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विनय मिश्रा

Inspirational

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विनय मिश्रा

Inspirational

चूहे

चूहे

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अपनी दो बेटियों और श्रीमती जी के साथ ट्रेन के सफर में था। अच्छा खासा माहौल था। रात भर का सफर कट गया था शाम में नई जगह पहुंचने का उत्साह था। तभी कुछ चूहों का झुंड हमारी बोगी में दाखिल हुआ। कहीं एग्जाम देने जा रहे थे। शायद ये अकेले होते तो ना इनमें इतनी हिम्मत होती ना ये इस तरह की हरकत करते पर झुंड में ये खुद को ना जाने क्या समझने लग जाते हैं शायद जंगली शेर !

उनकी बातों से वो विद्यार्थी नहीं लफंगे लग रहे थे। दूसरे सीट पर भी जगह खाली थी पर इनमें से दो पहले हमारी बेटियों के बगल में आकर बैठ गए। बिटिया मेरी ओर देखी तो मैं उठ कर उनकी जगह चला गया और उन्हें अपनी सीट पर बिठा दिया। फिर उधर से दो आकर ये वाली सीट पर बैठ गए। मैंने उनसे विनती किया कि "देखिए और भी सीट है आपलोग जाकर वहां बैठ जाएं।"

"अबे क्या सीट तेरे बाप की है।"

 उन्होंने बातों से बदतमीजी करना शुरू कर दिया। भद्दी भाषा का इस्तेमाल करने लगें। मेरी बेटियों को देखते हुए गंदी बातें कहने लगे। एक पुरूष के नाते मेरी मुठी भींच रही थी पर एक पिता सहमा हुआ था, लोगों की ओर देख रहा था मेरे साथ साथ बाकी लोग भी बेबस नज़र आ रहे थे। तभी एक थप्पड़ की गूँज सुनाई दी, उसमें से एक नीचे गिरा हुआ था, झापड़ मेरी बेटी ने मारा था शायद उसने उसे छूने की कोशिश की थी। मेरी बेटियां चीखीं-

"अब हाथ लगाकर दिखा चूहे।"

अचानक से मेरी बेटियों की तरफ बहुत लोग खड़े दिखे..और वो चूहे बचने का रास्ता ढूँढने लगे..!


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