हम संग हैं

हम संग हैं

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"जीजा जी ! हम दरवाजे से नहीं हटेंगे जब तक आप कोई गाना ना सुना दें।" शादी के बाद मण्डप से कमरे में जाते वक़्त मेरी सालियों ने दरवाजा रोक लिया था।

"मुझे तो गाना आता ही नहीं।"

"झूठे जीजा जी ! दीदी को तो फोन पर बहुत गाना सुनाते थे।" मैंने इनको देखा तो ये मुस्कुरा दीं और मैं झेप गया।

"वो तो ऐसे ही पर सच में नहीं आता।"

"अच्छा कोइ बात नहीं कोई कविता ही सुना दीजिये।"

इतनी लड़कियों को देख जो आता था वो भी भूल गया।

"जी अभी तो कुछ भी याद नहीं आ रहा।"

"ओ हो मेरे जीजा जी ! दीदी को देख सब भूल गए ! पर हम ऐसे नहीं जाने देंगे।" घबराहट में बुदबुदा दिया "क्या मुसीबत है यार।" ये सुन लीं

इन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया।

"चलिए पहले एक लाइन मैं गाती हूँ फिर आप पूरा कीजियेगा।' मैं सहमति में गर्दन हिला दिया।

"तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं।" मैंने अगला लाइन पूरा किया..

"जहाँ भी ले जाये राहें.. हम संग हैं।"

आखिरकार हम कमरे में चले गये। ऐसे ही जीवन के हर छोटे बड़े मुसीबत में ये मेरा हाथ थामें रहती है और हम हर मुसीबत से निकल ही जाते हैं इस हिम्मत से कि..हम संग हैं..!


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