जिंदगी 2.
जिंदगी 2.


मन मे एक विश्वास था, एक उम्मीद सी थी कि शायद
आज नही तो कल ये जिंदगी मेरे साथ हो ।
और इसी उम्मीद में मैंने कई वर्ष यूं ही बिता दिए; और आज जब पीछे मुड़ कर देखा तो , वही रास्तेे और वही हम ।
कुुछ वक्त के लिये तो ऐसा लगा कि ,जिंदगी ने क्या किया हमारे साथ ,ऐसा क्यों किया, हमे धोखा क्यों मिला और फिर यही सोच -सोच कुुुछ और वक्त बीत गए।
हम गलत थे , सायद हम समझ नही पाए कि जिंदगी
हमे कुछ सिखाना चाहती थी।
इशीलिये कहती हूं--------
वक्त पे पहल करो,वक्त पे करो , हो सके तो जिंदगी के साथ चलो।।