हार की जीत
हार की जीत
काश रूस यूक्रेन के राजा इस कहानी के राजा की तरह हो जाये .....
एक बार एक राज्य के राजा ने दूसरे राज्य के राजा पर आक्रमण कर दिया उसके राज्य को अपने आधीपत्य में लेने के लिए ....घमासान युद्ध हुआ दूसरे राजा के सभी सैनिक, पत्नी, बच्चे मारे गये और राजा भी अपने प्राणों की रक्षा के लिए जंगल जंगल छुपता फिरता रहा ...इसी तरह वो छुपते छुपाते एक संत की कुटिया में पहुँचा उसने अपना सारा हाल संत को कह सुनाया संत ने उसे आसरा दिया और कहा कि ईश्वर जो करता है सब अच्छे के लिए करता हैं उसकी मर्जी ही तुम्हें यहां तक लेकर आई हैं आगे जो होगा वो तुम उसी पर छोड़ दो...
इधर पहले राजा को डर था कि कही दूसरा राजा फिर से सैनिकों को इकट्ठा करके, अपने राज्य को प्राप्त करने के लिए उस पर हमला न कर दे सो वह दूसरे राजा को मारने के लिए सैनिकों के साथ जंगल जंगल भटकते हुए उसी जंगल में पहुँच गया जिस जंगल में संत की कुटिया थी लेकिन तभी एक नरभक्षी शेर ने उस पर और उसके सैनिकों पर हमला कर दिया सभी सैनिक मारे गये मगर राजा के शरीर में अभी प्राण शेष थे तभी उसी मार्ग से वह संत गुजरा, उसने पहले राजा की ऐसी अवस्था देखकर उसे तुरंत उठाया और अपनी कुटिया में लेकर आ गया तभी दूसरा राजा भी वहां आ गया जो संत की साधारण वेषभूषा धारण किये हुये था और उसके दाढ़ी मूंछें भी बड़ी बड़ी हो गयी थी...
संत ने दूसरे राजा को कहा कि जल्दी से जड़ी बूटी का इंतजाम करो दूसरा राजा सकपकाया और सोचने लगा अगर ये बच गया तो मुझे अवश्य मार देगा इसी सोच में वो डुबा हुआ था तभी संत ने उसे झकझोरा और पूछा क्या सोच रहे हो हमें इसकी जान बचानी हैं दूसरे राजा ने संत को कुटिया से बाहर लाकर बताया कि संत जी ये वही राजा है जिसने मेरे राज्य को हथिया लिया मेरे सैनिक पत्नी बच्चों सबको मौत के घाट उतार दिया और इस जंगल में जरूर ये मेरी ही तलाश कर रहा था मुझे मारने के लिए .....
संत ने कुछ सोचा और दूसरे राजा से कहा तुम अपना धर्म निभाओ बाकी सब ईश्वर पर छोड़ दो, अब दूसरे राजा ने पहले राजा को बचाने के लिए जी जान लगा दी उसकी खूब सेवा की, उसकी सेवा के प्रभाव से पहला राजा तंदुरुस्त होने लगा, कुछ महीनों के बाद वह बिल्कुल ठीक हो गया और संत से वापस अपने राज्य लौटने की बात कही,
उसने संत से कहा मैं जाने से पहले आपके उस सेवक से मिलना चाहता हूँ जिसने मेरे मृत शरीर में अपनी निस्वार्थ सेवा से फिर से जान डाल दी संत ने कहा राजन वो तो मात्र तुच्छ सा सेवक है आप राज्य लौट जाओ और अपने पत्नी बच्चों राज्य की बागडोर सँभालो, पहला राजा फिर भी नहीं माना तो संत ने दूसरे राजा जो सेवक था उसे बुलावा भेजा और कहा कि तुम्हारे से तुम्हारा शत्रु मिलना चाहता हैं दूसरा राजा डर गया और सोचने लगा अब मृत्यु मेरे निकट है फिर भी वह संत के बुलावे पर हमेशा की तरह अपना मुंह कपड़े से ढककर आया, पहले राजा ने उससे कहा सेवक हम आपकी सेवा से बहुत प्रसन्न है कृपया आप अपना चेहरा हमें दिखाइये दूसरे राजा ने संत के आदेश पर कपड़ा चेहरे से हटा दिया पहला राजा दूसरे राजा को चुपचाप बस देखता रहा और उसकी आँखों से टप टप आँसुओं की बरसात हो रही थी पहले राजा की आँखों से बरसते आँसू वो सब कुछ कह रहे थे जिन्हें शायद कोई भी शब्दों में नहीं कह सकता है .....
तभी संत ने दोनों राजाओं से कहा कि राजन दुनिया में सबसे मुश्किल कार्य होता हैं एक शत्रु के हृदय को जीतना, और उसमें वात्सल्य प्रेम को पूर्नजीवित कर देना निस्वार्थ सेवा भाव से....
