जिंदगी 3.
जिंदगी 3.


ये मेरी उन दिनों की कहानी है जब हम छह:, आठ साल की थी। बहुत ही जिद्दी और बहुत ही चंचल सी थी मैं । किसी की न सुनना और बस अपनी मनमानियां करना, मानो ये हम में कूट -कूट कर भरा था। और कोई मना करने वाला भी नहीं था। लेकिन हाँ इन सभी में एक चीज बहुत ठीक थी।
दूसरों की मदद करना और शायद यही वजह थी की हमसे हमारे परिवार वाले, और हमारे कलिक्स बहुत प्यार करते थे। लेकिन
हम उस समय बहुत परेशान रहते थे कि ये समय क्यों नहीं बीतता। और कितना वक्त लगेगा बड़े होने में। और कुछ समय और बिता और हम
सभी जैसे जैसे बड़े होते गए वैसे वैसे कुछ तनाव बनता गया पढ़ाई लिखाई का और हम सब अपने अपने में व्यस्त हो गए। और आज जब
उन दिनों की याद आती है तो लगता है काश वो दिन फिर आ जाते।
सच किसी ने कहा है जब वक्त रहता है उसकी अहमियत नहीं होती और जब वक्त हाथ से निकल जाता है तो अफ़सोस का कोई मतलब नहीं होता।।