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Vijay Paliwal

Drama

3  

Vijay Paliwal

Drama

हिप्नोटाइज - 5

हिप्नोटाइज - 5

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"हो सकता है यह किसी और के लिये असंभव हो, लेकिन तुम्हारे लिये दिव्या!" - रवि ने कहा - "तुम्हारे लिये तो सब कुछ संभव है।"


"रवि! समझने की कोशिश करो।" - दिव्या बोली - "नशेबाजी एक ऐसा वन वे स्ट्रीट (इकतरफा रास्ता) है, जिसमें प्रवेश तो आसानी से किया जा सकता है, लेकिन इससे निकलना बहुत - बहुत मुश्किल होता है।"


"दिव्या! अगर तुम अमर को जानती होती तो ऐसा कभी नहीं कहती। अमर एक बहुत अच्छा लडका है। वो तो बस हालातों ने उसकी ऐसी हालत कर दी।” - रवि ने कहा - "मिस्टर पंकज जडेजा का इकलौता बेटा है अमर! बहुत फक्र था उनको अपने बेटे पर। लेकिन जब से अमर बिगड गया है, मिस्टर जडेजा का स्वास्थ्य भी बिगडता ही जा रहा है।"


सुनते - सुनते दिव्या की आंखें हल्की - सी नम हो आयी। यही तो उसकी सबसे बडी कमजोरी थी। किसी के भी दुख को देख - सुनकर वह बहुत जल्दी इमोशनल हो जाती थी, लेकिन कभी-कभी भावनाओं को मारना पडता है।


"मैं समझ सकती हूँ। पर फिर भी मेरा जवाब वही है रवि! यह असंभव है।”


"तुम कोशिश तो कर ही सकती हो दिव्या! अपने पुराने बेटे को पाने के लिये मिस्टर जडेजा अपना सब कुछ तुम्हें देने के लिये तैयार है।" - रवि ने अंतिम प्रयास किया - "तुम जितने रुपये चाहो, तुम्हें मिल जायेंगे। तुम अपना हर सपना पूरा कर सकोगी।"


"नहीं मैं ऐसे किसी काम को हाथ में नहीं ले सकती, जिसकी सफलता संदिग्ध हो। न तो मुझे पैसों का लालच है और न ही मेरा कोई सपना...." - बोलते - बोलते दिव्या अचानक रुक गयी। उसे विकास याद आ गया।


दिव्या ने सोचा - "अगर विकास को ढेर सारे रुपये मिल जाये और उसे जयपुर से कहीं दूर पढने, विदेश भेज दिया जाय तो उसकी तो लाइफ बन जायेगी, इधर मिस्टर पंकज जडेजा भी खुश होंगे और उधर अमर सुधर गया तो वह भी जीवित नर्क से बाहर आ जायेगा। सिर्फ एक एक्शन से तीन - तीन जिन्दगियां बन जायेगी ।"


"क्या हुआ दिव्या! किस सोच में पड गयी?” - रवि ने पूछा।


"मैं अमर की मदद करुंगी। मैं उसे सही रास्ते पर ले आऊंगी।” - दिव्या ने अपनी मुट्ठियाँ भींचते हुए भरपूर दृढता से कहा।


"दिव्या! ये तुम क्या कह रही हो?" - साकेत बोला - "यह कैसे करोगी तुम?"


"साकेत!” - दिव्या हल्के - से मुस्कुराते हुए बोली - "दिव्या ने जो चाहा है वो हमेशा हुआ है और अब मैं चाहती हूँ कि अमर सुधर जाये।"


साकेत ने देखा, दिव्या महानायिका की तरह दिख रही थी और ऐसा हमेशा उस समय होता था, जब दिव्या का अन्तर्मन आत्मविश्वास से भरा होता था।

हाँ दिव्या एक महानायिका ही थी।


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