपका तो पता नहीं पर मेरी तो हालत खराब हो जाएगी ऐसे आपने इसका इंतजाम किया कहां से? "

अजीत -"जब मैं दुरा पर गया था, तो वहां मुझे कुछ बुजुर्ग मिले थे बस मैंने उनकी आंखों शरीर की हालत सही समझ लिया कि वे सभी कुछ ना कुछ पीने ही वाले हैं।मैंने उनसे दोस्ती बनाई और उनसे रात के इंतजाम के बारे में पूछा

उन्होंने बताया कि अगर पीना हो रात में गांव की बरगद के पेड़ के नीचे आ जाना मिल जाएगा"।

सोनू -"अच्छा अभी हम कहां जा रहे हैं"?

अजीत -"वहीं पर मुझे कुछ लड़के जिनकी उम्र 22 से 23 वर्ष होगी उनसे भी बातचीत हुई उन्होंने बताया कि वह हर शाम को नदी के पास वाली खाली स्थान पर क्रिकेट खेलते हैं तो हम अभी वहीं जा रहे हैं"।

दोनों बातचीत करते जा रहे थे और बीच रास्ते में आखिर में वह सोनू को पीने के लिए राजी कर ही लेता है।

आखिर कौन हैं हत्यारा और अजित इतना क्यों निश्चिंत है क्या उसने इस गुँथी को सुलझा तो नहीं लिया ये सब आपको आने वाले भागों में पता चलेगा।

यहां पर हम तीसरा भाग समाप्त कर रहे हैं


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