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Aasha Pawar

Inspirational

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Aasha Pawar

Inspirational

ज़िंदगी का तरीका

ज़िंदगी का तरीका

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ये कहानी है मेरे एक शिक्षक की।८ मार्च २०१९ - जागतिक महिला दिन होने के वजह से हमारे कॉलेज मे एक छोटासा कार्यक्रम था । यह एक मुक्तविद्यापीठ था, तो सिर्फ प्रथम वर्ष के विद्यार्थी ही थे। दरअसल मे दूसरे और तीसरे वर्ष के छात्रा बहुत ही कम थे या ना के मुकाबले थे। शिक्षक और कुछ शिक्षिकायें थी। हर एक शिक्षिका ने हमें लड़कियों के बारे में और उनके शिक्षा के बारे मे जागृत करने का प्रयास किया। पर मैं सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हमारे मानसशास्त्र के शिक्षिकासे। उन्होने हमें उनकी जिंदगी के कुछ पलों से वाकिफ कराया। वे जब हमारे उमर के थे, तो उनकी शादी हो चुकी थी। वो एक अच्छी छात्रा हुआ करती थी। लेकीन गाँव में अगर आपने १८ साल पुरे किये हो, तो आपकी शादी के लिये सभी बेताब हो उठते हैं। कुछ ऐसा ही हाल उनका भी हुआ। उनकी शादी हो जाने के बाद घर-संसार ही उनकी जिंदगी बन गई। उनके फिर बच्चे भी हुये और वक्त के साथ साथ उनके बच्चे बड़े भी हुये। उनके लड़के को पता था कि उनकी माँ कि पढ़ाई बीच मे ही छूट गई थी। तो उसने अपने माँ को फिर से पढ़ाई के लिये उक्साया। वो ठहरी एक ऐसी औरत जो अपने परिवार और अपने दूर के रिश्तेदार, उनके पड़ौसी इनके बीच रहने वाली। उनके लिये ये कदम उठ़ाना बहुत ही मुश्कील था मगर दिल मे कहीं ना कहीं पढ़ने कि ख्वाईश अभी भी जिंदा थी। फिर क्या उसी साल वो जहाँ रहती थी, वहा एक मुक्तविद्यापीठ शुरू हुआ। उन्होने अपने लड़के कि मदद से वहाँ किसी को बिना बताये दाखिला लिया। दिन मे तो वे पढ़ नही पाती थी। अगर वो ऐसा करती, तो सबको मालूम हो जायेगा कि उन्होने अपना दाखिला काॅलेज मे करवाया है। तो वो रात को उठकर सभी सो जाने के बाद ही अपनी पढ़ाई करती थी। ऐसे करते - करते एक साल गुजर गया उन्होंने परीक्षा भी किसी को बिना बताये ही दी फिर आए वो दिन जिनसे हम सभी ड़रते है - रिजल्ट के दिन। उनके घर पर एक पोस्ट आया। वो उनके पती के हाथ लगा। असल में वो पोस्ट था नाशिक केंद्र से। उसमे लिखा था कि सबसे बेहतरीन छात्रा होने के वजह से और प्रथम वर्ष में पूरे केंद्र मे प्रथम आने के कारण विद्यालय उनका सन्मान करना चाहता है। फिर क्या जिस बात का ड़र वो अपने दिल मे बिठ़ाए रहती थी, वही हुआ। सभी ने उन्हें डाँटना शुरू किया। उनके रिश्तेदार, पड़ौसी, घरवाले सभी उनके पिछे अपने तानों की बौछार लिये लगे। हर वक्त उन्हे यही सुनना पडता था, कि उमर देखो अब इस उमर मे इसे पढ़ना है क्या और इससे होगा भी तो क्या? खामका कॉलेज करने कि सूझी है। पहले पहल वे बहुत ही दुखी होती थी इन बातों से, पर बाद मे इनकी आदत ही पड़ी। उन्होंने अपनी Ph.D. भी करवाली और बन गये डॉ...और आज वो हमे पढ़ाती है। अगर वो उस वक्त ये सब साहस न करती तो क्या आज वो इस जगह पर होती और क्या मैं उनकी ये घटना जानने के बाद अपना इरादा बना पाती? उनका और मेरा शिक्षक-छात्रा का नाता सिर्फ एक साल के लिए महीने में एक बार वो भी कुछ पाँच-छह महीने का ही होगा । पर आज भी वो मेरे मन में कुछ अलग-सा स्थान रखती हैं ।

सबके जीवन में कोई-ना-कोई प्रतिभावान व्यक्ती हुआ करता है। पर क्या ये जरुरी है कि वो व्यक्ती उंचे अस्मान में हो? हमारे आस-पास कितने ऐसे लोग होते हैं, जो हमसे कुछ थोडा-सा अलग करते हैं। परेशानियाँ वही होती है, पर उसे झेलने का तरीका अलग होता है।

अब आखिरी बात, मुझे अभी तक उस शिक्षिका का नाम नहीं पता। पर फिर भी वो मेरे लिये सबसे महत्वपूर्ण है। शेक्सपिअर ने कहा है ना - नाम मे क्या रखा है ?


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