हॉस्पिटल ड्यूटी #2
हॉस्पिटल ड्यूटी #2


जी नमस्ते तो चलते हैं,एक कदम आगे अपनी मंजिल की ओर,,,,,
हॉस्पिटल गए और हमे हॉस्पिटल के वार्ड में ड्यूटी के लिए भेजा गया ,
घर से हम निकले यू किसी की जिंदगी को संवारने क्योंकि हमारा काम यही हैं,जो अपनी जिंदगी को यू सफर करते देखते हैं, वो उनकी परेशानियां ,दर्द किसी भी पल अपनो से बिछड़ जाने का ख्याल, इस सब से घिरे वो खुद जीने की उम्मीद को देते है ।
और हम इसी उम्मीद को बचाने निकल पड़े, "हॉस्पिटल की धड़कन बन"पहले तो मिले हम सभी अपनी परिचारिका मैम से जो हमे इन्ही कार्यों के लिए मार्गदर्शित करने वाली थी। वो बहुत अच्छी है,,, उन्ही से कई बाते हुई और सबकी परिचारिका मैम के द्वारा हमारी पहली ड्यूटी लगाई गई, और इसी के साथ कुछ ऐसी सिख जो आज हमे बार- बार जो परिचारिका मैम के द्वारा दो शब्द दोहराए गए थे। वही सब मेरे मन में आ रहे थे।
परिचारिका मैम ने कहा,,,,,
कि आ
प सब को बहुत सारी बधाईयां
की चलो मन को उत्साहित कर,
यूं धड़कन को प्रवाहित कर,
की चलो अब उस मंजिल की तरफ ,
जिस लिए तुम यहां आए ,
बहुत हुई मस्तियां अब,
चलो वो करो जो ,
किसी की उम्मीद बन कर आए हो,
की चलो अब एक लक्ष्य बनाओ,
किसी के जीवन के दर्द की,
दवा मरहम अब बन जाओ,
चलो मन को उत्साहित कर,
खिलो तुम फूल की खुशबू बन,
बहों अब ऐसे जैसे,
रक्त में ऑक्सीजन बन,
धड़कन बन धड़को तुम,
किसी की उम्मीद की किरण बन,
पीछे रखना भूख प्यास, मस्ती और अपनी हठ,
कभी नही मन में लाना सिलवट शिकन,
और इन्हीं शब्दों के साथ उन्होंने कहा,,,,,
की चलो जाओ बनो तुम सूरज को वो ऐसी किरण,
जो उगने से पहले देती है अपनी अद्भुत अदम्य साहस का परिचय।