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Vrajesh Dave

Tragedy

0.3  

Vrajesh Dave

Tragedy

हिम स्पर्श - 34

हिम स्पर्श - 34

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34


“जीत, चलो मैं मान लेती हूँ कि गेलिना यहाँ आई थी और उसने तुम्हें चित्रकला सिखाई।“

“हाँ, वह आई थी, यहाँ, इस घर में। इस कक्ष में, इस मरुभूमि में वह आई थी। उसे झूला झूलना पसंद था। वह इस झूले पर झूलती थी। वहाँ, जहां अभी तुम बैठी हो वहीं वह बैठती थी। यह झूला उसे...।”

“इस झूले पर ? इस स्थान पर ? कितना मधुर होगा वह समय ?” वफ़ाई प्रसन्न हो गई।

“हाँ, वह चार दिवस मधुर थे, वह समय अदभूत था।“

“किन्तु मेरा दूसरा निष्कर्ष अभी भी कह रहा है कि तुम मेरा चित्र बना सकते हो। बस, तुम उसे बनाना नहीं चाहते, तुम मेरे चित्र के सर्जन से भाग रहे हो।“

“दूसरा निष्कर्ष। यह निष्कर्ष है अथवा संदेह ? मैं तुम्हें कुछ और तस्वीरें दिखाता हूँ, उसे देखकर फिर किसी निष्कर्ष पर आना।“

“कौन सा निष्कर्ष ?”

“यही कि मैंने गगन और बादल के सिवाय किसी अन्य के चित्र कभी नहीं बनाए।“

जीत एक एक कर सभी चित्रों को दिखाने लगा।

“अंतत: मुझे संतोष हो गया कि तुम सत्य कह रहे हो।“

जीत अभी भी उन चित्रों को देख रहा था। उन चित्रों में मरुभूमि थी, सागर था, पर्वत थे।

“रुको, रुको, पीछे लो। हाँ, पीछे, थोड़ा और पीछे, हाँ, यही। यह पर्वत कहाँ है ? और वह मरुभूमि कहाँ है ?” वफ़ाई ने विस्मय से पूछा।

“यह ? यह काला पर्वत है, यही मरुभूमि में है यह, तुम क्यों पूछ रही हो ?”

“इस मरुभूमि में ? क्या बात है ? क्या हम वहाँ जा सकते हैं ?”

“तुम जाना चाहोगी ?”

“हाँ, चलो...”

“अवश्य। हम वहाँ जाएंगे किन्तु उसके लिए तुम्हें प्रामाणिक होना होगा।“

“अर्थात ? क्या मैं भ्रष्ट हूँ ?” वफ़ाई ने झूठा क्रोध दिखाया और बाद में हँस पड़ी।

“नहीं तो, तुम भ्रष्ट बिलकुल नहीं हो।“

“तो ?”

“मेरा तात्पर्य है कि उस के लिए तुम्हें यहाँ रुकना होगा। यहाँ से भाग जाने के विचारों से भागना होगा। कर सकोगी तुम ऐसा ? तुम इस बात के लिए तैयार हो ?”

“हाँ, मुझे स्वीकार है, मैं तैयार हूँ।“

“वचन ? एक सज्जन वाला वचन ?”

“नहीं, एक सन्नारी का वचन।“ वफ़ाई हँसने लगी, जीत भी।

“वफ़ाई, हम चर्चा कर रहे थे उससे भटकना नहीं है हमें।“ जीत गंभीर हो गया।

“क्या ? हम क्या चर्चा कर रहे थे ?”

“एक सुंदर युवती का चित्र बनाने की। किसी पर्वत की बातें नहीं कर रहे थे।“ जीत ने वफ़ाई की आँखों में देखा।

“मत भूलो कि वह छोकरी सामान्य नहीं है, पर्वत सुंदरी है वह।“ वफ़ाई ने कहा। जीत को वफ़ाई के वह शब्द भा गए।

“तुम चालाक सुंदरी, नहीं नहीं, पर्वत सुंदरी हो।“ दोनों हँस पड़े।

“मुझे तीव्र इच्छा है तुम्हारे द्वारा बनाए हुए मेरे चित्र को देखने की।“

“तूलिका के कुछ स्पर्श से, कुछ रंगों के मिश्रण से, मैं बादल, गगन, पंखी आदि का चित्र तो बना सकता हूँ, यही मेरी मर्यादा है। इस मर्यादित कला ज्ञान से मैं कुछ भी चित्रित कर सकता हूँ ऐसा तुम्हारा मत है। मैं कलाकार होने के भ्रम में जी रहा था और तुम मेरे इस भ्रम को हवा दे रही हो, किन्तु मैंने इस कच्चे चित्रों से परे कुछ भी सर्जन नहीं किया। ऐसा मैं गेलिना से सीख नहीं पाया। चार दिवस में तो यही सीख पाता है कोई बच्चा।“

“तो ?”

“यही कि मैं वफ़ाई का चित्र नहीं बना सकता।“

“किन्तु यह सब तुम अब भी गेलिना से सीख सकते हो।“

“कैसे ? वह तो यहाँ नहीं है। तुम तो जानती हो कि वह स्वीडन में रहती है।“

“जीत, इस युग में भौगोलिक अंतर की कोई समस्या नहीं है, छोटा सा विश्व है हमारा।“

“तो मुझे क्या करना होगा ?”

“गेलिना से संपर्क करो, अभी उसे ई-मेल करो, उस की सहायता लो, मार्गदर्शन माँगो, वह हमारी, नहीं तुम्हारी, सहायता अवश्य करेगी।“

अनिर्णीत मन से जीत ने वफ़ाई को देखा।

“चलो काम करो, संदेह नहीं। वह एक सन्नारी है, यह मेरा मानना है।“

“यह तुम्हारा मानना है अथवा ईर्ष्या है ?”

“जीत, यह सत्य है कि जब कोई पुरुष एक स्त्री के सामने दूसरी स्त्री की बात करता है तो उस स्त्री को ईर्ष्या तो होती है। यह पुरुषों पर भी लागू होती है किन्तु अभी मुझे ईर्ष्या नहीं हो रही है, मैं क्यों ईर्ष्या करूँ ? गेलिना मेरी और तुम्हारी दादी माँ जैसी है।“वफ़ाई चिड़ गई।

जीत मौन हो गया। कुछ क्षण विचार करने के पश्चात उसने गेलिना को ई-मेल कर दिया।

“मैंने गेलिना को ई-मेल कर दिया है, हमें उसके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा करनी होगी।

पिछले चार घंटों में वफ़ाई जीत के ई--मेल को आठ से दस बार देख चुकी थी। गेलिना से कोई प्रत्युत्तर नहीं आ रहा था। वफ़ाई व्यग्र हो गई। वफ़ाई गेलिना से प्राप्त सभी ई-मेल पढ़ गई।

“जीत, गेलिना है कहाँ ? वह प्रत्युत्तर क्यों नहीं दे रही ?” वफ़ाई ने धैर्य खो दिया।

“इतिहास यही कहता है कि गेलिना से प्रत्युत्तर पाने हेतु घंटों नहीं दिवसों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। अभी तो कुछ घंटे ही व्यतीत हुए हैं। थोड़ा धैर्य रखो और समय को व्यतीत होने दो।“

“मैं प्रतीक्षा नहीं कर सकती, मेरे पास समय नहीं है।“

“समय तो मेरे पास भी अल्प ही है। यह समय दौड़ा जा रहा है।“ जीत धीरे से बोला।

“क्या ? तुम्हारे पास तो समय है। तुम पिछला सब भूलकर, छोड़कर तो यहाँ आए हो। तुम क्यों इतने व्याकुल हो ?” वफ़ाई जीत के मुख को देखती रही जिस पर अनेक अपरिचित भाव थे। वफ़ाई ने उसे पढ़ा, उसे कुछ भिन्न ही दिखाई दिया। उस में कुछ गहन भाव थे, जिसे वफ़ाई समझी नहीं। जीत के जीवन की कोई तो कथा है जो अनकही है, अनपढ़ी है। एक ऐसी कथा जिस पर कोई आवरण पड़ा है। जीत की इस कथा के विषय में पूछने के लिए, उसे जानने के लिए, उन अंधे पृष्ठों को पढ़ने के लिए मुझे उचित समय की प्रतीक्षा करनी होगी।

जीत मौन था।

कुछ और घंटे व्यतीत हो गए किन्तु गेलिना का प्रत्युत्तर नहीं आया।

“तो अब हम क्या कर सकते हैं ?” वफ़ाई ने अधीरता व्यक्त की।

“हम उसे फोन कर सकते हैं।“ जीत गेलिना के फोन नंबर ढूँढने लगा। “हाँ, यह रहा, मैं फोन लगाता हूँ।“

जीत ने फोन लगाया किन्तु फोन लग नहीं पाया। जीत ने बारंबार प्रयास किया किन्तु परिणाम वही रहा।

“क्या हुआ ?” वफ़ाई अधीर हो रही थी।

“गेलिना का मोबाइल बंद है, संपर्क नहीं हो पा रहा है।“ जीत ने नि:श्वास के साथ कहा। दोनों निराश हो गए।

“कोई बात नहीं, प्रयास करते रहेंगे। हमारे पास समय ...।“ वफ़ाई ने जीत को आश्वस्त करने का प्रयास किया।

“अल्प समय ही है हमारे पास, किन्तु मैं क्या कर सकता हूँ ? मैंने सभी संभावनाओं पर काम किया है।“

वफ़ाई छत पर चली गई। जीत झूले पर जाकर बैठ गया। कुछ क्षण विचार करने के पश्चात जीत झूले से उठा, कक्ष में गया और लेपटोप लेकर आया। उस पर कुछ काम करने लगा। कुछ क्षण प्रतीक्षा करने के पश्चात उसे एक संदेश मिला।

जीत उसे पढ़ने लगा। कुछ शब्द पढ़ते ही वह रोने लगा, “नहीं, यह नहीं हो सकता...।” वह निर्बाध रुदन करने लगा।

वफ़ाई ने जीत का रुदन सुना। वह नीचे दौड़ आई। जीत की पीठ को मृदु स्पर्श करते बोली,”जीत, क्या हुआ ?” वफ़ाई का मृदु स्पर्श जीत को शांति दे रहा था, किन्तु वह एक शब्द भी नहीं कह पाया। रोते रोते जीत ने वफ़ाई की तरफ लेपटोप घूमा दिया।

लेपटोप पर गेलीना का फेसबुक पन्ना खुला था। वहाँ गेलिना की भतीजी लिली का संदेश था,”गेलिना चाची नहीं रही। कल शाम हमने उसे गँवा दिया है। हम सब दु:खी हैं।“

संदेश पढ़कर वफ़ाई भी दु;खी हो गई। कुछ ही क्षण में वफ़ाई ने स्वयं को संभाला। स्थिति को समझ लिया।

जीत ने गेलिना के फेसबुक पन्ने पर संदेश डाला था और लिली ने उसके उत्तर में गेलिना की मृत्यु का संदेश दिया था। गेलिना, जो कल संध्या तक जीवित व्यक्ति थी, अब मृत हो चुकी थी। वफ़ाई ने शीघ्रता से एक संदेश भेजा,”मुझे आशा है कि आप मेरे साथ कोई उपहास नहीं कर रही। यदि यह सत्य है तो कृपया विगत से कहिए कि क्या हुआ, कैसे हुआ ?”

“गेलिना विश्व भ्रमण पर थी। तीन चार दिवसों से वह स्वीटजरलेंड के पहाड़ों पर थी। वह एक रोग से पीड़ित थी अत: भारी हिम वर्षा में वह बच नहीं पाई। डॉक्टरों का कहना है कि उसे हिमवर्षा एवं पहाड़ों से बचना था। किन्तु वह नहीं बच पाई। उसकी भारत यात्रा के समय उसने यह बात तुम्हें कही ही होगी। कुछ ही क्षण पहले उसका मृत शरीर हमें प्राप्त हुआ है। मैं उसके मृत शरीर की तस्वीरें प्रेषित कर रही हूँ।“ लिली ने प्रत्युत्तर दिया।

दोनों ने संदेश पढ़ा, तस्वीरें भी देखी। जीत गहन शोक में डूब गया। उसने रोने का प्रयास किया किन्तु नहीं रो सका।

वफ़ाई ने स्थिति को अपने नियंत्रण में ले लिया। उसने जीत को रोने में सहायता की। जीत मुक्त मन से रोने लगा। उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी, बहती रही। अंतत: जीत खाली हो गया। शांत हो गया। मौन हो गया।

वफ़ाई ने उससे बात करना चाही, किन्तु जीत ने कोई प्रतिभाव नहीं दिया, वह मौन रहा।

क्रमशः


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