हिप्नोटाइज - 2

हिप्नोटाइज - 2

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जयपुर का एक पार्क। इस पार्क में बहुत-से पेड़-पौधे थे। फव्वारे भी चल रहे थे। यहाँ कुछ बच्चे भी खेल रहे थे।

एक लड़का, नीम के पेड़ के नीचे बैठा हुआ था। वह दूसरे लड़को को खेलते देखकर खुश हो रहा था। वह खेल नहीं सकता था, क्योंकि कोई भी उसे अपने साथ खिलाना पसन्द नहीं करता था। पहले वह बहुत दुःखी रहता था कि कोई उसे अपने साथ खिलाना नहीं चाहता, पर धीरे-धीरे उसने अकेले रहने की आदत डाल ली थी। अब तो वह दूसरों को देख - देख कर ही खुश रहता था।

उसका नाम विकास था। विकास रोज उस पार्क में आकर घंटों घूमा करता था। वह उन अमीर परिवार के लड़को को देखता था, जो सारी सुविधाएं मिलने पर भी जिद करते थे। विकास कुछ बडी उम्र के लडके - लड़कियों को देखता था, जो उस पार्क में आकर घंटों बातें किया करते थे। वह कभी नहीं जान पाया कि वे क्या बातें करते है ? विकास कुछ ऐसे लड़कों को भी देखता था, जो बेवजह किसी को भी मारने लगते थे, वे सिगरेट - शराब पीते और कभी-कभी विकास को भी पीटने लगते। यह पार्क ही विकास की दुनिया थी। पार्क से बाहर, वह खुद को असुरक्षित महसूस करता था।

"अरे वाह ! कितनी खूबसूरत है वो ! " - उसे देखते ही विकास का मन खुशी से प्रफुल्लित हो उठा। वह दूध- सी सफेद कुतिया थी। उसके साथ एक लड़की भी थी। उस लड़की की तरफ विकास का ध्यान नहीं गया। कुतिया के गले में पट्टा नहीं था, इसीलिये विकास को लगा कि वह एक आवारा कुतिया है। विकास ने उठकर कुतिया की ओर कदम बढाये। कुतिया के पास पहुंचकर, उसने कुतिया को अपने दोनों हाथों से उठा लिया। " बाऊ...वाऊ..." - कुतिया भौंकने लगी। " चिंता मत करो प्यारी कुतिया! " - विकास ने कहा - " मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा। मैं तो तुम्हारे साथ खेलना चाहता हूँ। तुम्हारा नाम क्या है ? " " जीनी ! " " अरे वाह ! तुम तो बोलती भी हो ! मैंने आज से पहले कभी बोलने वाली कुतिया नहीं देखी।" विकास खुशी से चहकने लगा।


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