हम हुए गुमशुदा ?
हम हुए गुमशुदा ?
मशहूर तो कभी हम भी थे एक दिन। पर अब गुमनामों कि तरह हम भी गुमनामी के लिये अर्ज कर रहे है। शौहरत और अमिरी के पकाये हुये पुलाव अब बांसी हो चुके हैं। आलस के रोगी हम कब से बन चुके है। खुशियों कि किरणें अब नजरोंसे ओंछल हो चुकीं हैं। बिना विटामिन डी जैसे शरीर अशक्त होता है, वैसे ही बिना जिंदगी कि चाहत कि वज़ह से मन भी अशक्त हो चुका है। सदियों से रंगाये हुये सपने दुसरों कि आंखें ढूंढ रही है। हमारा लक्ष्य भी हवा के साथ-साथ दुसरी ओर जा रहा है। हमारी बुराइयों ने मासुमियत का नक़ाब पहन लिया हैं।
आंसुओं से नाता अब बना लिया है हमने। मनहूसी ने चेहरे पर घर ढूंढ लिया है अपना। दुनिया घुर रही है, तानो के फुल हम पर बरसा रही है। हमारे बुराइयों के नगमे एक दुजे को सुना रही है। दुनिया के इसी तानों का बोज हम अपने कन्धों पे लेकर बद्कीस्मती के कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे है। अपयश भी साथ दे रहा है हमारा, इन्ही अपयश कि मंजीलों पे चलते चलते दुनिया से गुम होने लगे है। बस हम और हमारे ये साथी विरानी के ओर बढ़ रहे है।
आंखें अब निन्द में डूबना चाहतीं है। मृत्यू दरवाज़े पर बैठी राह देख रही है। ज़िंदगी अब हमसे आज़ादी कि भीख मांग रही है। लज्जा को तो हमनें पहले हीं दान में दे दिया था। बस अब अजीब से डर को दिल मे पनाह दी है।
न जाने कब वो दिन आएगा जब हम मन के साथ-साथ इस शरीर से भी मीट जाएंगे और किसी एक दिन पुरी तरह इस दुनिया से गुमशुदा हो जाएंगे...
